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पिता और बाप की बात

पिता यों कालिदास ने रघुवंश में पिता का गुणगान कुछ इस प्रकार किया है: प्रजानां विनयाधानाद् रक्षणाद् भरणादपि । स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः॥ ॥ रघुवंशम् 1.24॥ वह (दिलीप) विनयनीति सिखलाने, रक्षा करने और पालन करने ( पिता के कर्तव्य निभाने) से अपनी प्रजा का पिता था। उन प्रजाजनों के माता-पिता तो केवल जन्म देने के ही निमित्त कारण होने से पिता थे। बाप संस्कृत की √वप् धातु से इनका उद्गम माना जाता है। √वप् का अर्थ होता है बीज बोना, पौधा लगाना,रोपना आदि। ये सब कार्य सुरक्षा, पालन और देखरेख से जुड़े कर्म हैं। वप् और बाप का ध्वन्यार्थ समझना आसान है। वामन शिवराव आप्टे के संस्कृत कोश के अनुसार इससे बने "वप्रः" शब्द का एक अर्थ है खेत और दूसरा अर्थ है पिता। हिन्दी शब्दसागर के अनुसार इसी मूल से बने 'वापक का अर्थ है बीज बोने वाला। वप्ता (वापक) का अर्थ है जन्मदाता। भूमि में बीज बोनेवाला कृषक है जो खेती का मालिक भी है और फ़सल का पिता भी। जन्मदाता के तौर पर बीज बोने वाले पात्र की व्यंजना बहुत महत्वपूर्ण है। वप्र, वापक या वप्ता का रूपांतर व का ब होने से वप्ता > बप्ता > बप्

विकलांग या दिव्यांग

Handicapped के लिए हिंदी में #विकलांग शब्द अरसे से चल रहा है और वांछित अर्थ का काफी हद तक यह ठीक संकेत करता है कि विकलांग जन के किसी अंग में कोई विकलता या अक्षमता है: विकल+अंग। किंतु इधर कुछ समर्थ स्रोतों ने उसके लिए एक नया शब्द गढ़ा है #दिव्यांग। क्योंकि देश के प्रधानमंत्री ने इस शब्द का उल्लेख कर दिया, इसलिए मीडिया इसे ले उड़ा; बिना इस बात की चिंता किए हुए के इस शब्द से वह विकलांग जन का न केवल मजाक उड़ा रहा है बल्कि उन्हें अपमानित भी कर रहा है। निस्संदेह यह शब्द सुन्दर, कर्णप्रिय और एक सीमा तक सम्मान-द्योतक भी लगता है, परंतु जिस विषय पर बात की जा रही है उसके संदर्भ में अर्थपूर्ण नहीं लगता है। इससे वह अर्थ नहीं ध्वनित होता जो शारीरिक अक्षमता को दर्शाता हो। √दिव् धातु कई अर्थों में प्रयुक्त होती है, किंतु इससे व्युत्पन्न विशेषण दिव्य में इसका अर्थ स्पष्टतः चमकना या उज्ज्वल होना है। तदनुसार इस विशेषण शब्द के अर्थ हैं दैवी, स्वर्गीय, अलौकिक, उज्ज्वल, मनोहर, सुन्दर इत्यादि। कुल मिलाकर दिव्य उस विशिष्ठता को व्यक्त करता है जिसकी केवल कामना की जा सकती है, ऐसी विशिष्ठता जो देवताओं को उ