अर्थशास्त्र में थॉमस ग्रेशम का एक बहुत पुराना नियम है "बुरा सिक्का अच्छे सिक्के को प्रचलन से निकाल बाहर कर देता है पर अच्छा सिक्का कभी भी बुरे को प्रचलन से निकाल बाहर नहीं कर पाता।" यह नियम है तो अर्थशास्त्र का किंतु यह भाषा शास्त्र में भी बिल्कुल सटीक बैठता है। इसे एलन- बरीज का 'अर्थ परिवर्तन का नियम' कहा जाता है: "किसी शब्द का बुरा अर्थ प्रचलन में हो तो उस शब्द के अच्छे अर्थ को भी चलन से बाहर कर देता है।" इसके उदाहरण सभी भाषाओं में मिल जाएँगे। अंग्रेजी में prick, ass, cock, booty जैसे शब्द उदाहरण हैं जिनका कथित भद्दा अर्थ आज पारंपरिक अर्थ पर हावी हो गया है और इन्हें अशिष्ट भाषा की श्रेणी में डाल दिया गया है। बचपन में एक कहावत सुनी थी, 'अरहर की टट्टी में गुजराती ताला।' एक तथाकथित ग्रामीण-से लगने वाले शब्द के कारण सुनने पढ़ने में कुछ अटपटा-सा लगता था। यद्यपि कहावत का अर्थ जान लेने पर। सामान्य और स्वाभाविक शब्द हो गया किंतु जो मूल अर्थ से परिचित नहीं है, विशेषकर आज की पीढ़ी में, उन्हें यह हास्यास्पद लगता है। बाँस की फट्टियों, सरकंडों, फूस, खस आदि ...
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