अपने देश की माटी अन्न और वनस्पतियों के लिए ही नहीं भाषा के लिए भी उर्वर है; व्युत्पादक और पोषक। गाँव- देहात में जन्मे हजारों देशज शब्दों की व्यंजना बहुत गहरी है।
एक उदाहरण लें। मूर्ख या मंदबुद्धि के लिए लोक में अनेक शब्द लोक व्यवहार से जन्मे और प्रचलित हुए हैं जिनमें अधिकांश अज्ञात व्युत्पत्तिक हैं । नागर सभ्यता के आवरण में इनमें बहुत से शब्द संभवतः धीरे-धीरे दो-चार दशकों में या उससे पूर्व ही विलुप्त हो जाएँगे। ऐसे कुछ शब्द आगे दिए जा रहे हैं। ध्यान देने की बात है कि ये वृहत्तर हिंदी क्षेत्र से हैं, और इसे मूर्ख-वर्ग की पूरी शब्द सूची नहीं माना जा सकता।
गाउदी, मोघू (<मुग्ध), सूधा, सोंढर, अदानियाँ (<अज्ञानी?), ठोठ, ठूँठ, ठस, अड़ियल, आड़ू, गैला, गैलचप्पा,बावळी बूच, बावळी पिरड़, बावळी तरेड, बावळी झालर,पूण पागल, बूच, ठस, डगल, ढीम, ढोल, बावळा, बावरा, बइलट, बौलेट, बोकवा, बुड़बक, बकलोल, बौड़म, अड़कचूट, भौंदू, टट्टू, टाट, लडचट्टा, बैधा, पगलेट, पगलटेट , बकटेट, बकलेल, गेगल, बजरबोंग, सुधबोंग, घोंघा, घोंघाबसन्त
बग्गड़, बौड़म, बौझक, बौचट, लौधर, बौरहा, भुच्च, भकुआ, बउराह, बाउर, लल्लू, पप्पू, झंडू, झालर, लबड़धोंधों, लंठ, बकलंठ, बकनेउर, बकचोद, भकुवा, बकलोल, भकचोनहर, बोतल, लड़बंस, बुरबक, लड़कीटार, बेवकूफ, लडचट्टा, लेढ़ा, ढक्कन, लप्पूझन्ना, लाटा, झल्ला, लुल्ल, सिर्री, मूँढ़, टोपा, बुद्धिशत्रु, गैलसप्पा, चक्रम, सिड़ी(silly?),भुच्च, बाकल, खतम, जट्ट , लाटा, लाटू या लाटी, भ्यास, गळ्थु, जक्खड़, घामड़ और ग्याड़ू, गांवढळ, घोंचू, अधबुद्धि, बेंडो/बांडो/वेंडो, कालो, गेगला, झल्ला, थोथ, घोंघा, उल्लू, केकड़ा, खोता, घूसा, बैल, बोका, गदहा, बुज्ज, लैठ, बईकल, गधऊ, भदैल (मेढक), लट्ठ, भोले बाबा, माटी का माधो, गोबर गणेश, अढ़ुआ का ढक्कन, काठ का उल्लू।
ओकरा (असमिया में), बोकामानुस (बांग्ला), अडाणी (मराठी)। यह जानना रोचक होगा कि मराठी और गुजराती में में अल्प बुद्धि के लिए एक एकाक्षरी शब्द भी है --"ढ"।
तो ढ आहे! (मराठी)
ए तो ढ छे! (गुजराती)
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