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रेफ, आशीर्वाद और बिगऱ्यो


हिंदी में रेफ को लेकर कुछ लोगों में भ्रम है, परिणामस्वरूप वर्तनी में बहुधा अशुद्धियाँ दिखाई पड़ती हैं। जैसे: आर्शीवाद (आशीर्वाद) , र्गवोक्ति (गर्वोक्ति )
कुछ वर्णों के साथ संयुक्त होते हुए रेफ के कुछ मुख्य रूप हैं:
1. दो स्वरों के बीच शिरोरेखा पर लगने वाला (र् ), जो पहले अक्षर के बाद बोला जाता है किंतु अगले अक्षर के सिरपर मुकुट जैसा विराजमान होता है ; जैसे कर्म (=कर्/म), कार्य (=कार्/य), स्पोर्ट (=स्पोर्/ट)।
शिरोरेखा रेफ के विषय में कुछ अन्य सावधानियाँ हैं
~यह स्वर वर्ण पर नहीं लगता।
 ~किसी अर्ध व्यंजन या हलंत व्यंजन के माथे पर भी नहीं लगाया जाता।
~मात्रा वाले वर्ण पर पहले मात्रा और उसके बाद रेफ लगेगा।
~यदि व्यंजन गुच्छ हो तो यह अंतिम व्यंजन के माथे पर जा विराजेगा; जैसे: ईर्ष्या, वर्त्स्य, निर्द्वंद्व।
2. दूसरा प्रकार शिरोरेखा रेफ की तरह स्वर रहित नहीं है। स्वर सहित पूरा 'र' जब किसी हलंत व्यंजन से संयुक्त होता है तो उसकी आकृति दो प्रकार की हो सकती है :
- क्, प् जैसे पाई वाले वर्णों से और 'द्', 'ह्' से जुड़ने पर रकार अपनी पूरी आकृति बदल लेता है और एक टेढ़े डैश के समान उस व्यंजन के पैरों से जुड़ जाता है; जैसे क्रम, द्रव, प्रसन्न, ह्रास। 
~खड़ी पाई से लगने वाली मात्रा र के जुड़ने के बाद लगेगी, जैसे क्रुद्ध, द्रुपद, प्रूफ़।
- जो वर्ण अपने आधार (पेंदे) पर कुछ गोलाई लिए हुए होते हैं- जैसे 'ट', 'ड', उनमें इसकी आकृति टेढ़े डैश और हलंत की आकृति को मिलाकर बनती है। जैसे राष्ट्र, ट्रेन, ड्रामा।
3. यहाँ र् के एक अन्य प्रकार की चर्चा आवश्यक है। वह है "बरौनी रकार"। इस ऱ् का उच्चारण आघात रहित और कुछ निरंतर हल्के कंपन से होता है, इसलिए इसे निराघाती या प्रवाही कहना उचित जान पड़ता है। (IPA के अनुसार < r̆ >)। नागरी के लिपि संकेतों में यह कुछ टेढ़े डैश की भाँति होता है और अक्षर के मध्य लगाया जाता है। मानव बरौनियों से समानता के कारण हम "बरौनी रकार" कह रहे हैं! 
बरौनी रकार देवनागरी लिपि का ऐसा संकेत है जिसे हिंदी ने नहीं अपनाया किंतु देवनागरी लिपि वाली कोंकणी मराठी, नेपाली में प्रयुक्त होता है। उच्चारण स्तर पर यह हिंदी और उसकी कुछ सहभाषाओं, बोलियों में विद्यमान है। जैसे ब्रजभाषा, बुंदेली, अवधी, भोजपुरी, कुमाउँनी में--
कऱ्यो, सऱ्यो, बिगऱ्यो, टऱ्यो, टाऱ्यो, ताऱ्यो, कऱ्योल (केवल उच्चारण में)। लेखन में इन्हें कर्यो, सर्यो, बिगर्यो आदि ही लिखा जा रहा है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे शब्दों को शिरोरेखा के ऊपर वाले रेफ के साथ लिखना लिपि नियमों के अनुसार अशुद्ध है। इसे यों समझा जा सकता है। नियमानुसार 'कर्यो' का अक्षर विभाजन होगा कर्/यो, जबकि उच्चारण करते हुए र् को क के बाद नहीं, य से पहले इस प्रकार बोला जाता है जैसे वह य से संयुक्त हुआ हो। बरौनी रकार के साथ 'कऱ्यो' लिखे जाने पर यह समस्या नहीं रहती। नागरी लिपि में आवश्यकता होने पर भी इसका न अपनाया जाना हिंदी के बारे में इस कथन को झुठलाता है कि "हिंदी जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी जाती है।"


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