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संदेश

नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निदेश और निर्देश

  निर्देश –निदेश  निर्देश में आज्ञा या आदेश जैसी बाध्यता तो नहीं, व्यापकता अवश्य है | व्यापक रूप से और सामान्यतः ये हितैषी ही होते हैं जैसे डॉटर रोगी को निर्देश देता है या शिक्षक छात्रों को प्रश्नपत्र हल करने के बारे में निर्देश देते हैं | वस्तुतः “निर्देश" संदेशवाहन की एक प्रक्रिया है जिसमें प्रेषित संदेश को विश्वास के साथ ग्रहण कर लिया जाता है” (~मैकडूगल) | आदेश में यह विशेषता होना ज़रूरी नहीं | निर्देश का प्रयोग प्रायः सूचना देना, बताना, मार्ग दिखाना आदि है | जैसे : सभी प्रश्न हल करने हैं |                        (सूचना) आप नहीं होंगे तो हमारा निर्देशन कौन करेगा?       (मार्ग दर्शन) निर्दिष्ट अनुच्छेद में स्पष्ट लिखा है | (बताए हुए/ निर्देश किए हुए} प्रबंधन में भी आदेश और निर्देश को भिन्न माना गया है और दोनों की एकात्मता पर बल दिया जाता है | प्रबंधन की भाषा में कुशलतापूर्वक कार्य सम्पादन के लिए सक्षम अधिकारी और अधीनस्थ के बीच सीधा संवाद आदेश है जब कि सामान्य उद्देश्य के लिए काम कर रहे समूह के लिए संप्रेषित संवाद निर्देश है |  निर्देश और निर्देशन में भी सूक्ष्म अंतर ह

आदेश और आज्ञा

  आज्ञा औरआदेश  यह कल्पना ही असंभव है कि हमें किसी-न-किसी रूप में कभी किसी आज्ञा या आदेश का पालन न करना पडा हो | कभी तो इनमे अंतर करना कठिन हो जाता है कि यह जो कहा गया है, वह आदेश है या आज्ञा | और इस नासमझी का बड़ा अंतर पड़ सकता है | इन दोनों शब्दों में अंतर थोड़ा नाजुक अवश्य है पर है बड़ा रोचक | आप आज्ञाकारी हैं या नहीं यह तो आपको आज्ञा देने वाले जानें किंतु आदेश देने वाले जानते हैं कि उनके आदेशों का अनुपालन न करना सहज नहीं है | आज्ञा की अनदेखी कोई कर सकता है परन्तु आदेश की अनदेखी के लिए उसे सौ बार सोचना पड़ सकता है | आज्ञा-पालन विवशता नहीं है, यह श्रद्धा और कर्तव्य की परिधि में आता है | हमारा-आपका कर्तव्य है बड़ों की आज्ञा मानना किंतु न मानें तो यह बड़ों पर है कि वे उस अवहेलना को नैतिक मुद्दा बनाते हैं या नहीं, किंतु आदेश के साथ यह विकल्प उपलब्ध नहीं है | किसी भी आदेश के पीछे आदेश देने वाले का पद, रुतबा या अधिकार होता है और होता है उसमे निहित भय जो आपको आदेश का अनुपालन करने के लिए विवश करता है | आप आदेश से असहमत हों , तो भी | इस प्रकार आदेश में औपचारिकता भी है और बाध्यता भी | सक्षम अधिकारी

हिंदी सीखते हुए तमिल भाषियों की कुछ भूलें

    संविधान में उल्लेख, बड़ा सा राजभाषा विभाग और बड़े-बड़े सरकारी तामझाम के बावजूद हिंदी का वैसा प्रचार नहीं हुआ, जैसा उसकी उपयोगिता देखते-समझते हुए उसे सहज स्वीकारने से हुआ है| पिछली सदी के छठे दशक से ही दक्षिण में, विशेषकर तमिलनाडु में, हिंदी विराध के स्वर मुखर होने लगे थे परंतु इसके पीछे राजनीतिक कारण अधिक थे| आम जन यह समझ रहे थे कि राज्य की सीमाओं से बाहर देश से जुड़ने के लिए हिंदी सीखना उनके अपने व्यापक हित में है और वे औपचारिक-अनौपचारिक सभी माध्यमों से हिंदी सीखने को उत्सुक थे| राजभाषा का प्रचार-प्रसार सरकार की ज़िम्मेदारी भले ही रहा हो, संपर्क भाषा का विकास स्वतः होता रहा और हिंदी की आंचलिक शैलियाँ विकसित होती गईं| आज जिन रूपों को हम बम्बैइया हिंदी, हैदराबादी हिंदी या तमिल हिंदी कहते हैं वे संपर्क भाषा हिंदी के ही रूप हैं| भाषाविज्ञान के क्षेत्र में आधिनिक अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य लगभग छह वर्ष की आयु तक अपनी मातृभाषा में दक्षता पा लेता है| उस भाषा के नियमों के सुदृढ़ संस्कार उसके मस्तिष्क में बैठ जाते हैं| इसके बाद वह जो भी भाषा सीखता है, उसके नियमों को पहले सीखी हु