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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कहावत कथाएँ

आमतौर पर किसी कहावत (लोकोक्ति) के पीछे कोई न कोई कथा छिपी होती है जिसे समय के साथ भुला दिया जाता है, पर कहावत बनी रहती है। आइए, कहावत कथाओं की एक शृंखला शुरू करते हैं। १. नौ दिन चले अढ़ाई कोस उन दिनों बद्री-केदार की कठिन यात्रा पैदल होती थी और सबसे दुर्गम मानी जाती थी। 2/3 साधुओं का एक दल किसी प्रकार केदारनाथ पहुँचा। वहाँ उनका परिचय किसी दूसरे‌ यात्री दल से हुआ। अब अगले दिन उन दोनों दलों को बद्रीनाथ जाना था। पहले दल के लोग दूसरे से कुछ पहले चल पड़े.  पहला दल वापस रुद्रप्रयाग और जोशीमठ होता हुआ नौ दिन में पैदल बद्रीनाथ पहुँचा तो देखा दूसरा दल वहाँ से लौट रहा था। उनसे पहले दल ने पूछा आप कब पहुँचे यहाँ? उत्तर मिला नौ दिन हो गए, और अब लौट रहे हैं। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतना लंबा मार्ग इन्होंने एक ही दिन में कैसे पूरा कर लिया। मालूम हुआ कि दोनों तीर्थों के बीच ग्लेशियर से होकर गुजरने वाला एक दुर्गम चट्टानी मार्ग उस दल को मालूम था, जिससे केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी मात्र अढ़ाई कोस थी। इसलिए वे एक ही दिन में केदारनाथ से बद्रीनाथ पहुँच गए थे। तो कहावत बनी- नौ दिन चले, अढ़ाई कोस। २. "

संपृक्त और परिवर्णी शब्द

एक मित्र की फेसबुक पोस्ट पर एक मजेदार शब्द मिला "काराश्रमी"। प्रयोग कुछ ऐसे अर्थ में किया है, " हमारे आश्रम पहले शिक्षा-संस्कृति का केंद्र होने के कारण आदरणीय स्थान होते थे। आश्रमवासी कुछ कथित संतो ने ऐसा कुछ किया कि न्यायालय ने उन्हें आश्रमी से काराश्रमी (कारावास + आश्रमी) बना दिया!" इस प्रकार दो भिन्‍न शब्‍दों की ध्‍वनियों का कुछ भाग ले कर बनाया गया संपृक्त शब्‍द अंग्रेजी में portmanteau कहा जाता है- port (=ले जाना) और manteau (=वस्त्र आदि सामान) से बना मिश्र शब्द। Portmanteau शब्द का 'आविष्कार' 1882 में चार्ल्स एल डॉडसन ने ऐसे शब्दों के लिए किया था जिनमें एक ही शब्द के भीतर दो शब्द पिरोए गए हों। हिंदी में दो शब्दों से संपृक्त Portmanteau शब्द अनेक हैं। 2006 में रूस के सहयोग से भारत में निर्मित मिसाइल ब्रह्मॉस (BrahMos) नाम भारत की प्रसिद्ध नदी ब्रह्मपुत्र और रूस की नदी मॉस्क्वा के नाम को मिलाकर बना है। इसी प्रकार भारत यूरोपीय के लिए भारोपीय। यूरोप और एशिया के लिए यूरेशिया। अंग्रेजी स्मोक और फॉग से स्मॉग। फिल्म जगत के सैफ़ और कैटरीना के लिए सैफीना । गुजरात

लफड़ा, टशन और फंडा

लफड़ा   झगड़ा-झमेला, झंझट के लिए मुंबइया हिंदी से आया है। मूलतः मराठी का देशज "लफड़े" लगता है जो गुजराती में "लफड़ो" है।  हम तो बेकार ही लफड़े में फँस गए! वहाँ बड़ा लफड़ा हो गया, पुलिस बुला ली गई है ।  अब स्वजनों या समाज की अस्वीकृति के बावज़ूद हुए प्रेम संबंध या छिपे प्रेम संबंध के लिए भी लफड़ा का प्रयोग होता है। इस अर्थ में एक लोक व्युत्पत्ति इसे फ्रेंच लाफ़ेयर (L'affaire) शब्द से जोड़ती है और दूसरी अंग्रेजी के लव (love) से विकसित होने की संभावना बताती है।  टशन    नई पीढ़ी की शब्दावली में बहुत प्रचलित है। दिखावा करने वाले युवाओं के लिये भी इस्तेमाल किया जाता है। अंग्रेजी स्टाइल और पैशन/ का मिला-जुला रूप लगता है। टेंशन (तनाव) से भी हो सकता है। कोई तनाव न लो इस अर्थ में कहा जाता है -टशन मत ले यार।   टशन में बेफ़िक्री, फ़ैशनबाज़ी, और मस्ती जैसे तत्व शामिल हैं। अंग्रेजी के एटीट्यूड attitude के अर्थ में भी इसका प्रयोग देखा गया है।  फंडा   अंग्रेजी fundamental से है, मूल मंत्र या वास्तविक कारण के अर्थ में । मूल अंग्रेजी शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, किंत

