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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कर्तव्य चर्चा

अकर्तव्य कर्त्तव्य हिंदी में "कर्तव्य" का उच्चारण "कर्त्तव्य" किया जाता है,इसलिए कुछ लोग कर्त्तव्य लिखते भी हैं। सामान्यतः हिंदी में /त/ के द्वित्त्व के लिए कोई नियम नहीं, यद्यपि संस्कृत में /त/ के द्वित्व के साथ 'कर्त्तव्य' की सिद्धि अष्टाध्यायी के अनुसार काशिका के तृतीय अध्याय में दी गई है। शब्दकल्पद्रुम में 'कर्त्तव्य' की ही प्रविष्टि दी गई है। मैक्डोनाल्ड ने कर्त्तव्य की प्रविष्टि दी है किंतु अर्थ दिया है विनाश के योग्य। हिंदी में प्रयुक्त इस तत्सम शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार समझी जा सकती है: √कृ (>हि √कर्) + सं तव्यत् (>हि तव्य)] = कर्तव्य। उच्चारण करते हुए द्वित्त्व सुनाई अवश्य देता है, यह कुछ अन्य भाषिक कारणों से होता है। बहुत पहले काशी नागरी प्रचारिणी सभा के नाम पट्ट और पत्र शीर्षक (लेटरहेड) पर उनके कार्यालय को "कार्य्यालय" लिखा होता था। पर इस प्रक्रिया की वर्तनी को उन्हीं के कोश में स्थान नहीं मिला।  हिंदी में प्रभात प्रकाशन से छपे 'बृहत् हिंदी शब्दकोश' में डॉ.श्याम बहादुर वर्मा ने दोनों प्रविष्टियाँ, कर्तव्य/कर

काँकर-पाथर जोरि कै...(कुछ फुटकर टिप्पणियाँ)

1. राति ब्यान कुमाउँनी में बहुत सुबह, भोर या तड़के के लिए ब्यान शब्द का प्रयोग किया जाता है। प्रायः इसे  हिंदी क्रिया ब्याना (जनना) से व्युत्पन्न मान लिया जाता है। रातिब्यान अर्थात् रात के द्वारा भोर को जनने का समय, मुँह अँधेरे। यों "ब्यान" को हिंदी ब्याना का लाक्षणिक अर्थ माना जा सकता है, इसमें काव्यात्मकता भी है, "रात्रि मानो संतान को जन्म दे रही है और उसके गर्भ से भोर का जन्म हो गया।" किंतु यह भी एक मत हो सकता है कि जब मूल रूप ही अन्य से विकसित हो तो लाक्षणिक प्रयोग सिद्ध करने के लिए अन्यत्र जाना व्यर्थ होगा। ब्यान शब्द हिंदी बिहान से बना हुआ भी हो सकता है जो संस्कृत विहान/विभान से है। √भा धातु से अन्य अनेक शब्द हैं, जैसे - प्रभात, विभा, प्रभा इत्यादि। वि + √भा (चमकना, प्रकाशित होना) + ल्युट् = विभान ➡️ बिहान ➡️ ब्यान। •••   ••• 2. गंगा और गङ् - गाड़ कुमाईं में "गङ्" का अर्थ केवल गंगा नदी नहीं है, यह नदी - सामान्य का पर्याय है! जैसे कालीगङ्, गोरीगङ्, रामगङ्, सरयू गङ्। किसी भी नदी नाम के साथ गङ् जोड़ा जाता है। छोटी और कम पानी वाली नदी को गाड़ कहा जाता है जै

ख़सम चर्चा

अब तो होली खेल - खालकर आप घर लौट आए होंगे। तो फिर कुछ ख़सम शब्द पर बात करें? आप भी कहेंगे कि मैंने भाँग ज्यादा खा ली होगी। होली के दिन क्या शब्द लेकर बैठ गया! यदि आप मुझे यह ब्लॉग लिखते समय भाँग के नशे में, या किसी भी नशे में मान रहे हैं तो आप ठीक नहीं सोच रहे हैं । शब्द तो शब्द होते हैं।   अब इस ख़सम को देखें ... ।  एक होली पूरे हिंदी क्षेत्र में बड़ी प्रसिद्ध है, प्रवासी भारतीयों में भी। मस्ती से गाई जाती है । स्त्री - पुरुष मिलकर गाते हैं, " रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं सांवरिया के संग..."  इसमें एक शब्द आता है ख़सम। "ख़सम तुम्हारो बड़ो निखट्टू, चलो हमारे संग" और ख़सम को आप उसी अर्थ में लेते हैं जिस अर्थ में वह है। हिंदी में, उसकी बोलियों-उपभाषाओं में, समूचे हिंदी क्षेत्र में ख़सम पति को कहा जाता है। कुछ कथित सभ्य-संभ्रांत लोगों में ख़सम शब्द कुछ मोटा-सा, भद्दा-सा,गँवार-सा अश्लील शब्द माना जाता है। सौंदर्यशास्त्री  उसमें "ग्राम्यत्व दोष" ढूँढ़ लेते हैं! लेकिन अरबी में जहाँ से यह शब्द चला वहाँ ख़सम/ ख़स्म का प्रधान अर्थ है: दुश्मन, शत्रु, एनिमी! गौण अर्थ मालिक। फ़

वैदिक यज्ञ से आधुनिक जश्न तक

••• शब्द धर्मनिरपेक्ष ही नहीं होते, वे अंतर सांस्कृतिक, अंतरमहाद्वीपीय और अंतरराष्ट्रीय यात्राएँ भी करते हैं। वैदिक काल से चला आ रहा "यज्ञ" ऐसा ही एक शब्द है।  यज्ञ से अवेस्ता में शब्द बना "यश्न" जो पूजा अर्चना के लिए प्रयुक्त होता है। पारसियों के यश्न का और सनातनियों के यज्ञ का प्रधान देवता भी अग्नि ही है। अवेस्ता का यश्न फारसी में बन गया जश्न/जशन, जो हिंदी-उर्दू में भी उपस्थित है।  यज्ञ परंपरा तो अब लुप्तप्राय हो चली है। तो यूं समझ लीजिए कि यदि आप कोई जश्न मना रहे हैं तो आप यज्ञ ही कर रहे हैं। यज्ञ के साथ जो पवित्रता, उत्साह और उमंग का भाव जुड़ा है वही जश्न में भी है - कम से कम शब्दार्थ की दृष्टि से।  अब इस अंतरसांस्कृतिक धर्मनिरपेक्षता से नाक - भौंह सिकोड़ने वाले विचलित हों, तो हों। हम क्या कर सकते हैं और बेचारे शब्द भी क्या कर सकते हैं। वे तो जन्मना धर्मनिरपेक्ष होते हैं। ◆◆◆ सूत्र के लिए आभार: डॉ अभिषेक अवतंस (फ़ोटो सौजन्य: गूगल खोज)