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नवंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सँभल संभल

संभल और सँभल भिन्न शब्द हैं और अनुस्वार (ं )। अनुनासिक (ँ ) समझने के लिए बड़े उपयुक्त उदाहरण हैं! संभल उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जिले का एक शहर है जो आजकल चर्चा में है। सँभल/ सँभाल संस्कृत संभरण (सँभलना) से है, जिसका अर्थ है गिरने फिसलने चोट आदि से बचना, सावधान रहना। ं और  ँ के प्रयोग को न समझने से अर्थ में भ्रम हो सकता है। लगभग समान ध्वनियों का एक अन्य शब्द है संबल अर्थात सहारा।  सरसरी दृष्टि में संभल का महाप्राण /भ/ अल्पप्राण /ब/ में बदल गया है। संबल संभार से है और इसका मूल अर्थ है पाथेय, यात्रा के लिए सामग्री।  मार्गव्यय। कुछ नए शब्द (neonyms) बनाए गए हैं- सम्बलन (enforcement ) सम्बलित (reinforced). इनका मूल बल (force) है। इसी संबल से कुमाउँनी में एक शब्द है 'सामल'। सामलै' पुन्थुरि , रास्ते के लिए सामग्री की पोटली। देशज शब्द 'सब्बल' (गदाला, Crowbar) भिन्न है। सब्बल लोहे एक उपकरण है जिसका उपयोग चट्टान तोड़ने, खुदाई, निर्माण और बागवानी से जुड़े कई कामों में किया जाता है. 

हिंदी-उर्दू : अद्वैत में द्वैत

हिंदी-उर्दू : अद्वैत में द्वैत 1. उर्दू का कोई भी वाक्य हिंदी की सहायक क्रिया है, था, गा-गे-गी के बिना पूरा नहीं हो सकता। ~ आता है/ आया था/ आएगा। ~कौन है? कौन था? कौन होगा? 2. मुख्य क्रियाएँ या तो हिंदी की हैं या अन्य शब्दों के साथ होना, करना लगाकर बना ली जाती हैं। ~तैयार हुआ। ~तैयार किया। ~धोता है। ~सफाई करता है। 3. उर्दू में अधिकतर क्रियाविशेषण हिंदी के हैं । कब, जब तक, ऐसे, वैसे, दौड़ कर, फिसलता हुआ। 4. बोलचाल की उर्दू या बोलचाल की हिंदी में विशेष अंतर नहीं है। बोलचाल- आइए, बैठिए। (औपचारिक: हिंदी -पधारिए, उर्दू - तशरीफ़ रखिए) 5. हिंदी-उर्दू में वाक्य रचना का सर्वाधिक प्रचलित ढाँचा एक समान कर्ता + क्रिया (S+V), कर्ता + कर्म + क्रिया (S+O+V) 6. भिन्न भाषाओं का एक प्रमुख निर्धारक लक्षण है कारक प्रत्ययों की भिन्नता। हिंदी-उर्दू के कारक प्रत्यय समान हैं - (ने, को, से, के लिए, का, के ,की, में, पर, ओ, अरे!) मैंने, आपको, दूर से, तुम्हारे लिए, घर का, सड़क पर, जेल में, अरे भाई! 7. निम्नलिखित हिंदी शब्दों में से एक या अधिक के बिना उर्दू में कोई भी वाक्य बन ही नहीं सकता। मैं...

शाकाहार, मांसाहार और वीगन

शाकाहार, मांसाहार और वीगन  आहार (आङ् + हृ + घञ्) भोजन, जेमन, खाना-पीना आहार के अंतर्गत आता है। यह संस्कृत शब्द है जो अनेक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त हो रहा है। आहार से बने अनेक शब्द भी व्यवहार में है जैसे फलाहार, शाकाहार, मांसाहार, दुग्धाहार, निराहार, अल्पाहार , स्वल्पाहार। इनसे विशेषण बनाए जा सकते हैं- फलाहारी, शाकाहारी, मांसाहारी, स्वल्पाहारी।  भोजन के घटक, प्रभाव, प्रवृत्ति, प्रकृति, पाकविधि आदि के आधार पर भारतीय परंपरा से आहार तीन प्रकार का माना गया है। श्रीमद् भगवद्गीता और चरक आदि के आयुर्वेदिक ग्रंथों में इनका उल्लेख है। सात्विक - पवित्रता से निर्मित, आयु और बलवर्धक, स्वादिष्ट होता है। यह आहार मानसिक शांति और सात्विकता को बढ़ावा देने वाला माना जाता है। इसमें फल, सब्जियाँ, अनाज, दूध, दही, मेवे, घानी के वानस्पतिक तेल, गाय का घी आदि शामिल होते हैं।   राजसिक- तला हुआ भोजन, मिठाई, तीखे स्वाद का, बहुत अधिक मसालों और नमक वाला, मांस-मदिरा आदि राजसी भोजन के अंतर्गत आते हैं। यह भारी होता है, देर से पचता है और आलसी बनाता है।  तामसिक- सड़ी-गली वस्तुओं का बना, बासी, ...

घर-बार, बार और बार

♦️ घर-बार का 'बार' संस्कृत द्वार अथवा वारक (रोकने वाला, रुकावट) से है, अर्थ है दरवाज़ा।  बरोठा, बारजा इसी से हैं। विवाह में 'बार रोकाई' नाम से एक लोकाचार प्रचलित है जिसमें नव विवाहित वर-वधू को दरवाज़े के पास रोककर कुछ कर्मकांड किया जाता है। बहन अपने भाई-भाभी को विवाह के बाद घर में प्रवेश करने से पहले दरवाज़े पर रोक कर नेग माँगती है। उन मित्रों के लिए यह बात और भी महत्त्वपूर्ण है जो शाम होते-होते घर को अंग्रेजी वाला 'बार' समझ लेते हैं, और ईश्वर न करें, कुछ ऐसा-वैसा या ऊँच-नीच हो जाए तो बात विधि विशेषज्ञों के बार तक पहुँच जाती है। हमारा काम था आपको बताना, अब हम बार-बार तो समझाने से रहे!  ♦️

भड़कना (بَھڑَکْنَا)

भड़कना (بَھڑَکْنَا) ••••••••• "जितना अच्छा आप हिंदी/उर्दू में भड़कते हैं उतना अंग्रेजी में 'एंग्री' हो ही नहीं सकते!" (डॉ आरिफ़ा सैयदा ज़हरा) 'भड़कना' क्रिया सौरसेनी प्राकृत *भड़क्कदि (अचानक हिलना, शोर करना) से व्युत्पन्न है। समय के साथ-साथ अर्थ विस्तार से अब हिंदी में भड़कना का अर्थ है तेज़ी से जलना, गर्म होना; तमतमाना, आवेश में आना; उत्तेजित होना।  आग ही नहीं, इंसान भी भड़कते हैं, पड़ोसी भी और देश भी। दिखावे के लिए ही सही, नेता भी भड़कते हैं। ये बात और है कि जनता को भड़कने का अधिकार नहीं है। भड़क भी गई तो क्या कर लेगी। खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर, कटना खरबूजे को ही होता है। कुमाउँनी में भड़कना का प्राकृत वाला मूल अर्थ भी जीवित है; भड़कण अर्थात अकारण हिलना-डुलना।