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जल जीवन

जल को जल क्यों कहा जाता है! जल को संस्कृत की √जल् धातु से व्युत्पन्न माना जाता है। अर्थानुसार इसके दो कारण हैं: १.√जल् आच्छादने, जलति आच्छादयति भूम्यादीनिति। जिससे पृथ्वी में सब कुछ आच्छादित (ढका हुआ) है, जो सब में व्याप्त है वह जल २. √जल् जीवने, जलति जीवयति लोकान् वा।  जो सभी प्राणियों को जीवन देता है वह भी जल। इसीलिए जल को जीवन भी कहा जाता है। हिंदी में यों तो जल और पानी का  कोशीय अर्थ एक ही है, किंतु प्रयोग में कहीं-कहीं समाज भाषा वैज्ञानिक नियमन है। गंगा का पानी गंगाजल होगा किंतु किसी गड्ढे-नाले का जल पानी कहलाएगा । पूजा अर्चना अभिषेक आदि में जल का प्रयोग होता है स्नान के लिए आप जल और पानी दोनों का प्रयोग कर सकते हैं किंतु यदि तीर्थ में स्नान कर रहे हों या किसी शुभ कार्य से पहले स्नान कर रहे हों तो प्रायः जल को वरीयता दी जाती है। पारिभाषिक शब्दावली में पानी एक प्रकार से वर्जित है, सर्वत्र जल का प्रयोग होता है- जलीकरण, जलवाष्प, निर्जल, अधोभौमिक जल आदि। यहाँ जल का स्थानापन्न पानी नहीं हो सकता। पानी शब्द संस्कृत में पानीय है। संस्कृत में पीने के अर्थ में √पा धातु है। √पा से अनीयर् प्र

कचहरी

कचहरी   کَچَہْرِی ‎ कचहरी को शब्दसागर ने देशज अथवा संस्कृत कष + गृह = कषगृह > कशघरी > कछहरी > कचहरी । संस्कृत में कष का अर्थ घिसना, परखना, कसना, जाँचना है। इसी से शब्द बना है कष-पट्टिका (कसौटी) कष-पाषाण (शुद्धता जाँचने-परखने का पत्थर)। कसौटी शब्द संस्कृत के कृत्यगृह से व्युत्पन्न भी माना गया है। कृत्य (कर्तव्य) + गृह (घर) > कच्चघरी > कचहरी। संस्कृत कृत्य-गृह का अशोक कालीन प्राकृत में "कच्चघरिका" रूप मिलता है जो अपभ्रंश से हिंदी/उर्दू तक आते-आते कचहरी बन गया। कचहरी वह स्थान है जहाँ बैठकर न्यायाधिकारी वाद-विवादों पर निर्णय लेते हैं। इसके अन्य अर्थ हैं - दरबार, राज-सभा, न्यायालय, अदालत, इजलास, मजमा आदि। कचहरी से अनेक मुहावरे बने हैं; जैसे कचहरी लगना/लगाना, ~बैठना, ~उठना, भरी~, खुली~, कोर्ट-कचहरी के फेरे। यह शब्द मुगल, मराठा, दक्षिण के अनेक राजा-रजवाड़ों के कामकाज का प्रमुख शब्द हो गया था। फिर कम्पनी और अंग्रेजी राज में कोर्ट-कचहरी के चक्कर आम हो गए तो लोकप्रियता में कचहरी को अखिल भारतीय शब्द बनना ही था। आज भारत की प्रायः सभी प्रमुख भाषाओं में कचहरी, कचेरी, कच्चेर

शब्द विवेक - संगठन, संघटन और संघ

संगठन और संघटन में प्रायः अंतर करना कठिन हो जाता है। मूल संस्कृत शब्द तो संघटन है किंतु हिंदी में संगठन इसके समानांतर चल पड़ा है और संघटन की अपेक्षा अधिक प्रचलित है। जोड़ने, रचना करने के अर्थ में √घट् धातु से बने 'घटन' के पूर्व सम् उपसर्ग जुड़ने से बनता है संघटन। संगठन इसका हिंदी में विकसित रूप है। अब चूँकि दोनों शब्दों की रचना दो भिन्न धातुओं से नहीं है, इसलिए संघटन को तत्सम तथा संगठन को तद्भव भी माना जा सकता है। इन दोनों के अर्थ क्षेत्र परस्पर मिले हुए हैं किंतु इधर पारिभाषिक शब्दावली के रूप में दोनों में स्पष्ट अंतर किया जाने लगा है। संगठन बिखरी हुई शक्तियों, लोगों या अंगों आदि को इस प्रकार मिलाकर एक करना कि उनमें नया जीवन या बल आ जाए, किसी विशिष्ट उद्धेश्य या कार्यसिद्धि के लिये बिखरे हुए अवयवों को मिलाकर एक और व्यवस्थित करना, एक में मिलाने और उपयोगी बनाने के लिये की हुई व्यवस्था संगठन (organization) है। प्रबंधन विज्ञान के अंतर्गत संगठन वह आंतरिक व्यवस्था है जिसके अंतर्गत यह देखा जाता है- उत्पादन के विभिन्न उपादानों को एकत्र कर उन्हें काम पर लगाना तथा उनके बीच ऐसा सहयोग एव

