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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सेराना सेलाण

लोक में चाय ठंडी नहीं होती, सिराती या सेराती है। सेराना के लिए कहीं-कहीं सियराना/सियरा जाना भी है। सेराना शब्द शीतल से व्युत्पन्न है इसलिए ठंडा होने का भाव इसमें है। किसी अत्यधिक गर्म वस्तु को ठंडा करके अर्थात "सेरा" कर सेवन करते हैं। गुनगुना या कुनकुना आधा या थोड़ा गर्म हो सकता है जबकि सेराई हुई वस्तु पूर्णतः ठंडी भी हो सकती है। कहीं जूड़ (जूड़ी, कँपकँपी) से जुड़ाना/जुड़वाना क्रियाएँ हैं। जुड़ाइ गऽ (बा)। ठण्डा हो गया है।  कहीं 'सिराना' खाली होना, काम को निपटा लेना भी है। अइसन सिराइके बइठा हयऽ जइसे कवनो कामइ नाइँ बा।  पूजा सामग्री को विसर्जित करने के लिए भी सिराना क्रिया है। पूजा के बाद सामग्री एकत्र कर नदी, बावड़ी, पीपल तले या तुलसी के वृंदावन में सिराया जाता है। भाव है जल में डुबाकर शीतल करना, या शीतल और शांत स्थान पर पधराना, जैसे मौर सिराना। कुमाउँनी में सेलाण/सेलै जाण रूप हैं। सेराना, सेलूणो, सेलाण, सेलै जाण आदि की व्युत्पत्ति टर्नर और दास के अनुसार शीतल / शैतल्य से मानी गई है। यह सही भी लगता है। "नैन सेराने, भूखि गइ, देखे दरस तुम्हार" —जायसी

मुट्ठी , पौश और अंजुरी

हरियाणवी और कोंकणी में अँजुरी से छोटी माप पस्सा/पस्सो हैं। इसे प्रसृत, प्रसृति से बतलाया गया है। संस्कृत में प्रसृत - हाथ की फैली हुई खाली हथेली, मुट्ठीभर, हथेली भर का मान, दो पलों के मान को कहा जाता है (कहीं "आरोग्यदीपिका" में 2 प्रसति = 1 अँजुली, पस्सा, क्रुडव कहा है।) रोचक लगा, इसलिए भी कि कुमाउँनी में इससे मिलता-जुलता एक शब्द है "पौश"। पौश ओक के समान अनाज आदि के लिए अंगुलियों और हथेली की सहायता से बना एक साँचा है। मुड़ी अंगुलियों वाली हथेली  में अन्न भरकर यदि मुट्ठी बंद हो जाए तो मुट्ठी भर;  खुली मुट्ठी मैं भर कर दिया जाए तो पौश भर। इसकी समाई मुट्ठी से अधिक हो जाती है। कुमाउँनी का पौश मुट्ठी से बड़ी माप है । क्रम इस तरह है - चुट्की , मुट्ठी, पौश और अँचोली। इन सभी में व्यक्ति की मुट्ठी, हथेली, अंगुलियों के आकार के अनुसार समाई में थोड़ा-बहुत अंतर हो सकता है।

