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हिंदी-उर्दू : अद्वैत में द्वैत

हिंदी-उर्दू : अद्वैत में द्वैत
1. उर्दू का कोई भी वाक्य हिंदी की सहायक क्रिया है, था, गा-गे-गी के बिना पूरा नहीं हो सकता।
~ आता है/ आया था/ आएगा।
~कौन है? कौन था? कौन होगा?
2. मुख्य क्रियाएँ या तो हिंदी की हैं या अन्य शब्दों के साथ होना, करना लगाकर बना ली जाती हैं।
~तैयार हुआ।
~तैयार किया।
~धोता है।
~सफाई करता है।
3. उर्दू में अधिकतर क्रियाविशेषण हिंदी के हैं ।
कब, जब तक, ऐसे, वैसे, दौड़ कर, फिसलता हुआ।
4. बोलचाल की उर्दू या बोलचाल की हिंदी में विशेष अंतर नहीं है।
बोलचाल- आइए, बैठिए।
(औपचारिक: हिंदी -पधारिए, उर्दू - तशरीफ़ रखिए)
5. हिंदी-उर्दू में वाक्य रचना का सर्वाधिक प्रचलित ढाँचा एक समान
कर्ता + क्रिया (S+V),
कर्ता + कर्म + क्रिया (S+O+V)
6. भिन्न भाषाओं का एक प्रमुख निर्धारक लक्षण है कारक प्रत्ययों की भिन्नता। हिंदी-उर्दू के कारक प्रत्यय समान हैं - (ने, को, से, के लिए, का, के ,की, में, पर, ओ, अरे!)
मैंने, आपको, दूर से, तुम्हारे लिए, घर का, सड़क पर, जेल में, अरे भाई!
7. निम्नलिखित हिंदी शब्दों में से एक या अधिक के बिना उर्दू में कोई भी वाक्य बन ही नहीं सकता।
मैं, आप, तू, यह, वह, ये , वो, हम, तुम, तेरा, मेरा, तुम्हारा, हमारा, उसका, उनका, इस, उस, किस, जिस, किन, उन, जिन, कौन, ऐसा, वैसा, जैसा, तैसा, तुम्हीं, उन्हीं , वही, सभी।
कहाँ, यहाँ, जहाँ, वहाँ, कभी, तभी, यही, वही, यहीं, वहीं, कहीं, क्या, कैसे, ऐसे , वैसे, जैसे, तैसे, अब, कब, जब, तब, इधर-उधर।
और, हाँ, ना, नहीं, क्यूँ, इसलिए, इसीलिए , तो, भी, ही, जी।
(अधूरा...)

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