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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ गप्पें कुछ सच्चाइयाँ : दो

#गप: 2 पिछली गप शायद कुछ प्रेमियों को गप नहीं लगी। तो आज की गप सचमुच यानी वाकई गप होगी। मैं भाषा की ही कसम खाकर कहता हूँ कि गप ही कहूँगा, गप के सिवा कुछ भी नहीं। उर्दू (اردو) की  बात करें? उर्दू और हिंदी के संबंधों की बातें करें? कहीं से भी शुरू करें, बात एक ही बनी रहती है कि जो हिंदी है वही उर्दू और जिसे वे उर्दू कहते हैं वह हिंदी के अलावा कुछ नहीं है। भाई मेरे, जब आत्मा एक हो, शरीर भी एक-सा ही हो (जुड़वांओं का-सा समझ लीजिए), तो केवल चोला-लबादा-बुर्क़ा बदलने से, धोती कुर्ता पहनने से, या पेंट, कमीज और सूटेड - बूटेड परिधान से भाषा नहीं बदलती।  किसी पढ़े-लिखे भाई ने कहा है लिपि और भाषा दोनों अलग-अलग चीजें हैं। माने लिपि भाषा नहीं है और भाषा लिपि नहीं है। देवनागरी लिपि में तो हिंदी के अलावा भारत की आधा दर्जन से अधिक भाषाएँ और बीसियों बोलियाँ लिखी जाती हैं। और भी लिखी जा सकती हैं। लेकिन वह सब हिंदी तो नहीं ना हैं! ' उर्दू' शब्द मूलतः तुर्की भाषा का है तथा इसका अर्थ है- 'शाही शिविर’ या ‘खेमा’(तम्बू)। तुर्कों के साथ यह शब्द भारत में आया और इसका यहाँ प्रारम्भिक अर्थ खेमा या स

कुछ गप्पें कुछ सच्चाइयाँ

#गप : एक सोच रहा हूँ आज सिर्फ गप मारी जाए और गप ऐसी जो गप न हो, सच हो। अब हिंदी को ही लें। भेद बुद्धि के लोग भाषा को मजहब से जोड़ देते हैं, जैसे हिंदी एक धर्म की, उर्दू दूसरे मजहब की। अंग्रेजी को थर्ड रिलीजन की नहीं कहते क्योंकि उसके बिना काम नहीं चलता। ऐसा होने लगे तो उसका भी कबूतर खाना तय है। मुझे हैरानी होती है कि हम शुद्ध हिंदी की बात तो करते हैं लेकिन यह हिंदी शब्द उन अर्थों में शुद्ध नहीं है यानी देवभाषा संस्कृत से व्युत्पन्न नहीं है। आक्रामकों के साथ आई फ़ारसी भाषा का है। सिंध उनके लिए हिंद था और हिंद की भाषा हो गई हिंदवी। अमीर खुसरो, जिन्हें हिंदी और उर्दू वाले दोनों ही अपना कहते हैं, वे इसे हिंदवी या भाखा ही कहते थे। भाखा से याद आया। यह भाषा ही भाखा कहलाया। हमें याद है पुरानी संस्कृत की पुस्तकों में भी भाखा - टीका होती थी या भाषा टीका। हम तो जब मदरसे (जी, बिदकिए मत। तब इस्कूल को मदरसा कहा जाता था!) जाते थे तो विषय दो ही होते थे- भाषा और हिसाब। पाठशाला शब्द तो पुस्तक से घोघा था। पंडिज्जी ने समझाया था, "पाठशाला यानी मदरसा। बच्चो, पाठशाला को आजकल इस्कूल कहते हैं।"

दूथ और दुहिता

दूध और दुहिता  दूध और बेटी का साथ बहुत पुराना है, शायद इसलिए कि गौ माता को दुहने का काम पहले बेटी ही करती हो। असल में संस्कृत में √दुह् धातु दूध दुहने के अर्थ में है। इसी धातु से बने हैं दुग्ध और दुहितृ अर्थात पुत्री। यह दुहितृ मूलतः पुरा ईरान-यूरोपीय PIE के *dʰewgʰ (संस्कृत √दुह्) से व्युत्पन्न है और यूरोप और एशिया की अनेक भाषाओं में यह शब्द आज भी इसी अर्थ में उपस्थित है। इस जैसे अनेक शब्दों की व्यापक रोचक उपस्थिति सिद्ध करती है कि भाषाएँ परस्पर कितनी मिली हुई हैं। अंग्रेजी में डॉटर daughter, पर्शियन, उर्दू में दुख़तर دختر‎ ,  से तो हम सुपरिचित हैं। इनके अतिरिक्त अनेक मध्य एशियाई भाषाओं  पश्तो, अवेस्ता, लिथुआनियन, इस्फ़हानी, हमादानी, ग्रीक, रूसी आदि में थोड़े से भिन्न उच्चारण के साथ किंतु इसी अर्थ में यह शब्द मिल जाएगा।  संस्कृत में अन्य कुछ शब्द भी दुह्/ दुहितृ से बने हैं। जैसे: दौहित्र (नाती), दौहित्री (नतिनी), दौहित्रायण (नाती का बेटा), दौहित्रायणी (नाती की पुत्री) आदि। हिंदी में दुहना क्रिया इसी दुह् से व्युत्पन्न है। कुछ अन्य शब्द हैं - दोहन, दुग्ध > दूध, दोग्धा (दुहने

गाली चर्चा

"गाल्यते (विकृतिं याति मनः श्रवणमात्रेण) इति। गालिः=अप्रियं वचः शापः वा॥" समाज विज्ञानी गाली के शास्त्र को समाज के मनोविज्ञान से भी जोड़ते हैं। यों तो प्रत्येक भाषा में, प्रत्येक समाज में गालियां रही हैं किंतु उनका प्रयोग किन्हीं विशेष परिस्थितियों में, विशेष संबंधों में, विशेष समाज द्वारा ही किया जाता है।  पूरी दुनिया की भाषाई संस्कृति की अभिव्यक्ति में गालियों की अपनी जगह होती है. गालियां क्रोध, अपमान और कभी-कभी प्रेम की अभिव्यक्ति भी होती हैं.   यह अटपटा-सा लगता है यदि हम गाली चर्चा में मर्यादा शब्द को भी जोड़ें। क्या गाली की भी मर्यादा हो सकती है? हो सकती है समाज की मान्यताओं, उसके संस्कारों, सामाजिकों के शिक्षा-सभ्यता के अनुसार। एक आदर्श समाज में गाली के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, पर हम जानते हैं ऐसा सिर्फ कल्पनाओं में होता है. लोग एक-दूसरे को जलील करने के तरीके खोज ही लेते हैं और हमेशा करते रहेंगे. गाली के असली मर्म और धर्म को सम्राट अशोक और उसके बौद्ध सलाहकारों ने पहचाना होगा। ब्राह्मणों ने तो उसे ’’देवानाम् प्रिय:’’ (मूर्ख) कहकर गाली ही दी थी किंतु उन्होंने स्वीकार