गोबर (cowdung) की एक नई व्युत्पत्ति देखी- "गो-वरदान"। यह आकर्षक तो है पर काल्पनिक लगती है। गोबर के लिए संस्कृत में प्रचलित है: गोमय [गोः पुरीषं गूथं वा ('गू' इति लोके) ]।
इसके अनेक पर्यायों में हैं गोमल, गोविष्ठा आदि। भावप्रकाश में गोठ के भीतर गायों के खुरों से कुचले, धूल-से सूखे गोमय को गोवर/गोर्वर कहा है।
यह गोर्वर ही प्राकृत में गोव्वर, 𑀕𑁄𑀯𑁆𑀯𑀭 (govvara), गोवर 𑀕𑁄𑀯𑀭 (govara) है, और संस्कृत में गोर्वर, हिंदी में गोबर जो गोवंश के सभी पशुओं गाय, बैल, बछड़ा आदि के मल के लिए और अर्थविस्तार से भैंस के मल के लिए भी है।
गोबर का सबसे लाभप्रद उपयोग खाद के रूप में सदियों से होता रहा है, किंतु भारत में जलाने की लकड़ियों का अभाव होने से इसका अधिक उपयोग ईंधन के रूप में होता है। ईंधन के लिये इसके गोहरे या कंडे बनाकर सुखा लिए जाते हैं। सूखे गोहरे अच्छे जलते हैं और उनपर बना भोजन, मधुर आँच पर पकने के कारण, स्वादिष्ट होता है। गोबर से बायोगैस, अगरबत्ती, दीपक, कागज़, गमला जैसे कई तरह के उत्पाद बनाए जा सकते हैं।
प्राचीन काल से ही गोबर का उपयोग आंगन आदि को लीपने तथा कुछ धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता रहा है।
नवीन भक्ति आंदोलन में गोबर के अनेक ऐसे लाभों की खोज कर ली गई है कि दुनिया हैरान है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभभाई कठेरिया ने गुजरात की एक गौशाला चलने वाली संस्था के द्वारा बनाई गई चिप को लेकर घोषणा की थी और कहा था, "यह एक एंटी रेडिएशन चिप है जिसे मोबाइल में रेडिएशन कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है." एक डाक्टर साहब बताते हैं कि गाय का गोबर खाने से महिलाओं की नार्मल डिलीवरी होती है। मोटापा डायबिटीज से भी निजात दिलाता है उनके अनुसार गोबर में प्रचुर मात्रा में विटामिन बी 12 होता है, जो रेडिएशन से बचाता है। रेडिएशन से कैंसर जैसी बीमारी होती है। गोमूत्र और गोबर का सेवन करने से इस बीमारी को काफी कम किया जा सकता है।
भाषा और साहित्य में भी गोबर सिर्फ गोबर नहीं है। गोबर से बनी अनेक लाक्षणिक उक्तियाँ, मुहावरे हिंदी में प्रचलित हैं।
गोबर गणेश (सीधा-सादा, मूर्ख, भद्दा)
गोबर का लोंदा (अस्थिर बुद्धि, ढुलमुल)
गोबर की चोंथ (विकृत संरचना का, कुरूप, भद्दा)
गोबर पाथना (बेगार करना)
गोबर की साँझी भी फरिया ओढ़े अच्छी लगती है (शृ़ंगार करने से कुरूप भी अच्छा दिखाई देता है)
और ...?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें