फागुन के बहाने रंग चर्चा फागुन की दस्तक सुनने के लिए कान नहीं , मन चाहिए | फागुन ही तो वह महीना है जो हमें रंगों की सुध दिलाता है और बाहर-भीतर से रंगकर हम सतरंगी सपनों में खो जाते हैं | रंग शब्द का मूल अर्थ ही है लाल रंग या लाल रंग से रंगना. इस लाल रंग में बहुत कुछ है. लाल है तो यौवन है , राग है , लगाव है , नशा है , काम है , क्रोध है , शौर्य है , पराक्रम है और ... और भी बहुत कुछ है... बस रंग ही रंग है. टेसू को वसंत के आगमन का सूचक इसीलिए माना गया होगा कि इसके लाल रंग में कितने संकेत हैं , कितनी व्यंजनाएं हैं. टेसू केवल लाली ही नहीं बिखेरता , टेसू के खिलने पर चारों ओर अपने आप ही लाली , काम , प्रसन्नता , मदमस्ती , रंगीनी भी बिखर जाती है. टेसू फूले तो होली आती है और होली गई तो टेसू की चमक भी धीरे-धीरे मद्धिम होने लगती है. यौवन का रंग भी लाल माना गया है. बड़े-बूढ़े कहते हैं , जब आँखों में लाली आती है तो समझो जवानी दरवाजे पर खड़ी है. कादम्बरी में बाण भट्ट ने कहा है , “युवाओं की दृष्टि अपनी धवलता का त्याग न भी करे , तो भी “रागमय” तो होती ही है.” यहा...
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