देवर और ननद

देवर बोले तो..🌷 वस्तुतः देवर संस्कृत के 'देवृ' शब्द से बना है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाओं में यह थोड़ा बहुत रूप बदलकर प्राप्त होता है। यह जानना रोचक होगा कि देवर भारोपीय भाषा का बहुत पुराना शब्द है।  इसके सजातीय शब्द (कॉग्नेट्स) लिथुआनियाई , रूसी,  हिब्रू आदि भाषाओं में इसी अर्थ में मिलते हैं। प्रवचन शैली में देवर की व्युत्पत्ति प्रायः इस प्रकार की जाती है,  "द्वितीयः वरः"। कुछ लोग इसका हल्का अर्थ क ७रते हैं- वर का अर्थ केवल पति (हस्बैंड, स्वामी, रखवाला) मानकर। वर ३*का वास्तविक अर्थ है श्रेष्ठ। पति भी केवल इसीलिए वर है कि वह पत्नी के लिए अन्य से श्रेष्ठ है। इसलिए यह प्रथम वर है और देवर उसके बाद का, दूसरे नंबर का वर अर्थात् श्रेष्ठ है,‌ पति नहीं। एक और व्युत्पत्ति √दिव् (चमकना) से देवर शब्द को 0vvqb,66,j जोड़ती है "दीव्यते अनेन इति", अर्थात् जिसे देखकर चेहरे पर चमक आ जाए, जिसके साथ मन खिल उठे, वह देवर। ससुराल में नई आई बहू से उम्र में छोटा होने के कारण बहू इसके स्नेह से खिल उठती है। इसलिए वह देवर है। ननद अब बारी ननद की। संस्कृत में एक धातु है √नन

बधाई और शुभकामना

बधाई और शुभकामना बधाई शब्द संस्कृत वर्धापन (वृद्धि, बढ़ती) से विकसित है। विशेष पर्व (होली, दिवाली) उत्सव (विवाह, जन्म, पदोन्नति) समारोह (अवार्ड, सफलता, जीत) आदि बधाई (मुबारक़बाद कांग्रेचुलेशन) के अवसर हैं। बधाई मौखिक, संदेश के रूप में या कुछ उपहारों के साथ भी दी जा सकती है। शुभ कार्य होने पर बधाई के रूप में कुछ भेंट, पुरस्कार या नेग भी दिया-लिया जाता है,"दुवन्नी ले ले ननदी, लल्ला की बधाई!"  शुभकामना भला होने, होते रहने की कामना है और भविष्य के लिये होती है।बधाई विगत/वर्तमान की उपलब्धि, उत्सव, मंगलकार्य पर दी जाती है, शुभकामना प्रारंभ होने से पूर्व। बधाई के साथ शुभकामनाएँ भी दी जा सकती हैं कि भविष्य में भी ऐसा शुभ होता रहे।दूसरे शब्दों में शुभकामना किसी कृत्य या कार्यक्रम के पूर्व दी जाती है। कोई परीक्षा देने जा रहा है तो शुभकामनाएँ देंगे, सफल हो जाने पर बधाई। कोई तीर्थ यात्रा पर जा रहा हो तो शुभकामनाएँ, सफलता पूर्वक यात्रा पूरी कर ली तो बधाई।

गुमानी को याद करते हुए

गुमानी खड़ीबोली हिन्दी के पहले, कवि ठहरते हैं।  हिंदी साहित्य के इतिहास में हिंदी के प्रथम साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र माने जाते हैं ध्यान देने की बात है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के जन्म से चार वर्ष पूर्व गुमाान जी का निधन हो गया था। यह बात और है कि हिन्दी के इतिहास लेखकों को शायद गुमानी की हिंदी रचनाओं के बारे में मालूम नहीं था या कोई पूर्वाग्रह था कि हिंदी साहित्य के इतिहास में गुमानी का नाम उल्लेख नहीं है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि वे अंग्रेजों के सामने ही उनके शासन की आलोचना कर रहे थे और उन्हें बता रहे थे कि अगर कोई वीर राजा हिन्दुस्तान में होता तो तुम यहाँ न होते.  उनकी दो रचनाएँ नमूने के लिए पेश हैं : (इनमें हिन्दी का निखरा रूप भी देखने योग्य है.) दूर विलायत जल का रस्ता करा जहाज़ सवारी है सारे हिन्दुस्तान भरे की धरती वश कर डारी है और बड़े शाहों में सबमें धाक बड़ी कुछ भारी है कहे गुमानी धन्य फिरंगी तेरी क़िस्मत न्यारी है || विद्या की जो बढ़ती होती फूट न होती राजन में  हिंदुस्तान असंभव होता बस करना लख बरसन में। कहे गुमानी अंग्रेजन से कर लो चाहो जो मन में। धरती में नहीं