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"जी" अव्यय: व्युत्पत्ति और प्रयोग

जी :  جی व्युत्पत्ति :  संस्कृत "जीव" (√जीव् + क) ( जीवति वाला) <> जिव्व, जिव (प्राकृत) > जी (हिंदी) > जीउ, जियू, जू (राजस्थानी) > ज्यू (कुमाउँनी)। असमी জীউ  । प्रयोग की कुछ दिशाएँ १. आदरसूचक अव्यय (लिंग निरपेक्ष) ~ ~ नाम, उपनाम, पद के साथ  स्वतंत्र -- राम जी, सीता जी, नरेश जी,【माता जी, पिता जी (संबोधन में)】, लाला जी, मुंशी जी, नेता जी। ~ कुछ रिश्तों के साथ (संदर्भ देते हुए) जोड़कर -- मेरे पिताजी, जया की माताजी ~ कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों के साथ जुड़कर (विकल्प से) -- गांधीजी, रामजी ( इसे भी देखें : http://vagarth.blogspot.com/2017/08/blog-post_24.html?m=1 )

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

अथ गिलास चर्चा

गिलास : आम उपयोग का गिलास शब्द अंग्रेजी के ग्लास से विकसित हुआ है, उसका तद्भव। अंग्रेज़ी में ' ग्लास ' का मूल अर्थ तो अल्प पारदर्शी, भंगुर पदार्थ काँच है किंतु यह अन्य अर्थों में भी प्रचलित है जैसे: चश्मा, शीशा (दर्पण), काँच के बने बर्तन आदि अनेक अर्थ हैं। काँच के बने गिलास (टम्बलर) के लिए भी अंग्रेजी में ग्लास प्रयुक्त होता है। लेकिन हिन्दी में इसका अर्थविस्तार हो गया - गिलास केवल काँच से बने जलपात्र को ही नहीं कहते ; काँसा , चाँदी , पीतल, काँच, स्टेनलेस स्टील आदि विविध धातुओं, मिश्र धातुओं से बने जलपात्रों के लिए भी गिलास ही प्रयुक्त होने लगा।   लोक में परंपरागत रूप से गिलास के पूर्व लोटा, कुल्हड़, कटोरा/कटोरी ही पानी पीने के काम आते होंगे। लोटे का ही एक भेद गड़ुवा भी मिलता है, प्रायः कुछ अँचलों में। इसमें लोटे से एक टोंटी सी जुड़ी होती है और पूजा के सहायक पात्रों में गणना होती है। इस्लाम में एक धार्मिक अनुष्ठान 'वुज़ू' के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। इसलिए इसे वुज़ू का लोटा भी कहते हैं।  छोटा गड़ुवा शिशुओं को दूध पिलाने के काम भी आता था। यहाँ यह उल्लेख अप्रासंगिक नही

इष्ट-मित्र, सूर्य और मैत्री

शब्द विवेक: इष्ट-मित्र इष्ट-मित्र की शब्द रचना  बड़ी रोचक है। द्वंद्व समास मानें तो यह होगा इष्ट और मित्र। विशेषण मानने पर होगा इष्ट हैं जो मित्र। अब प्रश्न यही है कि इष्ट क्या है? भ्वादि गण की √इष् धातु से बनता है इष्ट अर्थात् चाहा हुआ, प्रिय, पूज्य, अनुकूल, आदरणीय, सम्मानित। अब रहा मित्र। मित्र एक वैदिक देवता का नाम है। सूर्य को भी मित्र कहा जाता है और अनेक ऋचाओं में यह शब्द प्रयुक्त होता है।आज हिंदी में और अन्य आर्यभाषाओं में मित्र विद्यमान है। (मित्र को संस्कृत में नपुंसक लिंग कहा गया है!) वेद सुझाते हैं कि हम सबको परस्पर "मित्र की दृष्टि" से देखना चाहिए। मित्र (सूर्य) सबको समान दृष्टि से देखता है। मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् । मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे। मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥ (यजुर्वेद ३६/१८) मित्र के बारे में भर्तृहरि कहते हैं: "तन्मित्रम् आपदि सुखे च समक्रियम्।" यत् (मित्र वह है जो आपदा और सुख के समय हमारे साथ होता है) और ऐसे मित्र सौभाग्य से प्राप्त होते हैं। वस्तुतः मित्रता या दोस्ती   दो या अधिक व्यक्तियो

दूध दुहने वाली दुहिता !

दूध और दुहिता Daughter महर्षि दयानन्द ने यास्क के निरुक्त को आधार मान कर दुहिता शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है: "  दूरे हिता इति दुहिता अर्थात् दूर देश (पतिगृह) में ही जिसका हित सम्भव है! इस व्युत्पत्ति का कोई भाषिक आधार नहीं है। यह आनुमानिक व्युत्पत्ति है और इसके मूल में तत्कालीन समाज की पुत्रियों के प्रति भावना ध्वनित होती है । एक अन्य व्युत्पत्ति प्राप्त होती है: या दोग्धि, विवाहादिकाले धनादिकमाकृष्य गृह्णातीति । आर्षकाले कन्यासु एव गोदोहनभारस्थितेस्तथात्वम् । दुह +  तृच् - दुहितृ। तृच् उणादि प्रत्ययः। अर्थात् जो पिता के धन आदि को दुहकर ले जाती है। यह भी आनुमानिक है और उस युग परंपरा की सूचक है जब कृषक, आभीर आर्य गोपालक थे, गोधन संपन्नता का द्योतक था और लड़कियाँ गोदोहन करती थीं। अकारण नहीं है कि वैदिक संस्कृत में दुहितृ शब्द का अर्थ दुहनेवाली है। प्रतीकार्थ बन गया जो पिता के धन का दोहन करके ले जाती है वह दुहिता। उपर्युक्त व्युत्पत्तियों के अतिरिक्त दुहिता शब्द की विकास यात्रा के सूत्रों को ढूँढ़ा जाए तो वे सम्पूर्ण भारोपीय क्षेत्र में बिखरे हुए मिलते हैं हैं और सहज