सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुलथी और रस भात

कुलथी और रसभात

कुलथी को अंग्रेजी में horse gram कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम macrotyloma uniflorum है। संस्कृत में इसे कुलत्थी या कुलत्थिका कहा गया है। ओड़िया में कुलोथ/कुलुथ; तमिल में यह कोल्लु, कन्नड़ में हुरळि और तेलुगु  में उलवलु आलम में हुदिरा है। कुलथी को हिमाचल प्रदेश में गैथ, गहत; कुमाऊँ में गहत, गौत; नेपाल में गहत और गढ़वाल में गौथ कहा जाता है। पूर्व और पूर्वोत्तर में कुर्थी भी है। मराठी में कुळीथ, हुलगा; कोंकणी में कुळितु।
गहत के प्रायः सभी नाम कुलत्थ से व्युत्पन्न हैं और कुलत्थ की व्युत्पत्ति यों बताई गई है - "कुलं भूमिलग्नं सन् तिष्ठति।" जो कुल अर्थात भूमि से सटा हुआ, वह कुलत्थ। इसकी खेती के लिए अधिक देखभाल नहीं करनी पड़ती और बंजर सी लगने वाली भूमि में भी पैदा हो जाता है।
उत्तर भारत के मैदानी भागों में कुलथी को कम लोग जानते हैं क्योंकि यहाँ इसे उगाया नहीं जाता। शेष भारत में यह बहुत प्रचलित है और इसके अनेक स्वादिष्ट व्यंजन प्रसिद्ध हैं। यह और बात है कि इसे मोटा अनाज माना जाता है, इसलिए संभ्रांत लोग इसे देखकर नाक भौंह सिकोड़ते हैं।
भात के साथ इसका रस (रस-भात) कुमाऊँ का विशेष व्यंजन है। रस को सूप की तरह पिया भी जाता है। कुमाऊँ में गहत के एक अन्य स्वादिष्ट व्यंजन का नाम है "डुबुक।" गहत की तासीर गर्म मानी जाती है, इसलिए इसका सेवन जाड़ों में अधिक किया जाता है।
 देसी/आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में कुलथी को पथरी और मधुमेह में विशेष लाभदायक माना जाता है। राजनिर्घण्ट के अनुसार इसका सूप (यूष) वायुविकार, शर्क्करा (मधुमेह), अश्मरी (पथरी) को नष्ट करता है। वैद्य दो मुट्ठी गहत रात में भिगोकर सुबह उसका पानी पीने और उसके बाद भीगे हुए बीजों को किसी व्यंजन के रूप में लेने का परामर्श देते हैं। एलोपैथी के डॉक्टर भी गुर्दे की बीमारी में कुलथी सेवन का परामर्श देते देखे गए हैं।
पारंपरिक रूप से हीरक (हीरा) भस्म बनाने वाले कुलिथ के अनेक 'पुट' देते हैं। अर्थात कुलिथ के रस के साथ घोटकर अग्नि में तपा कर राख करना पुट देना कहलाता है। ऐसे लगभग सौ पुट देने पर कोई भस्म तैयार होती है । कहावत है, "कुलीथा संगे हीरा भंगे"।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत-स्तोत्र

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत और स्तोत्र अवचेतन मन में कहीं संस्कृत के कुछ शब्दों के सादृश्य प्रभाव को अशुद्ध रूप में ग्रहण कर लेने से हिंदी में कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखी जा रही है। 'स्रोत' ऐसा ही एक उदाहरण है। इसमें 'स्र' के स्थान पर 'स्त्र' का प्रयोग देखा जाता है - 'स्त्रोत'! स्रोत संस्कृत के 'स्रोतस्' से विकसित हुआ है किंतु हिंदी में आते-आते इसके अर्थ में विस्तार मिलता है। मूलतः स्रोत झरना, नदी, बहाव का वाचक है। अमरकोश के अनुसार "स्वतोऽम्बुसरणम् ।"  वेगेन जलवहनं स्रोतः ।  स्वतः स्वयमम्बुनः सरणं गमनं स्रोतः।  अब हम किसी वस्तु या तत्व के उद्गम या उत्पत्ति स्थान को या उस स्थान को भी जहाँ से कोई पदार्थ प्राप्त होता है,  स्रोत कहते हैं। "भागीरथी (स्रोत) का उद्गम गौमुख है" न कहकर हम कहते हैं- भागीरथी का स्रोत गौमुख है। अथवा, भागीरथी का उद्गम गौमुख है। स्रोत की ही भाँति सहस्र (हज़ार) को भी 'सहस्त्र' लिखा जा रहा है। कारण संभवतः संस्कृत के कुछ शब्दों के बिंबों को भ्रमात्मक स्थिति में ग्रहण किया गया है। हिंदी में तत्सम शब्द अस्त्