मथानी मंथन
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दही मथने की मथनी/मथानी के लिए
संस्कृत में √मन्थ् धातु से मन्था, मन्थान, मंथानक, मंथदंड शब्द हैं। शिव का एक नाम मन्थान: भी है।
लोक में इसके अनेक नाम हैं। रई, रवी, रहई; बिलोनी, मथानी, कन्नी; मराठी में रवी, घुसळणी; मारवाड़ी में झेरणी, कोंकणी में खवलो, गुजराती में वलोणु, नेपाली में मदानी और पंजाबी में मधाणी। हरयाणवी में दही मथने के पात्र को बिलोनी और मथने वाले डंडे को मथानी या रवी कहते हैं। ब्रज क्षेत्र में पात्र का नाम मथनी है और बिलोने वाले दंड को मथानी कहा जाता है।
इसका एक छोटा संस्करण है जो लस्सी बनाने और दाल घोटने के काम आता है। उसके लिए प्रायः सारे हिंदी क्षेत्र में दलघोटनी शब्द है। पूर्वांचल में खैलर भी कहा जाता है।
मथानी के लिए कुमाउँनी में "फिर्को" नेपाली में "फिर्के" शब्द हैं। व्युत्पत्ति है: फिरना > फिरकना > फिरकी > फिर्को (=मथानी, कुमाउँनी में) > फिर्के ( नेपाली में दलघोटनी को कहा जाता है)। कुमाउँनी में कहीं इसे रौली, रौल भी कहा जाता है। मथने के लिए जिस पात्र में दही रखा जाता है उसे कुमाउँनी में बिंड या नलिया/नइया कहा जाता है। गढ़वाली में मथानी को रौड़ीऔर मथने वाले वर्तन को 'परेड़ा' या 'परिय्या' कहते हैं।
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