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दृष्टि, दीठ और दीद

दृष्टि संस्कृत √दृश धातु से बना शब्द है जिसका अर्थ है देखने की शक्ति, नज़र, निगाह | दृष्टि प्राकृत में डिटठि/दिट्ठी हो गया और हिंदी में इस से बना डीठ/दीठ ।
शैली प्रयोग की दृष्टि से शिष्ट प्रयोगों में दृष्टि अधिक व्यवहृत है| दृष्टिगोचर होना, दृष्टिपात करना, दृष्टिगत होना, दृष्टि बाँधना आदि ऐसे ही यौगिक प्रयोग हैं | अन्य यौगिक शब्दों में अधिक प्रचलित हैं- दूरदृष्टि , अंतर्दृष्टि, कातर दृष्टि, दृष्टि हीन, दृष्टिकोण, दृष्टिभ्रम | मुहावरों में दृष्टि डाली जाती है, दृष्टि चुराई जाती है, दृष्टि फेर ली जाती है | कुदृष्टि से दृष्टिपात करने वाले की दृष्टि बाँध भी ली जा सकती है। दृश् > दृष्टि > दृष्ट से ही दृष्टांत भी बना है; अर्थ है उदाहरण, समानार्थक तुलना। तर्कशास्त्र और अलंकार शास्त्र में दृष्टांत के अपने स्वतंत्र अर्थ हैं।
लोक में दृष्टि से अधिक प्रचलित हैं दृष्टि से बने तद्भव शब्द: डीठ, दीठ या दीठि| डीठ संस्कृत दृष्टि > प्राकृत दिट्ठि, डिट्ठि से व्युत्पन्न है।
"दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई, एक तें सरस एक द्वारिका के भौन हैं।" 
डीठ के कुछ मुहावरे लोक में प्रचलित हैं; जैसे: डीठ चुराना (नजरें चुराना), डीठ जोड़ना (आँखें चार करना, सामने ताकना, डीठ बाँधना (नज़रबंद करना, ऐसा जादू करना जिसमें सामने की वस्तु ठीक ठीक च सूझे), डीठ मारना (नज़र डालना), डीठ रखना (नज़र रखना, देखभाल करना) डीठ लगाना (नज़र लगाना, कुदृष्टि डालना)।
डीठ का सीधा संबंध डिठौने/दिठौने से है। दीठ अर्थात कुदृष्टि से बचने के लिए चेहरे पर कहीं काजल का टीका लगा लिया जाता है जिसे दिठौना कहा जाता है। विश्वास है कि दिठौने से दीठ नहीं लगती अर्थात कुदृष्टि प्रभावित नहीं करती।
"सब बचाती हैं सुतों के गात्र
किंतु देती हैं डिठोंना मात्र" ~मैथिलीशरण गुप्त
दृष्टि या गीत फारसी में दीद, दीदा हो गया है; अर्थ वही है आँखें, नज़र, देखना, दृष्टि, निगाह, दर्शन, अवलोकन। कुछ रोचक प्रयोग हैं: दीद-ए-तर अर्थात अश्रुपूर्ण नेत्र। दीद बरदीद (देखादेखी)। कबीर के शब्दों में:
दीद बरदीद परतीत आवै नहीं, 
दूरि की आस विश्वास भारी।
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