आप ढ तो नहीं हैं ना!
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पिछले कुछ दिनों से मैंने देश की उर्वरा माटी में जन्मे, प्रायः अज्ञात व्युत्पत्तिक लोक शब्दों का संग्रह प्रारंभ किया जो मूर्ख/मंदबुद्धि के पर्यायवाची शब्द हैं। आश्चर्य हुआ कि हिंदी क्षेत्र की और उससे लगी हुई कुछ भाषाओं की लोक शब्दावली में 100 से अधिक ऐसे शब्द हैं!
इस संग्रह में से अभी केवल एक शब्द की चर्चा करूँगा जो एकाक्षरी है और मुख्यतः मराठी में और गौणत: गुजराती, कोंकणी, कन्नडा तथा राजस्थान की एक-दो बोलियों में उपस्थित है।
शब्द है "ढ"। ढ का अर्थ है मूर्ख,बौड़म, मूर्खतापूर्ण हठ करने वाला। ("ढ" नाम से गुजराती में एक फिल्म भी है जो विशेषकर स्कूली बच्चों को लेकर बनी है।)
प्रश्न यह है कि यह एकाक्षरी शब्द इस अर्थ में कैसे रूढ़ हो गया! बड़ी रोचक कहानी है। देवनागरी वर्णमाला में यह अकेला वर्ण है जो 5000 ईसा पूर्व ब्राह्मी लिपि से लेकर आज की देवनागरी लिपि तक उसी रूप में विद्यमान है, जबकि अन्य सभी वर्ण ब्राह्मी से देवनागरी तक पहुँचते-पहुँचते अनेक बार अपना रूप-आकार बदल चुके हैं।
तो निष्कर्ष यह कि जैसे "ढ" के स्वरूप में पिछले 7 हजार वर्ष के इतिहास में कोई अंतर नहीं आया, ऐसे ही कुछ व्यक्ति होते हैं जो किसी भी हाल में अपनी मूर्खता नहीं त्यागते। वे सचमुच "ढ" कहलाने योग्य हैं।
यह एकदम नयी और अकल्पनीय जानकारी है।
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