सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मोदी जी का भाषाई योगदान

मोदी जी का भाषाई योगदान नरेंद्र दामोदर दास मोदी देश के चौदहवें पंत प्रधान (प्रधानमंत्री) हैं। उनकी कार्यशैली अपने पूर्ववर्ती सभी प्रधानमंत्रियों की तुलना में काफी भिन्न है। वे कई मानों में “सर्वप्रथम” होंगे। उनमें से एक है उनका भाषाई योगदान। नये-नये नारे गढ़ना, नये संयुक्ताक्षर सुझाना, पदबंधों की अपने तरीके से पुनर्व्याख्या करना, नए नामकरण आदि उनकी विशेषताएँ हैं। मैं नहीं समझता कि किसी और प्रधान मंत्री ने ऐसी प्रत्युत्पन्न मति  पाई हो या ऐसा करने का विचार उन्हें सूझा भी हो। इस दिशा में हिंदी-अंग्रेजी दोनों में उनके  “योगदान” का संक्षिप्त उल्लेख यहां पर करना समीचीन होगा:  दिव्यांग तथा ब्रेन गेन  किसी के विकल अंग को दिव्य कहना यद्यपि उसका उपहास करना है किंतु चूँकि यह मोदी जी का भाषिक प्रयोग था इसलिए दिव्यांग शब्द सरकार द्वारा अपनाया गया और चल पड़ा। इस शब्द के अतिरिक्त कितने और शब्दों का योगदान उन्होंने किया मुझे नही मालूम।  एक और शब्द याद आ रहा है - “ब्रेन गेन” (Brain Gain) जो “ब्रेन ड्रेन” (Brain Drain) के ठीक उलट अर्थ वाली प्रक्रिया को दर्शाने के लिए सुझाया गया था। आशय था बौद्धिक कौशल वा

हिंदी के टैबू शब्द

  भाषा क्योंकि समाज की दैनिक व्यवहार में आने वाली संपत्ति है, इसलिए मनुष्य के प्रत्येक भाव के संप्रेषण के लिए उसके शब्द भंडार में कोई न कोई उपयुक्त शब्द है किंतु समाज के विभिन्न स्तरों के अनुसार शब्द विशेष के प्रयोग में भी कुछ सावधानियों और कुछ अलिखित नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इन्हें सामान्यतः हम समाज - मनोवैज्ञानिक नियंत्रण Sociolinguistic Controls कहते हैं अर्थात शब्द का कोशीय अर्थ उपयुक्त होते हुए भी उसके प्रयोग पर कुछ प्रतिबंध होते हैं।  इन्हें सामान्य बोलचाल में वर्जित, प्रतिबंधित या टैबू शब्द कहा जाता है। ऐसे अनेक शब्द प्रत्येक भाषा के अपनी पूँजी होते हैं। हिंदी के कुछ टैबू शब्दों की चर्चा करें। हिंदी क्योंकि एक व्यापक प्रदेश की भाषा है, अनेक बोलियों का समवेत रूप है, इसलिए इसमें ऐसे शब्द भी हैं जो हिंदी की एक बोली में तो प्रतिबंधित हैं पर दूसरी में सामान्य व्यवहार में भी आ सकते हैं। सामान्यतः कुछ ऐसे टैबू शब्द और अभिव्यक्तियाँ हैं जो अकेले हिंदी क्षेत्र में ही नहीं, प्रायः अखिल भारतीय रूप से प्रतिबंधित कही जा सकती हैं । आने या जाने के लिए प्रयुक्त सामान्य क्रिया शब्द के

