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दूथ और दुहिता

दूध और दुहिता


 दूध और बेटी का साथ बहुत पुराना है, शायद इसलिए कि गौ माता को दुहने का काम पहले बेटी ही करती हो। असल में संस्कृत में √दुह् धातु दूध दुहने के अर्थ में है। इसी धातु से बने हैं दुग्ध और दुहितृ अर्थात पुत्री।
यह दुहितृ मूलतः पुरा ईरान-यूरोपीय PIE के *dʰewgʰ (संस्कृत √दुह्) से व्युत्पन्न है और यूरोप और एशिया की अनेक भाषाओं में यह शब्द आज भी इसी अर्थ में उपस्थित है। इस जैसे अनेक शब्दों की व्यापक रोचक उपस्थिति सिद्ध करती है कि भाषाएँ परस्पर कितनी मिली हुई हैं।
अंग्रेजी में डॉटर daughter, पर्शियन, उर्दू में दुख़तर دختر‎ ,  से तो हम सुपरिचित हैं। इनके अतिरिक्त अनेक मध्य एशियाई भाषाओं  पश्तो, अवेस्ता, लिथुआनियन, इस्फ़हानी, हमादानी, ग्रीक, रूसी आदि में थोड़े से भिन्न उच्चारण के साथ किंतु इसी अर्थ में यह शब्द मिल जाएगा। 
संस्कृत में अन्य कुछ शब्द भी दुह्/ दुहितृ से बने हैं।
जैसे: दौहित्र (नाती),
दौहित्री (नतिनी),
दौहित्रायण (नाती का बेटा),
दौहित्रायणी (नाती की पुत्री) आदि।
हिंदी में दुहना क्रिया इसी दुह् से व्युत्पन्न है। कुछ अन्य शब्द हैं - दोहन, दुग्ध > दूध, दोग्धा (दुहने वाला)। पंजाबी और हिंदी में धी शब्द भी दुहितृ से बना है। इसी से निष्पन्न होते हैं धेवता, धेवती।
दोग्धा के प्रसंग में याद आया कि गीता की महिमा में कहा गया है:

सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।

 “समस्त उपनिषद गायों के समान  हैं, उन्हें दुहने वाला ग्वाला श्रीकृष्ण है। उस दुग्ध का प्रथम आस्वादन करने वाला  बछड़ा अर्जुन है और बछड़े से बचे गीतामृत का पान करने वाले शुद्ध बुद्धि वाले जन हैं।”



(चित्र: राजा रविवर्मा कला दीर्घा)

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