आमतौर पर किसी कहावत (लोकोक्ति) के पीछे कोई न कोई कथा छिपी होती है जिसे समय के साथ भुला दिया जाता है, पर कहावत बनी रहती है। आइए, कहावत कथाओं की एक शृंखला शुरू करते हैं। १. नौ दिन चले अढ़ाई कोस उन दिनों बद्री-केदार की कठिन यात्रा पैदल होती थी और सबसे दुर्गम मानी जाती थी। 2/3 साधुओं का एक दल किसी प्रकार केदारनाथ पहुँचा। वहाँ उनका परिचय किसी दूसरे यात्री दल से हुआ। अब अगले दिन उन दोनों दलों को बद्रीनाथ जाना था। पहले दल के लोग दूसरे से कुछ पहले चल पड़े. पहला दल वापस रुद्रप्रयाग और जोशीमठ होता हुआ नौ दिन में पैदल बद्रीनाथ पहुँचा तो देखा दूसरा दल वहाँ से लौट रहा था। उनसे पहले दल ने पूछा आप कब पहुँचे यहाँ? उत्तर मिला नौ दिन हो गए, और अब लौट रहे हैं। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतना लंबा मार्ग इन्होंने एक ही दिन में कैसे पूरा कर लिया। मालूम हुआ कि दोनों तीर्थों के बीच ग्लेशियर से होकर गुजरने वाला एक दुर्गम चट्टानी मार्ग उस दल को मालूम था, जिससे केदारनाथ से बद्रीनाथ की दूरी मात्र अढ़ाई कोस थी। इसलिए वे एक ही दिन में केदारनाथ से बद्रीनाथ पहुँच गए थे। तो कहावत बनी- नौ दिन चले, अढ़ाई कोस। २. ...
कुल व्यू
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