हींग
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हींग सौंफ प्रजाति की एक जंगली वनस्पति की जड़ों से प्राप्त लिसलिसा दूध या गोंद है जिसकी गंध बहुत तीव्र होती है। कल्पद्रुम के अनुसार हींग खुरासान, मुल्तान में पैदा होने वाले एक वृक्ष का रस (गोंद) है। बल्हीक के देश का होने के कारण इसे बाल्हीक भी कहा गया है। रामठ देश में पैदा होने के कारण इसे शब्दकल्पद्रुम और कुछ आयुर्वेदिक ग्रंथों में रामठम् भी कहा गया है। रामठ की भौगोलिक स्थिति वर्तमान इज़रायल के दक्षिणी भाग में है जिसे अब रामह कहा जाता है जो कभी रामेसिस द्वितीय के राज्य के अंतर्गत पड़ता था।
मध्य ईरानी वर्ग की खोतानी भाषा में हींग को अङ्गूष्ड कहा जाता था जो तिब्बती के शिङ्-कुंङ् से बना। चूँकि यह क्षेत्र बौद्ध धर्म का केंद्र रहा और बौद्ध प्रधान होने के कारण इसका भारत से गहरा संबंध था, इसलिए लगता है बौद्धों के साथ भारत आकर यह शिङ्-कुंङ् (शिङ्-गुङ्) पालि में हिङ्गु बन गया। पालि, प्राकृत और संस्कृत में इसे हिङ्गु ही कहा गया है। अब भारत की प्रायः सभी भाषाओं में इसे हींग नाम से जाना जाता है।
इसका अंग्रेजी पर्याय asafoetida भी लैटिन के दो शब्दों से बना है: asa जो फ़ारसी aza (गोंद) से बना, और fetida अर्थात् तीखी गंध। इस प्रकार आसफ्फोटिडा काअर्थ होगा तीखी गंध वाली गोंद। असहनीय तीखी गंध के कारण इसे यूरोप में शैतान का गोबर (डेविल्स डंग) भी कहा जाता है।
हींग अब भारत की प्रत्येक रसोई में स्थान का चुकी है और इसे विशेष मसालों में गिना जाता है। जिस हींग का हम उपयोग करते हैं उसे "बंधानी" हींग कहते हैं। यह "बंधानी" हींग क्या है?
बंधनी हींग
तीखी गंध के कारण हींग को संस्कृत में उग्रगंध भी कहा गया है। हींग की तीव्र गंध को कुछ हल्का करने के लिए कुछ और वस्तुएँ हींग में मिलाकर उसे 'बाँधा' जाता है। बाँधने से बन गया बंधनी/बंधानी (कंपाउंडेड) हींग। बंधानी हींग बनाने के लिए हींग की मात्रा केवल 30% या उससे भी कम होती है। इसे कुछ यों समझ सकते हैं कि जिसे आप शुद्ध हींग मान रहे हैं उसमें वस्तुतः दो तिहाई से अधिक मैदा, आटा, गोंद और अन्य पदार्थों को मिलाया जाता है। शुद्ध हींग की गंध को आप सहन नहीं कर सकते, उसे रसोई में बरतना तो दूर की बात है। मिलावटी होना हींग के भाग्य में लिखा हुआ है, इसलिए बाज़ार में जो हींग मिलती है उसमें गंध कम या अधिक इस आधार पर होती है कि उसमें मिलावट कम है या अधिक।
विश्व में हींग की सर्वाधिक खपत भारत में है और भारत में हींग का उत्पादन नहीं होता, बंधनी हींग या उपयोग करने योग्य मिलावटी हींग का उत्पादन होता है। अफगानिस्तान, ईरान, खुरासान आदि मध्य एशिया के देशों से कच्ची हींग का आयात होता है। भारत की जाति-धर्म व्यवस्था में हींग का विचित्र स्थान यों है कि उत्पादन मुस्लिम बहुल देशों में होता है। खपत भारत में होती है। भारतीय मुसलमान इसे हिंदू मसाला कहते हैं और कम उपयोग करते हैं। गैर मुसलमानों में हींग खूब लोकप्रिय है।
हींग से जुड़ी एक विचित्र बात और पता चलती है कि हींग से चमड़े का उद्योग भी जुड़ा हुआ था। कहते हैं मुगल काल में हींग का बहुत बड़ा बाज़ार हुआ करता था। अफगानिस्तान से हींग भेड़ों की खाल के थैलों में बंद होकर आती थी । आगरा पहुँचकर हींग तो हींग के व्यापारियों के पास पहुँचती और कच्चे चमड़े का थैला अलग से बेच दिया जाता। यही कारण था कि आगरा में जूते का उद्योग भी फलने फूलने लगा।
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