लोचा और झोल

लोचा और लोचे का स्वाद  लोचा शब्द अज्ञात व्युत्पत्तिक है और मुंबइया हिंदी का उपहार है। एक बॉलीवुड फ़िल्म का नाम भी था "कुछ कुछ लोचा है", संभवतः "कुछ कुछ होता है" के अनुकरण पर रखा गया हो किंतु लोचा की कहानी में लोचे अनेक हैं। लोचा का हिंदी में अर्थ है- किसी बात पर होने वाली कहा-सुनी या विवाद, अचानक पैदा हो गई कोई समस्या या रुकावट। बुंदेलखंड में जमे हुए घी या मक्खन में से पाँचों अंगुलियों से निकाला गया घी का लोंदा भी लोचा कहलाता है किंतु हिंदी में प्रचलित लोचा से इस मक्खनी लोचे का कोई संबंध नहीं प्रतीत होता। एक गुजराती व्यंजन का नाम भी लोचा है। कहा जाता है कि एक शेफ़ ने गलती से खमण के घोल में अधिक पानी डाल दिया, जिससे खमण कुछ पतला और बिखरा-बिखरा-सा हो गया। इसे देखकर वह चिल्लाया ‘अरे, आ तो लोचो थाइ गयो’ अर्थात यह तो समस्या आ गई! अपनी गलती छिपाने के लिए उसने स्वादिष्ट-रंगीन सजावट (टॉपिंग) के साथ पतले घोल से बना व्यंजन परोस दिया। लोगों को यह पसंद आया और उसका नाम ही पड़ गया लोचा।    झोल, झोला और झोलाछाप झोल की उत्पत्ति संस्कृत दुल् (दोलन, झूलना) से है। झोला, झूला इसी से बन

घर वापसी

घर वापसी का सामान्य अर्थ है घर लौटने का भाव। कोई कुछ समय के लिए घर से बाहर निकला हो तो उससे पूछा जा सकता है, आपकी घर वापसी कब है? अर्थात आप कब,  कितने दिन में लौटेंगे।  आजकल मीडिया में इसका लाक्षणिक प्रयोग अधिक चल पड़ा है जो अधिक पुराना नहीं है। पहले एक राजनीतिक दल से दूसरे में जाने के बाद वापस पुराने दल में लौट आने के लिए "घर वापसी" मुहावरे का प्रयोग दिखाई पड़ा था। अब धर्म परिवर्तन कर हिंदू बनने के लिए भी प्रयुक्त होता है, इस तर्क या पूर्वग्रह के साथ कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने से पहले उसके पूर्वज हिंदू ही रहे होंगे; इसलिए पुनः हिंदू बनना घर वापसी कहा गया। ****

मच्छर और खटमल

मच्छर, खटमल ••• ••• खून चूसने वाले कीटों में मच्छर बहुत प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण हो चला है, इतना महत्वपूर्ण कि करोड़ों करोड़ का व्यवसाय मच्छर मारक रसायनों का, मलेरिया से होने वाले रोगों से बचाव की दवाइयों का चल रहा है और लोग मालामाल हो रहे हैं। मच्छर के चलते लोग खटमल (bed bug), खटकीरा, पिस्सू (flea), जूँ (louse) आदि को भूल गए हैं; जब कि रक्त शोषण में योगदान इनका भी कम नहीं रहा।  कहते हैं पांडेय बेचन शर्मा "उग्र" गोरखपुर से लौटे तो बनारसीदास चतुर्वेदी जी ने पूछा गोरखपुर में तो मच्छर बहुत हैं आप कैसे सो पाए? "उग्र" जी, जो अपने व्यंग्य के लिए जाने जाते थे, तुरंत बोले- भाई, मच्छरों ने बहुत ज़ोर लगाया कि मुझे आसमान में ले चलें, किंतु धन्यवाद खटमलों का कि वे उतने ही ज़ोर से नीचे खींचते रहे और इस तरह मैं खटिया पर बना रहा। खटमल के आतंक से दुखी एक संस्कृत कवि को कहना पड़ा कि लक्ष्मी जी कमल पर, शिव हिमालय में और विष्णु क्षीर सागर में खटमलों के डर से ही तो सोया करते हैं, नहीं तो ये कोई सोने की जगहें हैं। कमले कमला शेते, हरश्शेते हिमालये क्षीराब्धौ च हरिश्शेते, मन्ये मत्कुण शङ्