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हैं और हूँ

हैं? हैं! •••••••• 'हैं' वर्तमान काल की द्योतक सहायक क्रिया है— 'होना' से विकसित 'है' का अन्य पुरुष, बहुवचन रूप । लड़का आया है। लड़के आए हैं। लड़कियाँ आई हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 'हैं' क्रिया ही नहीं, अव्यय भी है। अव्यय, अर्थात जिसका रूप लिंग, वचन, काल, कारक आदि के कारण नहीं बदलता।  दो स्थितियाँ हैं जब 'हैं' अव्यय बन जाता है। i ) आप किसी से बात कर रहे हैं और आपकी बात यदि सुनने वाले के लिए अधसुनी या अनसुनी रह जाती है अथवा सुनकर भी समझ में नहीं आती है तो वह कहता है- 'हैं?' और आप अपनी बात दोहराते हैं या और स्पष्ट करके कहते हैं। यह 'हैं' अव्यय है। i) इसी प्रकार विस्मय या अविश्वास प्रकट करने के लिए आपके मुँह से निकला 'हैं!' विस्मयसूचक अव्यय है। ~सुनो, भाभी आ रही हैं। ~हैं! कब? (अच्छा! आश्चर्य है) हूँ 'होना' क्रिया का ही वर्तमान काल, उत्तम पुरुष रूप 'हूँ' भी सहमति, अन्यमनस्कता, आश्चर्य इत्यादि को व्यक्त करने वाले अव्यय के रूप में प्रयुक्त हो सकता है। आप सुन रहे हैं? हूँ। (सहमति)  2:00 बजे तक लौट आओगे?  हूँ...

निरोग - नीरोग

निरोगी और नीरोगी •••••• उपसर्ग अव्यय होते हैं फिर भी दोनों में कुछ मूल रूप से अंतर है। अव्ययों का स्वतंत्र प्रयोग हो सकता है किंतु उपसर्गों का नहीं। उपसर्ग किसी न किसी धातु या निष्पन्न शब्द के साथ जुड़कर नए शब्द का निर्माण करते हैं। अव्ययों के कुछ निश्चित अर्थ होते हैं उपसर्ग के नहीं। कहा भी गया है कि उपसर्ग लगा देने से धातु का अर्थ अन्यत्र लिया जा सकता है जैसे एक 'हार' शब्द के साथ कुछ उपसर्ग प्रहार, संहार, आहार इत्यादि भिन्न-भिन्न शब्दों का निर्माण करते हैं जिनके अर्थ में भी विविधता है। संस्कृत में निर् उपसर्ग का एक अर्थ संकेत निषेध, अभाव, रहितता ओर है। निर्द्वन्द= द्वंद्व रहित, निरभिमान अभिमान रहित। संस्कृत व्याकरण के नियमों के अनुसार निर् + विघ्न = निर्विघ्न होगा किंतु अगले शब्द का आदि वर्ण 'र्' होने से निर्+ रुज - नीरुज, नीरव, नीरस बनेंगे (कुछ अपवाद भी हैं)। नीरोग भी (नि:> निस्/निर् + रोग) संस्कृत में विसर्ग संधि का उदाहरण है। विसर्ग संधि के बारे में संस्कृत का एक नियम है, 'रोरि'। रोरि के अनुसार यदि पहले शब्द के अन्त में ‘र्’ आए तथा दूसरे शब्द के पूर्व ...

नौमी या नवमी

नौमी या नवमी ?! ••••••••• यह अच्छा है कि तिथियों या पर्वों के बहाने हम लोग कभी-कभी भाषा के प्रति सजग-सचेत हो जाते हैं। बात चल निकलती है - पर्व का नाम यह कहना शुद्ध है, या वह? यह लिखना सही है, या वह सही है? अबकी बार हमारे एक मित्र ने पूछा है—  रामनवमी कहा जाए या रामनौमी? नौमी और नवमी दोनों शुद्ध हैं। तिथियों के क्रम में नौमी अर्थात नौवीं तिथि। पूनो (पूर्णिमा ) के आठ दिन बाद आने वाली तिथि को कृष्णपक्ष की नवमी कहा जाता है और अमावस के आठ दिन बाद आने वाली तिथि को शुक्लपक्ष की। इस प्रकार पूनो और अमावस को छोड़कर कोई भी तिथि महीने में दो बार आती है- एक बार शुक्ल पक्ष में और दूसरी बार कृष्ण पक्ष में।  नवमी तत्सम है और नौमी तद्भव। इसकी उत्पत्ति संस्कृत नव > नौ (९) से है। नव से क्रमसूचक विशेषण-  नवम > नौवाँ। नवम का स्त्रीलिंग - नवमी > नौमी > नौवीं। जैसे नौवाँ जन्मदिन, नौवीं वर्षगाँठ। परंपरानुसार चैत के महीने में शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान राम का जन्म उत्सव मनाया जाता है।  तुलसीदास के अनुसार- "नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकलपच्छ अभिजित हरि प्रीता॥ मध्य दिवस अति सीत न ...