दोहद का अर्थ है गर्भवती की लालसा या रुचि, गर्भवती स्त्री के मन में होनेवाली अनेक प्रकार की प्रबल इच्छाएँ, (the cravings of a pregnant woman)।
लोक मान्यताओं और आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार गर्भवती स्त्री को कुछ खाने की विशेष इच्छा होती है जिसे दोहद कहा जाता है। संस्कृत 'दौर्हृद' (दो हृदय, गर्भवती का और होने वाली संतान का, जो अपनी इच्छा को माँ की इच्छा के रूप में अभिव्यक्त करती है)। दौर्हृद का प्राकृत रूप दोहद है, संस्कृत में दोनों शब्द हैं। दोहद की पूर्ति करना परिवार जनों का कर्तव्य माना गया है। उत्तररामचरित में उल्लेख है कि जब कौसल्या अपनी पुत्री शांता के घर गई थी तो वहीं से राम को संदेश भिजवाती है कि गर्भिणी सीता के दोहद का ध्यान अवश्य रखें ।
"य: कश्चिद् गर्भदोहदो भवत्यस्या: सोऽवश्यम् अचिरान् मानयितव्यः ।" (सीता को जो भी दोहद हो उसे अवश्य और तुरंत पूरा करें!)
दोहद को गर्भस्थ शिशु का संभावित स्वभाव और उसकी प्रकृति जानने का साधन माना जाता है। यही नहीं, दोहद को गर्भ में पल रहे बालक की आकांक्षा समझकर उसकी पूर्ति को वरीयता दी जाती है। परिवार के सदस्य विशेषकर सास-ससुर, ननद, जेठ-जेठानी, देवर-देवरानी आदि दोहद की पूर्ति के लिए तरह-तरह की व्यवस्थाएँ करते हैं। विभिन्न अंचलों में दोहद संबंधी लोकगीत भी पाए जाते हैं जिन्हें 'दोहद गीत' या 'साध गीत' कहा जाता है। अवधी गीत का एक उदाहरण:
"सासु पूछै मोरी बहुअरि तुम्हईं का भावे री।
नेबुआ, नरंगी, अनार अम्मा हमें भावे री॥
जेठी पूछै मोरी छोटी, तुम्हईं का भावे री।
काजू, छुहारा आ किसमिस दिदिया हमें भावे री॥
ननद पूछै मोरी भउजी तुम्हईं का भावे री।
पूरी, कचौरी, अचार ननद हमें भावे री॥
कुमाऊँ में गर्भिणी अपने देवर से नींबू, नारिंग लाने को कहती है
"ओ लल्ला! नारिंग महूँ लैदे जामिर महूँ लैदे नारिंग हूँ जिया करे।"
लोक में दोहद के अनेक नाम हैं। कुमाऊँ में इसे 'औछन' कहा जाता है और नेपाली में 'औछान्'। पूर्वांचल, मिथिलांचल आदि में इसे दोहद, साध और उकौना कहा जाता है। उकौना संस्कृत उत्क + (हिं. प्रत्यय औना) से व्युत्पन्न है। इसी से ओक्किय, ओकाई, उबकाई (मतली) भी बने हैं। দোহদ (दोहद) शब्द का बंगला में भी प्रयोग होता है -- गर्भवती की अभिलाष/ साध के अर्थ में । सात महीने में एक अनुष्ठान भी होता है जिसमें भावी माँ को वे सब चीजें दी जाती हैं, जो उसे पसंद हैं ।
दोहद के अंतर्गत कुछ कवि-समय और अन्य लोक विश्वास भी आते हैं; जैसे नायिका के लात मारने से अशोक में फूल आते हैं या शराब का कुल्ला करने से कुरबक फूलता है। यात्रा में दिशाशूल और अशुभ तिथि, वार, नक्षत्र आदि का दोष निवारण करने के लिए भी कुछ लोकविश्वास दोहद कहे जाते हैं।
इन सब दोहदों से भिन्न एक दोहद और। गुजरात और मध्य प्रदेश की दो हदों (सीमाओं) से लगे हुए एक क्षेत्र का नाम भी दोहद है। कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगज़ेब का जन्म इसी दोहद में हुआ था!
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