सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आना क्रिया की कुछ अर्थ छटाएँ

 आना क्रिया के कारनामे 

हिंदी में "आना" क्रिया के प्रयोग अनेक अर्थ छटाओं में प्राप्त होते हैं। यहाँ हम उनमें से कुछ छटाओं के कुछ आयामों की चर्चा करेंगे ।

आना गत्यर्थक अकर्मक क्रिया है जिससे वक्ता या उल्लिखित संदर्भित व्यक्ति के प्रति कर्ता की गति का बोध होता है। चलने के स्थान का उल्लेख 'से' प्रत्यय से तथा उद्दिष्ट स्थान, आने, पहुँचने के स्थान का बोध प्रायः 'तक' से हो सकता है या इसके लिए कोई कारक प्रत्यय नहीं भी हो सकता।
~जीजा जी घर आए।
~नेताजी दिल्ली से आगरा आए ।
~मैं कानपुर से लखनऊ तक आपके साथ आ रहा हूँ।

एक विचित्र स्थिति तब आती है जब गतिशील कर्ता उद्दिष्ट स्थान के साथ आना क्रिया लगाता है जो स्थिर है और क्रिया का वास्तविक कर्ता भी नहीं है। तब मन के अर्थ बिंब के अनुसार अर्थ ग्रहण करते हैं। जैसे:
~स्टेशन आया, मैं उतर गया (स्टेशन नहीं, गाड़ी स्टेशन पर आई)
~अब आगरा आएगा (अब आगरा पहुँचेंगे)

किसी कौशल या विद्या की जानकारी होने के लिए भी आना किया प्रयुक्त होती है। ऐसी स्थिति में कर्ता के साथ 'को' विभक्ति लगती है। क्रिया प्रायः अपूर्ण पक्ष में होती है और इस संरचना को "जानना" संरचना से बदला जा सकता है । जैसे:
~मुझे संस्कृत आती है / मैं संस्कृत जानता हूँ।
~तुम्हें तैरना नहीं आता / तुम तैरना नहीं जानते।

आना संयुक्त क्रिया पद के दोनों घटकों में आ सकती है अर्थात मूल क्रिया और रंजक क्रिया के रूप में। जहाँ मूल क्रिया के रूप में प्रयुक्त होती है वहाँ कुछ क्रियाएँ ही इसका साथ देती है । जैसे: आ धमकना, आ पड़ना, आ गुजरना। रंजक क्रिया के रूप में यह क्रिया व्यापार के धीरे-धीरे होने का अर्थ देती है। जैसे: 

~बादल घिर आए। ~आँसू उमड़ आए। ~आँखें भर आईं।

आना क्रिया का एक अर्थ समाना, अँटना, फिट होना भी है।
~यह कमीज मुझे नहीं आती, तुम पहन कर देखो।
~इस बरतन में 2 लीटर दूध कैसे आएगा ?
~क्या इस थैले में दो पैकेट आ जाएँगे?

मूल्य के बदले किसी चीज को प्राप्त करने के अर्थ में भी आना क्रिया का प्रयोग होता है। जैसे:
~दस रुपये में भला आता ही क्या है आजकल? 
~यह आम कितने के आए ?
~मुंबई का टिकट कितने का आएगा?

आना क्रिया फलने, फ़सल होने, बढ़वार , वृद्धि का संकेत भी करती है। जैसे:
~इस वर्ष बाग़ में आम बहुत आए हैं।
~गीता तो अपने पति के कंधे तक ही आती है।
~धान कमर तक आ गए।
~यह बेल कितनी जल्दी ऊपर आ गई!

