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सितंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

व्यंजनों के भाषाई कनेक्शन

  1.  उपमा चर्चा  वागर्थ विचार में भाषा चर्चा के बीच उपमा व्यंजन की चर्चा देखकर चौकें नहीं। हम पाकविधि की बात नहीं कर रहे, हम उपमा शब्द की बात कर रहे हैं। वस्तुतः उपमा मेरा प्रिय नाश्ता है, यह बात और है कि प्रारंभ में मैं इस नाम का संबंध अलंकार शास्त्र से जोड़ता था। यह शब्द मुझे कालिदास की याद दिलाता था और मैं हैरान होता था कि भला कविता से इस व्यंजन का लेना देना क्या?  दरअसल उपमा शब्द तमिल भाषा का है और 2 शब्दों का मेल है - उप्पु अर्थात नमक और मावु अर्थात आटा! तो नमक और आटे के प्रधान घटकों के साथ बनने वाला व्यंजन कहा गया उप्पमा (उप्पु +मावु = उप्पमा > उपमा), यह बात और है कि अब उपमा के आशिकों ने सूजी, चावल, दलिया ओट्स आदि के उप्पमा ढूँढ़ लिए हैं। दक्षिण की चारों प्रमुख भाषाओं,  उनकी बोलियों में यही शब्द है। किंतु कर्नाटका के कुछ भाग में इसे उपीटु/उप्पीट्टू भी कहा जाता है। यह मराठी का प्रभाव है क्योंकि मराठी भाषा में आटे को पीठ कहते हैं। इसलिए शब्द रचना प्रक्रिया में  उपीट या उपमा भी समान हैं। 2. दोसा चर्चा दोसा/ डोसा व्यंजन आज अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय है। यों भी कहा जा सकता है इस

इंङ्गे हस्तिनापुर से उङ्गे तमिळनाडु

बागपत, बड़ौत, मेरठ, सहारनपुर (उप्र) और इनसे जुड़े हरयाणा के क्षेत्रों में कुछ लोगों में कंगे/किंगे (किधर,कहाँ), उङ्गे (उधर, वहाँ), इंगे (इधर, यहाँ) शब्द सुने जाते हैं जो तमिळ के एंगे, इंगे, उङ्गे के समान ही लगते हैं, रचना और अर्थ दोनों में। हिंदी की बोलियों और कुछ पड़ोसी  भाषाओं में इन स्थानवाची क्रियाविशेषणों के लिए अलग अलग शब्द हैं। जैसे :   गढ़वाली.. कख, यख, उख;  कुमाउँनी में काँ, याँ, वाँ; कथां, यथाँ, उथाँ;  ब्रज में कितै, इतै, उतै;  मालवी में कईं, यईं, उईं;  बघेली में किंठे, इण्ठे, उण्ठे  पंजाबी में कित्थे, इत्थे, उत्थे नेपाली में कहाँ, यहाँ, त्यहाँ आदि। यह बहुत रोचक है। सतही तौर पर ये प्राकृत > संस्कृत से निष्पन्न जान पड़ते हैं  जो संभवतःमागधी भाषाओं के प्रभाव से आए होंगे। जैसे भोजपुरी में इधर को 'एने' और उधर को 'ओने' कहा जाता है। बांग्ला और ओड़िया में भी मिलते-जुलते रूप हैं। कुल मिलाकर ये बहुत प्राचीन रूप हैं मागधी आदि को पुनः प्राकृत > संस्कृत से जोड़ा जाएगा।  किंतु फिर वही बात कि प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश में कहाँ से? संस्कृत में किम, इदम्, तद् सर्वनामों से त्

नमस्ते के साथ - साथ

जब दो परिचित या अपरिचित व्यक्ति आपस में मिलते हैं तो कार्य व्यापार प्रारंभ होने से पहले परस्पर अभिवादन किया जाता है। यह अभिवादन उनकी उम्र, शिक्षा, सामाजिक स्तर, लिंग, जाति, परस्पर विश्वास तथा अन्य अनेक कारकों पर निर्भर होता है और इन्हीं के आधार पर अभिवादन के कुछ शब्द समाज स्वीकृत हो जाते हैं। हिंदी के संदर्भ में बात करें तो तीन बहुप्रचलित शब्द सबसे पहले याद आते हैं- नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम। तीनों का मूल एक है संस्कृत की √नम् धातु, जिसका अर्थ है झुकना, विनम्र होना।  यों भारत में अभिवादन के लिए बीसियों शब्द प्रचलित हैं। राम-राम, राधे राधे, जय श्री कृष्ण, जुले, सत श्री अकाल, जय जिनेंद्र, ढाल करूँ, पायलागी, पैरी पैणा,  नमो नारायण, अलख निरंजन और भी अनेक। किंतु देश भर में सर्वाधिक प्रचलित अभिवादन है- नमस्ते।  नमन, नमस्ते, नमस्कार, प्रणाम इन सबमें झुकने का भाव प्रधान है। हम जिसे भी नमन कर रहे हों उसके सामने हमारे शरीर की मुद्रा किसी न किसी रूप में झुकने की होती है। वह चाहे थोड़ा सा सिर झुकाने की हो, चाहे सिर सहित धड़ झुकाने की हो, चाहे दंडवत अर्थात् लाठी के समान चरणों के सामने लेटने की हो,

तमिलनाडु में हिंदी विरोध की जड़ें

  तमिलनाडु में हिंदी की जड़ें   • सुरेश पंत (विद्यावारिधि) भाषा की राजनीति खेलनेवाले और राजनीति की भाषा बोलनेवाले जैसा वातावरण बनाने का प्रयास प्रायः करते रहते हैं , उससे यह सहज ही विश्वास नहीं होता कि आज जहां से हिंदी-विरोध का स्वर मुखर हो रहा है , वहां हिंदी की जड़ें शताब्दियों पुरानी हैं। किंतु सत्य किसी के विश्वास-अविश्वास की अपेक्षा नहीं करता। इतिहास साक्षी है कि दक्षिण में हिंदी का प्रयोग शताब्दियों से होता आया है।   हिसाब-किताब हिंदी में बहमनी राजाओं के बारे में कहा जाता है कि वे अपना हिसाब-किताब हिंदी में रखा करते थे। मराठों का हिंदीप्रेम प्रसिद्ध ही है , जो अपने चरमोत्कर्ष के दिनों में वर्तमान तमिलनाडु के बहुत बड़े भू-भाग के शासक थे। उनके साथ भी हिंदी तमिलनाडु में पहुंची।   मराठा शासक सर्बोजी महाराज का भाषा , साहित्य और कलाओं से प्रेम बहुत प्रसिद्ध है। उनका संग्रह तंजाऊर स्थित ' सरस्वती महल ' आज भी विद्वानों का तीर्थ है। मराठों की विशेषता इस बात में भी है कि उन्होंने विजेता के रूप में भी अपनी मराठी भाषा को दूसरों पर लादने का प्रयत्न नहीं किया , वरन् मध्य देश की भाषा हि