बालम आन बसो मोरे मन में! 💗
बताने की ज़रूरत नहीं है कि यह बालम कौन होता है। आप हैं तो भी जानते हैं, नहीं हैं तो भी। उनके हैं तो वे जानती हैं कि आप उनके बालम हैं, किसी के नहीं हैं तो वे चाहती हैं कि कोई तो हो जिसे दिखाते हुए गर्व से कह सकें- हाँ, यह रहे हमारे बलमा, यानी कि बालम। शास्त्रीय संगीत, फिल्मी गाने, लोकगीत, लोक कथाएँ, प्यार-मोहब्बत, ताने-बोल, कृपा-कटाक्ष, आम बोलचाल - सब में तो यह निगोड़ा बालम भरा पड़ा है।
आज इस बालम ने हमको सता रखा है। असल में जब भाषा की भाँग चढ़ती है, कोई कीट काटता है और व्युत्पत्ति के काँटे चुभते हैं तो मन में एक हूक उठती है, 'हाय बालम, तुम आए कहाँ से? तुम बने किस मिट्टी के हो?'
जैसे श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं सब धर्मो को त्याग कर मेरी शरण में आ जाओ, उसी प्रकार संस्कृत भाषा भी सभी भारतीय भाषाओं को कहती है कहीं रास्ता न मिले तो इस ओर आ जाओ, कुछ न कुछ व्यवस्था हो जाएगी, जैसे इस बलमा की हो गई।
संस्कृत में एक शब्द है वल्लभ। इसकी वर्तनी देखिए। इसे बल्लम पढ़ा-लिखा जा सकता है और बल्लम से बालम न केवल देखने में, बल्कि अर्थ में भी बहुत निकट है! जो बल्लम-सा दिखे, जिसकी पिटाई बल्लम से हो सके, जो बल्लम सा नीरस काष्ठ हो आदि आदि कई व्याख्याएँ हो सकती हैं, अर्थ निकाले जा सकते हैं। काश ऐसा होता, पर ऐसा है नहीं! यह बालम नाम का जीव बल्लम की तरह निर्जीव नहीं है।
संस्कृत में वल्लभ एक विशेषण है, जिसका अर्थ है प्रिय, प्यारा, डियर। श्री कृष्ण को राधावल्लभ कहा जाता है। गोपियाँ श्रीकृष्ण की वल्लभी, वल्लभाएँ थीं। हम जानते हैं कि विशेषण की तीन अवस्थाएँ होती हैं- सामान्य, तुलनावस्था और उत्तमावस्था। वल्लभ के भी इसी प्रकार तीन अवस्थाओं में रूप बनते हैं- वल्लभ (प्यारा), वल्लभतर (किसी की तुलना में अधिक प्यारा) और वल्लभतम (सबसे अधिक प्यारा)। 'बालम' शब्द संस्कृत के इसी 'वल्लभतम' से व्युत्पन्न है। पहले व का बना ब। और उसके बाद मुख्य सुख के लिए सरलता से उच्चारण के लिए बालम सबसे प्यारा, प्रियतम, सर्वाधिक प्रिय, dearest.
लता मंगेशकर और मुकेश का गाया हुआ यह बालम गीत याद आ रहा है:
छोड़ गए बालम! मुझे हाय अकेला छोड़ गए,
तोड़ गए बालम! मेरा प्यार-भरा दिल तोड़ गए ।
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