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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देसी शब्दों को लीलती अंग्रेजी

अंग्रेजी में एक कहावत है: born with a silver spoon in his mouth, जिसका आशय है मुँह में चाँदी की चम्मच लेकर जन्म लेना। इसका प्रयोग उनके लिए किया जाता है जो जन्म से ही रईस हों जैसे जवाहरलाल नेहरू, मुकेश-अनिल अम्बानी...।  इसके लिए आधे भारत में हिंदी, उर्दू और अनेक उपभाषाओं, बोलियों में सदियों से प्रचलित एकदम शुद्ध  एकदम देसी कहावत जानते हैं?  वह कहावत है पोतड़े का रईस अर्थात तब से सम्पन्न जब वह पोतड़े में लिपटा होता था। शिशु परिचर्या में किसी भी शिशु के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण, सबसे उपयोगी वस्त्रों में है पोतड़ा और यह हिमाचल, उत्तराखंड , पंजाब, गुजरात से लेकर मालवी, मारवाड़ी, बुंदेली, राजस्थानी ब्रज, अवधी, भोजपुरी मैथिली, छत्तीसगढ़ी और ऐसी अनेक भाषाओं बोलियों में जाने कब से प्रचलित रहा है। बच्चा चाहे अमीर का हो या गरीब का, महलों में पले या झोपड़ियों में, उसके लिए जन्म के बाद पहला निर्धारित वस्त्र हुआ करता था पोतड़ा। समय की करवट, नई शिक्षा-दीक्षा और अंग्रेजी भाषा की चकाचौंध में इस पोतड़े को अपवित्र मानकर सामान्य व्यवहार से भुला दिया गया है। अब दूर-दराज के गाँवों में भी नई माताएँ पो

बंकिम और बाँका

"जै हुँ रीस भई, वीक सिद्द खुट ले बाँङ् देखिनी बल।" यह एक कुमाउँनी कहावत है जिसका अर्थ है- "जिससे मन न मिले उसकी सीधी टाँगें भी टेढ़ी दिखाई देती हैं।" (If you dislike someone with perfect legs, you find him bandy.) इस शब्द की व्युत्पत्ति है: वङ्क (सं) > बाँक (हि) > बाँङ्/बाङ्गो (कुमाउँनी) पूर्वी कुमाउँनी (सोऱ्याली), नेपाली में भी बाङ्गो ही है।  बांग्ला में বাঁকা ,বাঁকানো और पंजाबी में “बिंगा”। प्रसिद्ध बांग्ला लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के नाम का पहला शब्द इसी बाँके का संस्कृत रूप है।  बाँकपन किसी अंग, वस्तु, नदी, स्वभाव आदि का हो सकता है। हिंदी में बाँका मस्त स्वभाव वाले व्यक्ति के लिए विशेषण तो है ही, बाँके बिहारी की बाँकी चितवन, बाँकी छटा, बाँके नैनों की अद्भुत छटा का बखान करते भक्त अघाते नहीं। कहा यह भी जाता है कि राधा जी की बाँकी भौहें बाँके बिहारी को बाँधे रहती हैं।