सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अर्थापकर्ष के कुछ विचित्र उदाहरण



समय के साथ साथ शब्दों के अर्थों में कुछ ऐसी विचित्रता आ जाती है जो कोशीय अर्थ से बहुत दूर होती है, और अनादर या अपमान का भाव जुड़ जाता है। इसे अर्थापकर्ष (pejoration) कहते हैं। अपकर्ष अर्थात गिरना, डाउनग्रेड।
अर्थापकर्ष के अनेक उदाहरण हैं। यहाँ कुछ विचित्र उदाहरण दिए जा रहे हैं जो कुछ धार्मिक और सामाजिक मर्यादाओं के प्रति समाज की बदलती धारणा को या निंदाभाव को दर्शाते हैं।

छक्का (हिजड़ा) < षट्क, षडक् से क्योंकि ये लोग परंपरा से दो गुँथे हुए त्रिभुजों (षट्कोण) को अपना धार्मिक प्रतीक मानते हैं।
बुद्धू < बुद्ध, बौद्धों को मूर्ख बताने के लिए।
देवानां प्रियः < अशोक। बौद्धों पर व्यंग्य।



नंगा-लुच्चा < नग्न, लुंचित (जैन धर्म की धार्मिक क्रियाओं के प्रति अनादर भाव)
लालबेग (तिलचट्टा और स्वीपर के लिए) < लालबेग एक मुस्लिम संत थे। लालबेग मत के लोग भारत-पाक दोनों देशों में हैं। वर्ग विशेष को नीचा दिखाने के लिए ।
आवारा < यायावर (घुमक्कड़) से, कोई ठौर ठिकाना न होने का भाव।

टिप्पणियाँ

  1. यह गलती इतनी रूढ़ हो गयी है कि याद दिलाने पर लोग आपको ही गलत ठहराने लगते हैं. अखबारों में एक और भीषण प्रयोग देखिए: "सरकार 500 शिक्षकों की बहाली करेगी". वास्तव में खबर 500 नए शिक्षकों की नियुक्ति की है लेकिन वे इसे बहाली (जैसे कि वे निलंबित चल रहे हों) लिखते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  2. विषयांतर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ लेकिन कल प्रसारित एक अपील का नमूना यह भी हो सकता था I भाइयों और वाहनों -यह अजीब सम्वोधन क्यों ? क्योंकि "भाइयो" तो सब पैदल दौड़ रहे थे और वाहनों में जो अंदर बैठे थे, वे कौन थे इसका खुलासा नहीं कर सकते, इसलिए उनके लिए "वाहनों " शब्द का प्रयोग पर्याप्त है, समझदार को इशारा काफी है I

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. विषयांतर नहीं, विषयानुकूल ही है और सामयिक भी। विविध संदर्भों में भाषा प्रयोग उसे नएनए अर्थ देते हैं। भाषा पर, विशेषकर उसकी अर्थछबियों पर, आपकी पकड़ तो है ही लाजवाब!

      हटाएं
  3. सही कह रहे हैं। एक तरह की बेफ़िक्री है कि हम जो कह दें, लिख दें सब ठीक। ऐसी बातों को मैं हिंदी भाषियों की हेठी कहता हूँ। और समाचार शीर्षकों की भाषा तो कभी-कभी अर्थ नहीं अनर्थ करती है। कथ्य कुछ और शीर्षक कुछ... जैसा आपने संकेत किया।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत-स्तोत्र

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत और स्तोत्र अवचेतन मन में कहीं संस्कृत के कुछ शब्दों के सादृश्य प्रभाव को अशुद्ध रूप में ग्रहण कर लेने से हिंदी में कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखी जा रही है। 'स्रोत' ऐसा ही एक उदाहरण है। इसमें 'स्र' के स्थान पर 'स्त्र' का प्रयोग देखा जाता है - 'स्त्रोत'! स्रोत संस्कृत के 'स्रोतस्' से विकसित हुआ है किंतु हिंदी में आते-आते इसके अर्थ में विस्तार मिलता है। मूलतः स्रोत झरना, नदी, बहाव का वाचक है। अमरकोश के अनुसार "स्वतोऽम्बुसरणम् ।"  वेगेन जलवहनं स्रोतः ।  स्वतः स्वयमम्बुनः सरणं गमनं स्रोतः।  अब हम किसी वस्तु या तत्व के उद्गम या उत्पत्ति स्थान को या उस स्थान को भी जहाँ से कोई पदार्थ प्राप्त होता है,  स्रोत कहते हैं। "भागीरथी (स्रोत) का उद्गम गौमुख है" न कहकर हम कहते हैं- भागीरथी का स्रोत गौमुख है। अथवा, भागीरथी का उद्गम गौमुख है। स्रोत की ही भाँति सहस्र (हज़ार) को भी 'सहस्त्र' लिखा जा रहा है। कारण संभवतः संस्कृत के कुछ शब्दों के बिंबों को भ्रमात्मक स्थिति में ग्रहण किया गया है। हिंदी में तत्सम शब्द अस्त्