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मोद, मोदक और मोदी...

किसी शब्द की व्युत्पत्ति ढूँढना बड़ा कठिन काम है; विशेषकर भारत में जहाँ एक ओर सब भाषाएँ किसी न किसी रूप में संस्कृत, पालि, प्राकृत से जुड़ती हैं और दूसरी ओर सदियों से विदेशों से संपर्क के कारण विदेशी भाषाओं के शब्द भी भारतीय भाषाओं में घुलमिल गए हैं। साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य भाषा परिवारों के शब्द भी व्युत्पत्ति को और कठिन बना देते हैं।
मोदी शब्द को ही लीजिए। बड़ा सरल, लोक प्रचलित, सम्मानित उपनाम है, किंतु इसकी व्युत्पत्ति इतनी आसान नहीं, रोचक अवश्य है। संस्कृत कोशों के अनुसार यह √मुद् से है (प्रसन्न होना, आनंदित होना, सुगंध आदि के अर्थ में)। व्युत्पत्ति इस प्रकार है - √मुद् + भावे घञ् = मोद, मोद + णिनि = मोदिन् > मोदी (one who delights) मोद प्रदान करनेवाला, आनंदी, विदूषक, हँसोड़, jestor.
मुद् धातु से 'मोदक' (लड्डू) भी बना है, जिसका नाम ही आनंददायक है! मोदक बनाने वाला मोदककार (हलवाई) और इसी मोदककार से मोदी भी जुड़ता है। कालांतर में मोदी शब्द में अर्थ विस्तार हुआ और गुजराती मारवाड़ी राजस्थानी में यह केवल हलवाई के लिए नहीं, वरन सभी तरह की चीजें बेचने वाले परचूनिये के लिए हो गया। अनाज ढोने वाली बैल गाड़ियों में बिछाया जाने वाला मोटा कपड़ा भी मारवाड़ी में मोदियो कहलाता है। मध्यवर्ती युग में एक शब्द और अरबी से ईरान होते हुए भारत पहुँचा: मद्द-अ مادّة। मद्द-अ/मद्दा का अर्थ है सामग्री, सामान, जिंस। मोदी शब्द के अर्थ विस्तार में यह भी शामिल हो गया- जिसके पास सामग्री का भंडार है वह मोदी। अन्न भंडार या गोदाम के लिए शब्द बना मोदीख़ाना। मोदीख़ाना में जो लोग गोदाम के रक्षक थे उन्हें मोदी उपाधि दी जाती थी। इससे व्यापारी वर्ग के बहुत से लोग मोदी कहे जाने लगे और इस उपाधि को वे सम्मानजनक मानते थे। गुरु नानक देव जी भी किसी ऐसे ही मोदीख़ाने के रक्षक थे जहाँ उन्होंने "सच्चा सौदा" करते हुए भंडार को लुटा दिया।
 परचून, किराना (अन्न, आटा, दाल आदि) बेचने वाले के लिए मोदी/मोडी शब्द बिहार बंगाल में भी है। बांग्ला में मूडि (মুদি) कहा जाता है।
तो‌ इतना तो तय है कि मोदी परचुनियों का उपनाम है। पहले मोदी शब्द भंडारी/पंसारी के लिए प्रयुक्त होता था। प्लैट्स, कुलकर्णी, रोज़ारियो के कोश इसे अनाज के भंडारी से जोड़ते हैं। कुलकर्णी के कोश में भी इसे मोदक से व्युत्पन्न बताया गया है। मिष्ठान्न विक्रेता से अनाज बेचने वाले में अर्थ परिवर्तन/विस्तार असंभव नहीं है। 
हाँ, मोदक शब्द सर्वत्र लड्डू के लिए ही नहीं है। संस्कृत के कुछ कोशों (आप्टे, कल्पद्रुम, वाचस्पत्यम्, शब्दसागर) में 'मोदक' को क्षत्रिय पुरुष और शूद्र स्त्री के संसर्ग से उत्पन्न एक वर्णशंकर जाति भी बताया गया है।
रेख़्ता शब्दकोश भी मोदी को संस्कृत का शब्द बताता है और उसमें मोदी के ये अर्थ दिए गए हैं -
आटा, दाल, चावल, आदि बेचनेवाला; भोजन सामग्री देनेवाला बनिया, अनाज का व्यापारी, परचून की दुकान वाला।
रेख़्ता कोश के अनुसार वह भी मोदी है जिसका काम बड़े आदमियों के यहाँ नौकरों को भरती करना हो; पहुँचानेवाला, भेजनेवाला, प्रेषक। 
सभी प्रकार की व्युत्पत्तियों से इतना स्पष्ट है कि आटा, दाल, चावल आदि भोजन सामग्री बेचनेवाला बनिया परचूनिया ही मोदी कहा गया। कबीर ने भी कहा है:
माया मेरे राम की मोदी सब संसार । जाकी चीठी ऊतरी सोई खरचनहार।
एक अन्य कवि ने लिखा है
दे सबै अहारै सोदी, अन्नपूरणा मोदी।
कोशों के अनुसार परचूनियाँ मोदी की पत्नी "मोदिनी" कहलाती है। अपनी दुकान पर बैठी मोदिनी के बारे में ब्रज भाषा के प्रसिद्ध कवि देव ने लिखा है:
" दमन के मोद भरी जोबन प्रमोद भरी मोदी की बहू की दुति देखे दिन दुनी सी।
चुनरी सुरंग अंग ईंगुर के रंग 'देव' बैठी परचुनी की दुकान पर चुनी सी।"

मोदी सरनेम के लोग गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि में पाए जाते हैं। यह अधिकतर हिंदू वैश्य समुदाय के हैं किंतु खत्री, तेली, पारसी आदि समुदायों से भी हैं। माना जाता है कि जब जैनी समाज बिहार से भारत के अन्य राज्यों में प्रवसित हुआ तो मोदी भी प्रवसित हुए। कुछ मोदी उपनाम वाले भारत में बड़े प्रसिद्ध हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी के अतिरिक्त उद्योगपति गूजरमल केदारनाथ मोदी, नेता, समाज सुधारक और आर्किटेक्ट पीलू मोदी, प्रबंधन विशेषज्ञ, टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रुस्सी मोदी, सुप्रसिद्ध फिल्मी हस्ती सोहराब मोदी आदि।
अपने दाँवपेंचों से भारत सरकार की नाक में दम करने वाले दो अन्य मोदी भी इस क्रम में याद आते हैं - नीरव मोदी और ललित मोदी !

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