भाषाई पवित्रता के बहाने आगत (लोन) शब्दों का विरोध और उनके स्थान पर पारंपरिक शब्दों को अपनाने के आंदोलन विश्व की अनेक भाषाओं में हुए जो अंततः स्वयं ढीले पड़ गए। अंग्रेजी को फ्रांसीसी शब्दों से मुक्त करने की बात तो18वीं सदी से ही उठने लगी थी। 1825 में थॉमस जैफरसन ने इसे मजबूती से उठाया और विलियम्स बार्न ने तो अनेक नए शब्द तक बना डाले। लेकिन आज अंग्रेजी में फ्रेंच तो
छोड़िए, करीब 20% शब्द ग़ैर यूरोपीय भाषाओं के हैं जिनमें हिंदी, तमिल भी शामिल हैं।
आगत शब्दों का बहिष्कार करना ऐसा करने वाली भाषा की प्रगति को ही नहीं रोकता, उसका साँस लेना भी कठिन कर देता है। भाषा का दम घुटता है तो संस्कृति भी दम तोड़ती है।
हिंदी के बारे में इस पवित्रतावादी सोच की दिशा भी अजब है। मुख्य विरोध उर्दू से (दूसरे देश/धर्म की भाषा होने से, जबकि उर्दू और खड़ी बोली एक साथ जन्मी, पली, बढ़ी
हैं), लेकिन उपनिवेशवाद की हिंग्लिश स्वीकार है; फ़ारसी के वे शब्द भी अशुद्ध कहे जा रहे हैं जो मुसलमान शासकों के आने से सैकड़ों साल पहले से चल रहे हैं या जो भारतीय मूल के हैं लेकिन अब थोड़ा बदल गए हैं तो विदेशी हो गए; जैसे हज़ार <> सहस्र, होरा<>सौर। विदेशी या विधर्मी होने से यदि त्यागना आवश्यक ही हो तो अंगूर, अंजीर, गेहूँ, सरसों,
प्याज, लहसुन, गोभी, गाजर, टमाटर, आड़ू, आलू, आलू बुख़ारा, लाल मिर्च, अनन्नास,
खुबानी, लुकाट, शरीफ़ा, बब्बू गोशा, सेब जाने क्या-क्या छोड़ने की तैयारी करनी चाहिए।
आशा की जा सकती है कि हमें समय पर अक्ल आ जाएगी।
शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै...
अहोरात्र > ..होरा.. (Hour) अ और त्र का लोप हुआ है!
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