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गू, गुएन और पू 💩

गू, गुएन और पू ••• मानव मल के लिए संस्कृत में अनेक शब्द हैं - विष्ठा, पुरीष, गू, गूथ, उच्चार, अवस्कर, शमल, शकृत्, पुरीष, वर्चस्क, विश्, कर्पर, कीकस, कुल्य। इनमें से कुछ तो संस्कृत के संस्कृत बनने से भी पहले से प्रचलित मिट्टी के शब्द रहे होंगे या द्रविड़, ऑस्ट्रिक मूल के भी। जैसे कीकस के समान तमिल में शब्द है कक्कुसु। हिंदी, उर्दू में जो शब्द प्रचलित हैं उनमें एकमात्र मूल शब्द गू (संस्कृत गूथ, गू:) है, जिसे ग्रामीण मानकर इसके प्रयोग से बचा जाता है। अन्य हैं - टट्टी, झाड़ा, हग्गा, छिच्छी। इनमें टट्टी को भी अब ग्राम्य प्रयोग समझ कर शिष्ट भाषा में स्थान नहीं दिया जाता। लोक में झाड़ा भी है जो बहुत कम प्रचलित है, कहिए कि लुप्त हो चला है। हग्गा, छिच्छी बाल भाषा के शब्द हैं, आम भाषा के नहीं। टट्टी मल त्याग की क्रिया के लिए लक्षणा से बना अनुनाम (metonym) है। पहले टाट और बाँस की सहायता से बने एक बाड़े को टट्टी कहा जाता था जो मल त्याग के लिए निर्धारित स्थान पर लोकलाज से बचने के लिए एक प्रकार की आड़ का काम देता था। कालांतर में यही टट्टी गू का पर्याय बन गया और टट्टी जाना यौगिक क्रिया। जंगल जाना, शौ