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जून, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काश केदारनाथ... !

काश, केदारनाथ ... ! मेरी केदारनाथ की यादें कोई छह दशक पुरानी हैं पर आज भी ताज़ा हैं | अगस्त्यमुनि से पैदल यात्रा, लगभग 3,000' से 11,500' तक की धीरे-धीरे कठिन और दुर्गम होती चढाई जिसका अंतिम चरण तो यात्री के धैर्य और ऊर्जा की परख होता था । आज कौन विश्वास करेगा कि तब केदारनाथ में रात में रहने का रिवाज़ नहीं था | कुछ साधु-सन्यासी, पुजारी, रावल, देवालय के सेवक, उनसे जुड़े कुछ पेशेवर और कुछ गिने-चुने ढाबे वाले ही वहाँ टिकते थे। यात्री तड़के ही गौरी कुंड से चलकर केदारनाथ पहुँचते और दर्शन करने के बाद शाम तक गौरीकुंड या रामवाडा लौट आते | जो लोग इतनी लंबी पैदल यात्रा करने की स्थिति में न हों, वे रामवाडा में पडाव करते और केदारनाथ के दर्शन कर वापिस रामवाडा या गौरीकुंड लौटते थे। यदि किसी विवशता से केदारनाथ परिसर में रुकना ज़रूरी हो जाए तो कोई होटल या गेस्टहाउस नहीं था, पंडे ही व्यवस्था करते थे । उनके पास यजमान यात्रियों द्वारा दान में दिए गए बिस्तर, रजाइयाँ या कम्बल इतने होते थे कि ऐसे यात्रियों को आकस्मिक बर्फ़बारी और ठंडक में भी कोई कठिनाई नही होती थी । कुछ धर्मशालाएँ भी थीं प

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी ...  Two square meals a day. आज दो जून है। 'दो जून की रोटी के लिए आदमी भागा फिरता है।' यहाँ 'जून' किस भाषा से सम्बन्धित है, यह जानने का विषय है। इसका मूल कहाँ है और इसके अतिरिक्त किस रूप में इसका प्रयोग होता है?  वस्तुतः यह जून June नहीं, हिंदी का शब्द है। "शब्दसागर" संस्कृत इसे धुवन शब्द से विकसित (तद्भव) मानता है।  अन्य कोश उल्लेख नहीं करते, सो अज्ञात व्युत्पत्तिक (देशज) भी हो सकता है। कुछ अवधी का मानते हैं, पर हिंदी, उर्दू, के साथ साथ हिंदी की अन्य अनेक बोलियों में भी बहुत प्रयुक्त हुआ है। यह "जीमन/जीमना" (भोजन करना) का लाक्षणिक प्रयोग भी हो सकता है, दो वक्त ही 'जीमते' हैं।  तर्कसंगत व्युत्पत्ति यह लगती है कि हिंदी में जून प्राकृत जुण्ण, पाली जुन्न से हो, जिसका संबंध संस्कृत जूर्ण (>जून पुराना) से है।  "का छति लाभ जून धनु तोरे।  देखा राम नयन के भोरे ॥ मारवाड़ी में  जून/जूण दो अर्थों में प्रयुक्त होता है- १. दो जूण री रोटी - दो वक्त का खाना २. मिनख जूण। चौरासी लख जूण - मनुष्य योनि/ चौरासी लाख योनियाँ (८४ ल