सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उल्लू सीधा करना, काठ का उल्लू

हिंदी में एक मुहावरा है "अपना उल्लू सीधा करना।" यहाँ उल्लू शब्द की संगति अस्पष्ट है, इसलिए मुहावरे की लाक्षणिकता का आधार भी नहीं बनता। लक्षणा का लक्षण है, "मुख्यार्थबाधे तद्योगे" अर्थात् जहाँ मुख्य अर्थ में बाधा उपस्थित हो तो उसके आधार पर मुख्य अर्थ से संबंधित अन्य अर्थ को लक्ष्य किया जाता है , वहाँ लक्षणा शब्द शक्ति होती है | अब यहाँ उल्लू का कोशीय अर्थ उस उल्लू नामक विशेष रात्रिचर से लें तो यह मुख्यार्थ में बाधक तो है, किंतु उसके आधार पर, उससे संकेतित अर्थ क्या होगा। क्या मुहावरे का यह यह "उल्लू" उल्लू नामक जीव ही है? ध्यान में रखना होगा कि उल्लू का लक्ष्यार्थ सामान्यतः बुद्धू या मूर्ख से लिया जाता है जबकि इस मुहावरे में अपना स्वार्थ सिद्ध करने की चालाकी छिपी हुई है। किसी ने बताया कि खेत तक पहुँचने वाली छोटी नहर (नाली) को जहाँ से दूसरे खेत की ओर मोड़ा जाना है उस विभाजक पर एक काठ का उपकरण लगा दिया जाता है जिसे उल्लू कहते हैं। जब पानी को अपने खेत ओर मोड़ना हो तो उस काठ के उल्लू को दूसरी ओर सीधा कर देते हैं कि उधर उसका बहाव रुक जाए और पानी अपने खेत की ओर ल

धोबी का कुत्ता

किन्हीं सज्जन की एक फ़ेसबुक पोस्ट पर ट्विटर और फ़ेसबुक पर बड़ी रोचक चर्चा हुई जिसमें कहा गया है कि "धोबी का कुत्ता घर का न घाट का" कहावत में कुत्ता नहीं, "कुतका" का प्रयोग सही है।  यह लोकोक्ति सदियों से ब्रजभाषा, अवधी, भोजपुरी, बुंदेली, नेपाली, कुमाउँनी सहित अनेक अन्य भाषाओं में बहुत पहले से उपस्थित है। 15-वीं सदी के संत कवि गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली में इसका प्रयोग मिलता है। इसका आशय ऐसे व्यक्ति से है जो एक ठिकाने पर जमकर कोई काम नहीं करता । बेकार उधर फिरनेवाला । निकम्मा आदमी। कहावत का कुत्ता घर का इसलिए नहीं कि आमतौर पर कुत्ते का काम होता है घर की रखवाली करना। जब घाट पर जाएगा, तो रखवाली कौन करेगा। घाट का इसलिए नहीं कि वहाँ उसके करने का कोई काम नहीं और आखिर वहाँ से भी धोबी के साथ लौट ही आएगा।  इस लोकोक्ति का एक छोटा रूप भी हिन्दी में चलता है - घर का न घाट का। अंग्रेजी में इसके समकक्ष कहावत है:  Whistling maids and crowning hen, are neither fit for gods, nor for men!  "कुतका" हिन्दी में एक बैटनुमा मोटा डंडा या सोंटा है जो कपड़े को धोने के दौरा

शब्द चर्चा: किसान आंदोलन

आजकल किसान शब्द राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बना हुआ है। हमें उस चर्चा से अधिक इस शब्द की व्युत्पत्ति और चलन पर सोचने का मन हुआ है कि यह बना कैसे और इसकी व्याप्ति क्या है। किसान शब्द का मूल खोजते हुए संस्कृत के √कृष् धातु की ओर ध्यान जाता है। कृष् का अर्थ है खींचना, चीरना, हल चलाना, खेती करना आदि। कर्षण, आकर्षण में भी यही कृष् है और इस आकर्षण के कारण ही कृष्ण कृष्ण कहलाते हैं। कृष् से अनेक अन्य शब्द बने हैं जिनमें एक है कृषक। कृषक अर्थात् हलवाहा, किसान, हल की फाल। किसान सीधे भी इसी कृष् धातु से जुड़ा है। कृष् से प्राकृत में एक शब्द बना है कृषाण और कृषाण से ही हिंदी में बन गया किसान। कृषक, कृषिकर्मी, कृषीबल किसान के अन्य नाम हैं। कृषाण, किसान दोनों का एक अन्य अर्थ आग भी है।  तुलसी ने लंकादहन में कृसानु का प्रयोग किया है। पृथ्वीरासौ में "भूपति के सुनिकै वचन उर में उठी किसान।"  तो क्या आजकल इन किसानों के उर में भी उस अग्निवाची किसान की ज्वाला उठी है? जंगली जीवन से सभ्यता की ओर बढ़ते हुए मनुष्य का शायद पहला व्यवसाय किसानी ही रहा हो। भारत में कृषि के भाषिक