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कल की कलकल

अंग्रेजी में एक कहावत है, कल कभी नहीं आता. परन्तु हम हिंदी वालों के पास तो कल-ही-कल है. आज के पहले भी कल, आज के बाद भी कल. “काल करे सो आज कर” यह जिसने भी कहा हो उसे मैं संत या कवि से अधिक दार्शनिक और वैयाकरण मानता हूँ. उसे पता था कि हिंदी में कल की तो कोई समय-सीमा ही नहीं है. आज से पहले या आज के बाद के दिनों तक ही नही, यह तो अनिश्चित भविष्य के लिए भी है और अनियत भूत के लिए भी. वस्तुतः समय की रेखा पर यह कल किसी परमहंस-सा लगता है जिसे हजारीप्रसाद द्विवेदी ने ‘कुटज’ के स्वभाव का वर्णन करते हुए “अवधूत” कहा है. अपने परिवेश से सर्वथा विरक्त और निर्लिप्त. मोह-माया व्यापे नहिं जाको...! ‘ आज ’ का सन्दर्भ यहाँ तक तो ठीक है कि ‘आज’ को यदि सन्दर्भ बिंदु मानें तो आज से पहले का दिन भी कल है और आज के बाद का भी. किसी वाक्य में सहायक क्रिया ही निश्चित करती है कि वक्ता का मंतव्य किस काल से है. जैसे : ·        कल आए थे.      (आज से पहला दिन, भूतकाल) ·        कल आएँगे.       (आज के बाद का दिन. भविष्यत काल) अब इन स्थितियों और प्रयोगों को देखिए : ·        जब कोई पिता अपने पुत्र को कहे, “क