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नयी, नई

नयी, नई संस्कृत √नु से निर्मित नव, नवल, नवीन तत्सम शब्द हैं। नव से हिंदी में दो विशेषण मिलते हैं- नवा और नया। नवा का प्रयोग लोक में था किंतु अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। इस प्रकार नया मूल शब्द है और इससे लिंग, वचन द्योतक निम्नलिखित प्रत्यय सहज ही जुड़ सकते हैं - प्रत्यय '-आ' - पुल्लिंग, एकवचन; '-ई' - स्त्रीलिंग, एकवचन; '-ए' पुल्लिंग बहुवचन। नव > नवा/नया > नयी, नये। यहाँ यह/व श्रुति नहीं, शब्द की वर्तनी के घटक हैं। इसलिए नयी, नये को व्याकरण सम्मत माना जाना चाहिए। केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा हाल ही में जारी की गई  "देवनागरी लिपि एवं हिंदी वर्तनी का मानकीकरण" में इन्हीं रूपों की संस्तुति की गई है। किंतु (यह "किंतु" विशेष है!), खड़ी बोली हिंदी में स्वरांतता (शब्द के अंत में स्वर को वरीयता देने) की प्रवृत्ति रही है, यह पंडित किशोरीदास वाजपेयी सहित आज के कुभाषा शास्त्री भी मानते हैं। यही कारण है कि लोक में भी नया, नई, नए का प्रयोग अधिक चल रहा है। नयी, नये उच्चारण करते हुए भी नई, नए ही सुनाई पडते हैं। इसलिए नई, ने को त्याज्य नहीं कह सकत

बहुत-बहुतों

कई-कईयों, बहुत-बहुतों, सब-सबों, अनेक-अनेकों अर्थ के स्तर पर एक से हैं। 'अनेक' शिष्ट प्रयोग में अधिक मिलता है, आम जन इसके स्थान पर 'कई' का चुनाव करते हैं। व्याकरण की दृष्टि से इन्हें कुछ लोग विकृत/अशुद्ध रूमानते हैं क्योंकि ये स्वयं में बहुवाची शब्द हैं तो बहुवचन का अतिरिक्त प्रत्यय '-ओं' क्यों? यह भी तर्क है कि '-ओं' प्रत्यय न केवल बहुवचन का संकेत करता है, वरन उस कथन पर कुछ बल भी देता है। जैसे: दस बुलाए, दसों आए। इसी आधार पर कहा जाता है कि जब दस का दसों, सौ का सैकड़ों, लाख का लाखों आदि हो सकते हैं तो अनेक का अनेकों क्यों नहीं हो सकता! "अनेक" शब्द प्रयोग की दृष्टि से परिमाणवाचक विशेषण के समकक्ष है। संज्ञा के साथ अन्वित होकर तिर्यक रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है, जैसे:  मैंने अनेकों मतदाताओं से बात की। और बिना तिर्यक रूप के भी, जैसे:  अनेक डॉक्टरों से परामर्श किया। कुछ लोग "कई लोगों का कहना है" कहने के बदले "कइयों का कहना है" कहते हैं। यही बात बहुतों के साथ भी है। हाँ, "सबों" का प्रयोग कम देखा गया है। बहुतों, कइ