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भाड़, चूल्हा और तंदूर

आवेश या झुँझलाहट में आपने ऐसी कुछ उक्तियाँ सुनी होंगी: भाड़ में जाए तुम्हारी सलाह ... चूल्हे में जाय तुम्हारा तमाशा ... भाड़ में डालो अपनी सौगात ... भट्ठी से निकला भाड़ में पड़ा ... (छोटी विपत्ति से निकलकर बड़ी विपत्ति में फँसना)। भट्टी, भट्ठी, भज्जी, भुज्जी, भाजी और भाड़ ये सब संस्कृत की भ्रस्ज् (भूनना, पकाना) धातु से जन्मे हैं, इसलिए एक ही परिवार के सदस्य हैं। बस, परिस्थिति के मारे अलग-अलग कामों में फँसे और अलग-अलग नामों से पहचाने जाने लगे।  भट्ठी की व्युत्पत्ति संस्कृत √भ्रस्ज् > भ्राष्ट > प्राकृत भठ्ठ > हिंदी भट्टी/भट्ठी है। भट्ठी विशेष आकार-प्रकार का ईंट, मिट्टी आदि का बना हुआ चूल्हा है जिसके अनेक उपयोग हैं और उनके अनुसार ही भट्ठी का आकार-प्रकार होता है। पारंपरिक विधि से  रसादि दवाइयाँ बनाने वाले वैद्य, सुनार, लोहार सब की भट्ठियाँ अलग-अलग होती हैं। इत्र बनाने वाली भट्ठी भभका भट्ठी कहलाती है। चना, मक्का, मूँगफली आदि भूँजने वाले की भट्ठी को भाड़ कहा जाता है। भाड़ से ही शब्द बना है भड़भूँजिया। चूना फूँकने वाली, ईंट, खपरैल, मिट्टी के बर्तनों (सिरैमिक) को पकाने वाली बड़ी भट्ठी