निखट्टू .... लोक में प्रचलित जनपदीय शब्दों की व्यंजना अद्भुत होती है। दैनंदिन विविध लोक व्यवहार में आने वाले ऐसे हजारों शब्द हैं। इससे पहले कि ये शब्द विलुप्त हो जाएँ, इनका संग्रह और अध्ययन किया जाना चाहिए। विद्यानिवास मिश्र (हिंदी की शब्द संपदा) तथा कुछ अन्य विद्वानों ने जनपदीय शब्दों पर कुछ महत्वपूर्ण कार्य किए हैं किंतु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। होली के इस मौसम में एक जनपदीय शब्द याद आया, 'निखट्टू'। ब्रज की एक प्रसिद्ध होली है, "रंग में होली कैसे खेलूँ री मेैं साँवरिया के संग।" भले ही होली मूलतः ब्रज क्षेत्र की हो किंतु इसकी व्याप्ति और लोकप्रियता संपूर्ण उत्तरी भारत में है। सच तो यह है कि भारत या बाहर, जहाँ भी होली मनाई जाती है वहाँ इस होली को अवश्य गाया जाता है। स्त्री-पुरुष हुड़दंग मचाते हैं और मस्ती में झूमते-गाते हैं - " रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग! कोरे-कोरे कलश भराये, जा में घोरौ रंग भर पिचकारी सन्मुख मारी, चोली है गई तंग। ढोलक बाजै, मजीरा बाजै और बाजै मिरदंग, कान्हाँ जी की वंशी बाजै, राधा जी के संग। लहँगा तेरौ घूम घुमारौ, च...
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