नाम चर्चा : सागर माथा

एवरेस्ट, चीन और नेपाल की सीमा पर हिमालय का सर्वोच्च शिखर। नाम तत्कालीन भारत के सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट (CB   FRS FRAS FRGS) के नाम पर रखा गया, यद्यपि आंकडों के आधार पर ऊँचाई तय की थी देहरादून के ऑफिस में बैठे राधानाथ सिकदर नाम के कर्मचारी ने। विडंबना यह रही कि अपने जीवनकाल में एवरेस्ट पर्वत को न जनरल एवरेस्ट देख पाए, न राधानाथ सिकदर। पर्वत दो देशों की सीमा पर है और दोनों देशों में इसके नाम अलग हैं। नेपाल में सगरमाथा और चीन (तिब्बत) में ཇོ་མོ་གླང་མ ( चोमो लुंगमा )। भारत में यह एवरेस्ट और सागरमाथा इन दोनों नामों से जाना जाता है, यद्यपि एक नाम और ढूँढ़ा गया है देवगिरि। कुछ नवोन्मेषी भारतीय इसे राधानाथ सिकदर का नाम देना चाहते हैं। यह प्रयास 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' जैसा है क्योंकि पर्वत भारत का नहीं, चीन-नेपाल का है तो भारत नामकरण संस्कार कैसे कर सकता है! यहाँ विचार किया जाएगा कि एवरेस्ट के नेपाली प्रचलित नाम की व्युत्पत्ति क्या है और कितनी ठीक है। नेपाली भाषा में इसे सागर/सगर माथा कहा जाता है। माथा शब्द संस्कृत भाषा के मस्तक से बना है। नाम सागर माथा मानें तो अर्थ

अइयो रामा!

हम "शुद्ध हिंदी" का तर्क देते हुए अपने  यहाँ सैकड़ों-हजारों वर्षों से आम व्यवहार में आ रहे फ़ारसी, अरबी, तुर्की शब्दों को विदेशी बताकर उनका बहिष्कार करने की बात करते हैं। यह बात और है कि अंग्रेजी शब्दों को ठूँस कर हिंदी को हिंग्लिश बनाए जाने पर विशेष ध्यान नहीं देते। अंग्रेजी के विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय शब्दकोश Oxford English Dictionary (OED) प्रत्येक वर्ष चार बार अपने शब्दसागर में उन नए शब्दों को जोड़ती है जो दुनिया की किसी भाषा के हों किंतु अंग्रेजी में प्रयुक्त होने लगे हों। OED में जुड़े कुछ नए हिंदी/उर्दू शब्दों में हैं -- योग, योगासन, सूर्यनमस्कार, दीदी, आधार, डब्बा, शादी, अण्णा, दादागिरी, हड़ताल, अच्छा, चटनी, मसाला, पूरी, पक्का, यार, बदमाश, गंजा आदि। अन्य भारतीय भाषाओं से भी सैकड़ों शब्द खुले दिल से OED में अपनाए गए हैं। उनमें एक है पूरे दक्षिण भारत और श्रीलंका में सबसे लोकप्रिय द्रविड़ मूल का शब्द "अइयो!" यों तो अइयो! आश्चर्य बोधक है, पर व्यवहार में यह बहुत ही व्यापक है और आश्चर्य ही नहीं, सभी प्रकार के भावनात्मक उद्वेगों में समान रूप में कहा जाने वाला तात्कालिक

अज्ञ बने विशेषज्ञ

अज्ञों के सम्मान में विशेषज्ञ ज् और ञ के संयोग से बना हुआ संयुक्त अक्षर है ज्ञ । यह एकाक्षरी  स्वतंत्र शब्द भी है जिसका अर्थ है ज्ञानी, ज्ञानवाला, जानकार। ज्ञ का स्वतंत्र प्रयोग कम होता है और किसी शब्द के साथ प्रत्यय के रूप में ज्ञ जोड़कर इससे समस्त पद बनाए जाते हैं; जैसे शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, निमित्तज्ञ, विधिज्ञ, कार्यज्ञ, दैवज्ञ, शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ, अज्ञ, विशेषज्ञ । अमरकोश के अनुसार --   विद्वान्विपश्चिद्दोषज्ञः सन्सुधीः कोविदो बुधः।  धीरो मनीषी ज्ञः प्राज्ञः संख्यावान्पण्डितः कविः॥ #   #    आजकल टीवी चैनलों, विद्वानों की गोष्ठियों में कभी-कभी ऐसे विशेषज्ञ आ जाते हैं जिन्हें "विशेष अज्ञ" कहने का मन करता है किंतु व्याकरण इस स्थापना को स्वीकार नहीं करेगा। संस्कृत के संधि नियमों के अनुसार यहाँ दीर्घ स्वर संधि होगी और विशेष +अज्ञ मिलकर पद बनेगा 'विशेषाज्ञ'। अनेक बार गोष्ठियों में मैंने विद्वानों के समक्ष यह प्रश्न उठाया जिसे हँसी- मजाक में टाल दिया गया और यही हो भी सकता था। schwa लोप के तर्क एक बार ट्विटर में संस्कृत के एक प्रकांड विद्वान मित्र रामानुज देवनाथन (असमय ही