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धम, धमक और धमाका

धम से धमाका बचपन में टोका जाता था - "धम-धम करके मत चलो। पैर इतना सँभलकर रखो कि पदचाप सुनाई न दे।" यह शिष्टाचार का अंग था कि पदचाप का स्वर तीव्र नहीं होना चाहिए। स्पष्ट है धम या या धम्म ध्वन्यात्मक शब्द है। कोई भारी वस्तु धम्म से नीचे गिरती है। धम से बनता है धमक । धमक कर चलना वही है जिससे हमें शिष्टाचार बरतते हुए बचने को कहा जाता था। सजधजकर चलते हुए किसी की भी चाल में धमक आ ही जाती है, क्योंकि उसकी चमक-दमक के साथ ही साथ चमक-धमक भी आकर्षक होती है। धमकना इससे मिलता-जुलता है, पहचान में शायद न आए कि इसमें भी ध्वन्यात्मक "धम्म" है। कोई अचानक आ जाता है तो वह धम की पदचाप करता हुआ ही आता होगा किंतु जब संयुक्त क्रिया ' आ धमकना ' बनती है तो यह अचानक पहुँचने के लिए होती है। धमकना से ही धमकाना होना चाहिए किंतु धमकाना न तो धमकना का सकर्मक रूप है और न प्रेरणार्थक। वस्तुतः धमकाना बना है " धमकी " से। नामधातु धमकियाना > धमकाना अर्थात् डाँटना-फटकारना, डराना। धमकी में धमक देखने भर की है, भाव में कहाँ लुभावनी धमक और कहाँ डरावनी धमकी! अपनी इच्छा के अनुसार किसी को

बावला और बौड़म

बावला संस्कृत वातुल > प्राकृत बाउल से व्युत्पन्न माना गया है।  मूलतः तो यह ऐसे व्यक्ति के लिए है जिसे (वात) वायु का प्रकोप हो, जो पागल, विक्षिप्त, सनकी हो। इसके अन्य अर्थ हैं- जिसका मानसिक विकास नहीं हुआ हो, मानसिक रूप से अपरिपक्क्व। बोलियों में इसके रूप हैं- बावळा, बावरा, बौरा। संत तुलसीदास तो ब्रह्मा जी से कहलवाते हैं: "बावरो रावरो नाह भवानी।" (हे भवानी, आपका पति तो पूरा बावला है। ऐसा दानी कि जिसके भाग्य में मैं दरिद्रता लिखता हूँ उसे यह सब कुछ दे दे डालता है। अब यह विधाता वाली खाता-बही मैं नहीं सँभाल सकता। आप मेरा त्यागपत्र स्वीकार कीजिए।) भोले-भाले, नादान, अज्ञानी को भी बावरा/बावरी कहा जाता है: "हौं ही बौरी विरह बस कै बौरो सब गाउँ। कहा जानि ये कहत हैं, ससिहि सीतकर नाउँ।। ~बिहारी  बावरी विशेषण केवल विक्षिप्त के अर्थ में ही नहीं है। बावरी होना भोलेपन की वह स्थिति है जिसमें अपनी उपस्थिति का भान नहीं होता, यह ध्यान नहीं रहता कि आसपास क्या घट रहा है। मीरा तो स्वघोषित बावरी है। बावरी अनेकार्थी भी है। अर्थ हैं जलाशय, भोली, मासूम, अबोध। लाक्षणिक अर्थ में पगली भी

धाँसू और घोंचू

धाँसू और घोंचू मुंबइया हिंदी में बढ़िया के लिए प्रचलित हैं - झकास / धाँसू / कड़क / ढिंचेक / रापचिक। इनमें " धाँसू " की अर्थ छबियाँ बहुत हैं। यह बढ़िया, शानदार, आकर्षक, तड़क-भड़क वाला, बलिष्ठ, तगड़ा गज़ब का, अनुपम आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है। अंग्रेजी में great/wonderful/brilliant/gorgeous/stunning/super/formidable इत्यादि के लिए विशेषकर युवा पीढ़ी द्वारा प्रयोग किया जाता है। *** " घोंचू " देशज (अज्ञात व्युत्पत्तिक) शब्द है जिसका अर्थ है निपट मूर्ख, नासमझ। घोंचा (बैल) से बना विशेषण है घोंचू। मूर्ख को लक्षणा में गधा या बैल के रूपक से संकेत किया जाता है। संस्कृत में प्रसिद्ध उक्ति है "गौर्वाहीकः"। अर्थात् वाहीक देश के लोग बैल होते हैं। 

क्वारेन्ताएँ

चार, चालीस और क्वारेंटाइन वैश्विक महामारी ने quarantine शब्द को विश्वव्यापी बना दिया है। यह जानना रोचक होगा कि मूलतः इस शब्द का अर्थ 14 दिन के अलगाव से नहीं, 40 दिन के अलगाव से था। यह शब्द प्रारंभ में इटली में उन जहाजों के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ जिनसे किसी संक्रामक रोग के फैलने की आशंका हो। उन्हें 40 दिन तक समुद्र तट पर लंगर डाले रहना आवश्यक था। उसके बाद ही उसके माल या यात्रियों को मुख्य भूमि में आने की अनुमति होती थी। इतालवी में quaranta का अर्थ है 40 । यह भारोपीय मूल का शब्द है। [(PIE root *kwetwer- <-> संस्कृत चतुर  "four") > चत्वारिंशत् 40]। इसीलिए quarter चतुर्थांश है और दिल्ली में सरकारी आवास की एक इकाई क्वाटर कही जाती थी। ©