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शब्द-विवेक -1: निम्न और निम्नलिखित

निम्न 【नि+√म्ना +क】स्वतंत्र विशेषण है; अर्थ है नीच, नीचे का, ढलान वाला, घटिया। शब्द के पहले जोड़ा जा सकता है - निम्नलिखित, निम्नवर्ग, निम्नकोटि, निम्नगा (नदी), निम्न विचार आदि। निम्नलिखित 【निम्न + √लिख् +क्त】अर्थात् नीचे लिखा हुआ ( विशेषण) हिंदी में निम्नलिखित को छोटा करके केवल निम्न से काम चलाने लगे हैं, इससे अर्थ बदल जाता है। जैसे: • निम्नलिखित सदस्य उपस्थित थे। (=वे सदस्य उपस्थित थे जिनके नाम नीचे लिखे हैं।) • निम्न सदस्य उपस्थित थे। (=घटिया सदस्य उपस्थित थे।)

व्रत, उपवास और अनशन

व्रत ••• भक्ति, साधना या किसी धार्मिक अनुष्ठान और नियम पालन के लिए दृढ़ संकल्प पूर्वक किया गया कोई विधान व्रत कहा जाता है। सत्यव्रत, पतिव्रत, ब्रह्मचर्य व्रत, एकादशी, पूर्णिमा, रामनवमी आदि ऐसे ही व्रत हैं जिनमें एक विशेष प्रकार का आचरण अपेक्षित होता है। भोजन करने या न करने से इसका विशेष संबंध नहीं। यह तो किसी उद्देश्य के लिए किया गया एक प्रण, संकल्प (resolve) है। दिनभर भोजन न करना अथवा स्वल्प भोजन (उपवास) भी उस आचरण का एक अंग हो सकता है, जैसे एकादशी, प्रदोष या सत्यनारायण व्रत में। उपवास ••• उपवास (उप+√वस्) का मूल अर्थ तो अपने आत्म, आराध्य, गुरु या मंत्र के निकट होने, वसने के लिए किया जाने वाला विशेष आचरण था जिसमें भोजन सहित अनेक सुविधाओं को त्यागकर एकोन्मुखी होना उद्देश्य होता था। धीरे-धीरे यह भोजन न करने का पर्याय हो गया। धार्मिक दृष्टि से या किसी सामाजिक - राजनैतिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भोजन न करने (अनशन) के अर्थ में भी आज उपवास शब्द का प्रयोग होता है। जैसा कि कहा गया, उपवास समग्र व्रत-विधान का एक अंग भी है।  आगे जब यह भोजन न करने का पर्याय हो गया तो राजनीतिक अस्त्र के रूप में भ

आटा, चून और पीठ

आटा   āṭā  (सं) आर्द (जोर से दाबना) > ( प्रा) अट्ट से व्युत्पन्न हुआ है। अर्थ है किसी अन्न का पिसा चूरा, पिसान (पिसा अन्न), बुकनी,  पाउडर। इसके लिए दूसरा संस्कृत शब्द है चूर्ण जिससे हिंदी में चून बना। अनेक प्रकार का चून (चूर्ण) बेचने वाले कहलाए परचूनिये ।     'आटा' के लिए फ़ारसी शब्द है आर्द, जो संस्कृत आद का ही प्रतिरूप प्रतीत होता है। कुछ प्रमुख भारतीय भाषाओं में आटो (गुजराती), ओटू (कश्मीरी), पीठ (मराठी), पीठो (नेपाली), अट्टसु (कन्नड़), आटा (पंजाबी, बांग्ला, ओड़िया)। तमिल और मलयालम में आटा से भिन्न "मावु" है। अब हिंदी क्षेत्र में आटा शब्द गेहूँ के आटे के लिए रूढ़ हो गया है। अन्य अनाजों के आटे के लिए आपको अन्न का नाम भी साथ लगाना पड़ता है; जैसे चावल का आटा, जौ का आटा, बाजरे का, चने का, सिंघाड़े का, कुट्टू का आदि। धुले गेहूँ के बहुत महीन आटे को मैदा और चने के ऐसे ही विशेष आटे को बेसन (वेशन सं > वेषण प्रा) कहा जाता है। कुमाउँनी में आटा केवल जौ का आटा ही है। उसके साथ जौ कहने की आवश्यकता नहीं।  गेहूँ के आटे के लिए अवश्य कहा जाता है ग्यूँक् पिस्यूँ (पिस्यूँ =पिसान से

स्वजन-परिजन

संस्कृत की √जन् धातु से बने हैं जन, जनक, जननी, जनन, जन्म आदि तत्सम शब्द। उपसर्ग-प्रत्यय लगने पर इस जन से और बहुत से शब्द बनते हैं -  दुर्जन, सज्जन, स्वजन, जनशून्य, निर्जन (जनहीन), विजन (बीरान), परिजन, कुटुंबी जन, महाजन आदि। यों तो जन शब्द पुल्लिंग-स्त्रीलिंग दोनों के लिए आ सकता है किंतु हिंदी में जना (एक) पुल्लिंग शब्द है जिससे बहुवचन बनता है जने। जैसे: एक जना इधर आओ, दो जने बैठे रहो। हिंदी में अब प्रायः स्वजन और परिजन को समानार्थी मान लिया गया है, जबकि शब्द रचना की दृष्टि से दोनों भिन्न हैं। स्वजन में अपने (स्व) कुटुंब के रक्त संबंधी, पति-पत्नी, माता-पिता, चाचा, ताऊ, मामा आदि कुटुंबी जन ( वे उसी कुटुंब में न रहकर देश-विदेश में कहीं भी हो सकते हैं), आत्मीय, नाते - रिश्तेदार आएँगे। मिथिला के समाज में स्वजन-परिजन में पर्याप्त विभेद है रीति रिवाज, मान्यताओं और खानपान आदि सामाजिक व्यवहार में। विभेद से इतना तो स्पष्ट है कि स्वजन में निकटतम बांधव और संबंधी आते थे, परिजनों में स्वजनेतर। पहले ज़माने में कुमाऊँ में भी यह भात-भेद बहुत था। 'परि-' उपसर्ग परितः, चारों ओर, आसपास के अर्थ में आ