अरबी का शब्द है عِید ईद। अरबी में ईद का शाब्दिक अर्थ है हर्ष, उल्लास, प्रसन्नता; ख़ुशी का दिन। आप में से कुछ लोगों को शायद पता न हो कि बिहार के कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर मगध क्षेत्र में, लोक में ईद 🕌🌙 के लिए 'पर्वी' शब्द का प्रयोग होता रहा है। ईद या किसी अन्य पर्व पर मिलने वाली बख़्शीश को भी पर्वी कहा जाता है। विभाजन के कारण भारत से पाकिस्तान गए बिहारी मुसलमानों की पिछली पीढ़ी में भी यह शब्द प्रयुक्त होता था, जो अब वहाँ विलुप्त हो चुका है। 'पर्वी' संस्कृत 'पर्वन्' (=उत्सव, त्योहार) से व्युत्पन्न हिंदी/उर्दू शब्द है। ईद के लिए पर्वी, परवी का प्रयोग अपने आप में प्रमाण है कि उत्सव प्रिय भारतीय लोक मानस आनंद और उल्लास वाले पर्वों त्योहारों में हिंदू-मुस्लिम का भेद नहीं करता था! विशेष अंचल में अरबी ईद के स्थान पर संस्कृत पर्वी शब्द का प्रयोग यही संकेत करता है। ईद का पर्व मुबारक हो सभी दोस्तों को। आमीन
निखट्टू .... लोक में प्रचलित जनपदीय शब्दों की व्यंजना अद्भुत होती है। दैनंदिन विविध लोक व्यवहार में आने वाले ऐसे हजारों शब्द हैं। इससे पहले कि ये शब्द विलुप्त हो जाएँ, इनका संग्रह और अध्ययन किया जाना चाहिए। विद्यानिवास मिश्र (हिंदी की शब्द संपदा) तथा कुछ अन्य विद्वानों ने जनपदीय शब्दों पर कुछ महत्वपूर्ण कार्य किए हैं किंतु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। होली के इस मौसम में एक जनपदीय शब्द याद आया, 'निखट्टू'। ब्रज की एक प्रसिद्ध होली है, "रंग में होली कैसे खेलूँ री मेैं साँवरिया के संग।" भले ही होली मूलतः ब्रज क्षेत्र की हो किंतु इसकी व्याप्ति और लोकप्रियता संपूर्ण उत्तरी भारत में है। सच तो यह है कि भारत या बाहर, जहाँ भी होली मनाई जाती है वहाँ इस होली को अवश्य गाया जाता है। स्त्री-पुरुष हुड़दंग मचाते हैं और मस्ती में झूमते-गाते हैं - " रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग! कोरे-कोरे कलश भराये, जा में घोरौ रंग भर पिचकारी सन्मुख मारी, चोली है गई तंग। ढोलक बाजै, मजीरा बाजै और बाजै मिरदंग, कान्हाँ जी की वंशी बाजै, राधा जी के संग। लहँगा तेरौ घूम घुमारौ, च