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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पाँच दिन की बेहोशी का महाकाव्य

#नवीन_जोशी का उपन्यास "टिकटशुदा रुक्का" महीना भर पहले ही पढ़ लिया था। उस से दस दिन पहले भी पढ़ चुका हो सकता था पर "उनकी" जिद थी कि पहले वे पढ़ेंगी। समझौता इस बात पर हुआ कि जब तक मैं भी न पढ़ लूं तब तक उसके बारे में कोई चर्चा नहीं करेगा। यह शर्त निभाना उनके लिए बेहद कठिन रहा होगा, यह मैं तब समझ पाया जब मैंने भी पूरा उपन्यास पढ़ लिया। पढ़ लेने के बाद मैं स्वयं अनेक सवालों में उलझ गया। कथानक, प्रस्तुति, सामाजिक हलचलों का बिंब-प्रतिबिंब, संघर्ष, विजय- पराजय, बड़ी-छोटी जाति, शोषण, कॉर्पोरेट हृदयहीनता, छद्म, प्यार, समर्पण, संघर्ष और भी जाने क्या-क्या! और इस सबको पिरोने-परोसने का अंदाज़ बिल्कुल महाभारत के संजय की तरह, जो भाइयों की मारकाट को भी सहज रूप में सुना देता है। बस। मैं जैसे बिल्कुल सन्न था, संज्ञा हीन। चाहते हुए भी उपन्यास के बारे में कुछ नहीं लिखा। लगा जितने आयामों को लेखक एक कैनवास पर सहजता से उतार गया है, वहां तक पहुंचना तो दूर, उन्हे पूरा-पूरा छू पाना भी मेरे जैसे पाठक के लिए जैसे एक चुनौती है। खानदानी कर्जदार दीवान का संघर्ष केवल वर्ग संघर्ष नहीं है।

गंज शब्द की व्युत्पत्ति और व्याप्ति

#गंज की व्युत्पत्ति और व्याप्ति गंज शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर हिंदी में दो मत हैं। एक के अनुसार यह शब्द भारत-ईरानी परिवार की पुरानी मीडियन भाषा का है और फ़ारसी के माध्यम से हिंदी तक पहुंचा है। दूसरे मत के अनुसार यह हिंदी का ही संस्कृत के माध्यम से आया हुआ शब्द "गञ्ज:' है जिसका अर्थ है भंडार, रत्न कोष, अन्न कोष। शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी گنج से हो या संस्कृत "गञ्ज" से, इसके योग से भारतीय स्थान नामों में बड़े रोचक संकर (hybrid) शब्द बने हैं। भारत भर में सैकड़ों गंज हैं। शायद ही कोई ऐसा शहर/कस्बा हो जहाँ कोई गंज न हो। तत्सम शब्दों से: संयोगिता गंज, गौरी गंज; तद्भव शब्दों से: मुट्ठीगंज, लोहार गंज, किशनगंज, सियागंज; देशज शब्दों से: डोरी गंज, माल गंज अंग्रेज़ी शब्दों से: कर्नलगंज, फारबिसगंज, मैक्लेओड गंज; फ़ारसी शब्दों से: हज़रतगंज, हबीबगंज, रकाबगंज। लखनऊ में एक प्रसिद्ध बाज़ार है हज़रतगंज, जो शाम को सैर-सपाटा करने वालों को बहुत प्रिय है। इससे एक शब्द बना लिया गया है "गंजिंग", जिसका अर्थ है हजरतगंज में घूमते हुए मस्ती करना। यदि आप लखनऊ में ही अमीनाबाद

पाहुना

पाहुना शब्द संस्कृत के "प्राघुर्णक/प्राघुण" शब्द से बना है। जो घूमते-घूमते आपके घर आ जाए उस अतिथि को संस्कृत में ‘प्राघुण’ कहते हैं। पंचतंत्र में प्राघुर्ण तथा नैषध में प्राघुणिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। पृथ्वीराज रासो में प्राहुन्ना शब्द मिलता है जैसे:  "चितरंग राय रावर चबे प्राहुन्ना बग्गा फिरे।" इसी शब्द से भारतीय भाषाओं के निम्नलिखित सभी शब्द निष्पन्न हुए हैं— प्राकृत:    पाहुण हिन्दी:    पाहुन बुन्देली:    पहाउना पंजाबी:    ਪਰਾਹੁਣਾ (पराहुणा) गुजराती:   પરોણો (परोणो) राजस्थानी:   पावणा/पामणा मराठी:   पाहुणा छत्तीसगढ़ी:   पहुना हिंदी की प्रायः सभी बोलियों में पाहुन अतिथि के लिए कम, दामाद के लिए अधिक प्रयुक्त होता है। कुमाउँनी में पाहुना/पाहुनी क्रमशः पौण/पौणी (पौन,पौनी) हैं जो अतिथि के रूप में पधारे इष्ट मित्र, अभ्यागतों के लिए है। गढ़वाली में बारात में आए सभी मेहमान पौण हैं। नेपाली में पाहुना दामाद है, समस्तपद 'पाहुना-पाछी' है। नेपाली की भाँति "पौण-पाछि" कुमाउँनी में भी मिलता है, संभवतः इसलिए कि पौण के पाछे (साथ) उसके कुछ सेवक-सह

लला, लल्ला और लल्लू

इधर दो-तीन दशकों से राम लला शब्द अधिक प्रचलन में आया है यद्यपि इसका पहला प्रयोग तुलसी (1523-1632) की एक रचना "राम लला नहछू" में हुआ है। किसी नाम के साथ जुड़ जाने पर लला उसके बालक रूप का द्योतक हो जाता है। रामलला अर्थात बाल स्वरूप राम। लला शब्द संस्कृत मूल का है। संस्कृत में √लल् धातु दुलारने, पुचकारने, लाड़- प्यार करने के अर्थ में है। इसी से लालन, लाल्य, लालनीय विशेषण बने हैं। लालयेत् पर एक प्रसिद्ध सूक्ति है लालयेत् पञ्च वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् । प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् ॥ बच्चे के लिए लाल, लल्ला, लल्ली, लालन बने हैं जो अवधी, ब्रज, बुंदेली आदि बोलियों में बहुत प्रयुक्त होते हैं। कुमाउँनी में देवर को लला/लल्ला कहा जाता है क्योंकि छोटा होने के कारण वह भी भाभी के लिए बच्चे के समान लालनीय होता था। तब विवाह छोटी उम्र में ही हो जाते थे। कृष्ण के लिए भी लाल, लला, लल्ला विशेषणों का प्रयोग होता है। यहाँ इसका अर्थ।नन्हा, प्यारा, दुलारा के निकट है। पंजाबी का लोकप्रिय संबोधन, "ओए लाले दी जान !" इसी लाल से विकसित मानी जा सकती है। प्यारे बच