मंडुवाडीह के बहाने कोदो-मड़ुआ और बनारस

  स्थान नामों को बदलने की धुन में एक ही झटके में मँडुवाडीह को बनारस कर दिया गया किंतु प्राचीन परंपरा, संस्कृति और भारतीयता के रक्षकों को यह समझ नहीं आया कि ऐसा करके संस्कृति के एक बहुत पुराने सूत्र को एकदम मिटा दिया गया है। डीह" शब्द उत्तर भारत और नेपाल के अनेक स्थान नामों के साथ जुड़ा है। डीह ऐसे स्थान हैं जहां प्राचीन मंदिरों, बस्तियों के अवशेष थे और अब किसी ढूह या टीले में बदल गए हैं। डीह वैदिक संस्कृत और लौकिक दोनों में है। मध्यप्रदेश में राँची का स्तूप राँची डीह पर बना है। रही बात मँडुआ और मंडुवाडीह की। कभी इस डीह में मंडुवा नामक मोटा अनाज अधिक उगाया जाता होगा। सो नाम हो गया मंडुवाडीह। यह मडवा/मडुआ अन्न तो गरीब का पोषक और लोक संस्कृति में कभी ना भुलाया जाने वाला नाम है। मंडुआडीह संत कवि रैदास का जन्मस्थान भी था। सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह की एक कविता "बनारस" में भी इसका उल्लेख है:   "इस शहर में वसंत अचानक आता है और जब आता है तो मैंने देखा है लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से उठता है धूल का एक बवंडर और इस महान पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है.."          

कथा पूर्ण विराम की

  कथा पूर्णविराम की हिंदी में सभी विराम चिह्न अंग्रेजी (लैटिन मूल की अन्य भाषाओं) से ज्यों के त्यों ले लिए गए हैं। केवल पूर्ण विराम का चिह्न पारंपरिक है। उसका भी एक विकल्प बिंदु (full stop) के रूप में उपस्थित है और प्रयुक्त भी हो रहा है। सहज प्रश्न उठता है कि क्या भारतीय परंपरा में विराम चिह्न अपने नहीं थे उत्तर इसके समर्थन में यही उत्तर, होगा - हां केवल पूर्ण विराम को छोड़कर। वस्तुतः संस्कृत में प्रारंभ के वैदिक साहित्य में विरामचिह्नों की आवश्यकता थी ही नहीं। मौखिक परंपरा थी और गुरुओं के द्वारा शिष्यों को उच्चारण, विराम, गति - यति आदि सहित मंत्रों को रटा  दिया जाता था और यही परंपरा चलती रही।  कालांतर में जब लिपि चल पड़ी और पारंपरिक साहित्य को लिखा जाने लगा तो  एक पूर्ण विराम ही पर्याप्त था। जब श्लोकों, मंत्रों की क्रमिक गणना आवश्यक हो गई तो प्रत्येक के साथ दो विराम चिह्नों के बीच श्लोक संख्या भी दे दी गई और यही परंपरा चल पड़ी।  हिंदी में भी प्रारंभ में कविताएँ ही रची गईं इसलिए इकहरे या दोहरे खड़ी पाई वाले विराम से काम सरलता से चलता रहा। गद्य काल में अवश्य विराम चिह्नों की आवश्यकता अन

उछल-कूद की बातें

  उछलना (उछालना, उछाल) सामान्यतः एक धरातल से वेगपूर्वक उठना ही उछलना है| संस्कृत में उद्+शल् (दौड़ना) से ल्युट् प्रत्यय जोडकर उच्छलन बनता है| हमारे राष्ट्रगीत के ‘उच्छल-जलधि-तरंग’ में यही ‘उच्छल’ है| इसका सामान्य अर्थों में प्रयोग है: गेंद उछलती है, बच्चे भी उछलते हैं किन्तु लाक्षणिक प्रयोग अधिक रोचक और विविध हैं| जैसे: अरहर के दाम उछलते हैं| सोने में उछाल आता है| आजकल शेयरों में उछाल दिखाई पड़ता है| मेरे सामने में उछलो मत, मैं तुम्हारी असलियत जानता हूँ|     घमंड करना शुरूआती दौर का रुझान देखकर नेताजी उचल पड़े|             इतराना सफलता का समाचार सुनकर विद्यार्थी उछल पड़ते हैं| भ्रष्टाचार की बात उछाली जाती है| किसी की प्रसिद्धि में भी उछाल आता है| लोग एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं| समुद्री तूफ़ान से लहरों में उछाल आता है| अर्थ में उछलना के निकटस्थ मित्रों में हैं, कूदना, फाँदना, छलांगना और लाँघना| कूदना तो संस्कृत का कूर्दन ही है| कूदना में किसी सतह से उछलकर उसी धरातल पर वापिस आने की क्रिया है| यह क्रिया के साथ जोड़ीदार बनकर भी आता है और स्वतंत्र भी| वह तालाब से कूदा| बंदर पेड़ से कूद पड़ा| उछलन

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म