हमारे कुछ शारीरिक और मानसिक क्रिया व्यापारों के लिए भी आना क्रिया का प्रयोग होता है। जैसे:
शारीरिक व्यापार -- नींद आना, सुस्ती आना, उबकाई आना, खाँसी आना, उल्टियाँ आना, चक्कर आना आदि ।
मानसिक व्यापार -- क्रोध आना, प्यार आना, याद आना, गुस्सा आना, पसंद आना, विचार आना, ध्यान आना आदि।

कुछ विशेष रोगों के लिए प्रायः आना क्रिया अधिक प्रयोग की जाती है। जैसे:
आँख आना, (आँख का संक्रामक रोग conjunctivitis आदि)
माता आना  (चेचक, खसरा)
मुँह आना   (मुँह के भीतर छाले blisters)।


टिप्पणियाँ

  1. सार्थक और विद्वतापूर्ण कथन । ' आया ' क्रिया की छटा बिखेर दी आपने ।
    धन्यवाद दादा स्वस्थ रहे कुशल रहे ।
    प्रणाम

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दंपति या दंपती

 हिदी में पति-पत्नी युगल के लिए तीन शब्द प्रचलन में हैं- दंपति, दंपती और दंपत्ति।इनमें अंतिम तो पहली ही दृष्टि में अशुद्ध दिखाई पड़ता है। लगता है इसे संपत्ति-विपत्ति की तर्ज पर गढ़ लिया गया है और मियाँ- बीवी के लिए चेप दिया गया है। विवेचन के लिए दो शब्द बचते हैं- दंपति और दंपती।  पत्नी और पति के लिए एकशेष द्वंद्व समास  संस्कृत में है- दम्पती। अब क्योंकि  दंपती में  पति-पत्नी दोनों सम्मिलित हैं,  इसलिए संस्कृत में इसके रूप द्विवचन और बहुवचन  में ही चलते हैं अर्थात पति- पत्नी के एक जोड़े को "दम्पती" और  दंपतियों के  एकाधिक जोड़ों को  "दम्पतयः" कहा जाएगा।   वस्तुतः इसमें जो दम् शब्द है उसका संस्कृत में अर्थ है पत्नी। मॉनियर विलियम्ज़ की संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी में जो कुछ दिया है, उसका सार है: दम् का प्रयोग ऋग्वेद से होता आ रहा है धातु (क्रिया) और संज्ञा के रूप में भी। ‘दम्’ का मूल अर्थ बताया गया है पालन करना, दमन करना। पत्नी घर में रहकर पालन और नियंत्रण करती है इसलिए वह' "घर" भी है। संस्कृत में ‘दम्’ का स्वतंत्र प्रयोग नहीं मिलता। तुलनीय है कि आज भी लोक म

राजनीतिक और राजनैतिक

शब्द-विवेक : राजनीतिक या राजनैतिक वस्तुतः राजनीति के शब्दकोशीय अर्थ हैं राज्य, राजा या प्रशासन से संबंधित नीति। अब चूँकि आज राजा जैसी कोई संकल्पना नहीं रही, इसलिए इसका सीधा अर्थ हुआ राज्य प्रशासन से संबंधित नीति, नियम व्यवस्था या चलन। आज बदलते समय में राजनीति शब्द में अर्थापकर्ष भी देखा जा सकता है। जैसे: 1. मुझसे राजनीति मत खेलो। 2. खिलाड़ियों के चयन में राजनीति साफ दिखाई पड़ती है। 3. राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। 4. राजनीति में सीधे-सच्चे आदमी का क्या काम। उपर्युक्त प्रकार के वाक्यों में राजनीति छल, कपट, चालाकी, धूर्तता, धोखाधड़ी के निकट बैठती है और नैतिकता से उसका दूर का संबंध भी नहीं दिखाई पड़ता। जब आप कहते हैं कि आप राजनीति से दूर रहना चाहते हैं तो आपका आशय यही होता है कि आप ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते जो आपके लिए आगे चलकर कटु अनुभवों का आधार बने। इस प्रकार की अनेक अर्थ-छवियां शब्दकोशीय राजनीति में नहीं हैं, व्यावहारिक राजनीति में स्पष्ट हैं। व्याकरण के अनुसार शब्द रचना की दृष्टि से देखें। नीति के साथ विशेषण बनाने वाले -इक (सं ठक्) प्रत्यय पहले जोड़ लें तो शब्द बनेगा नै

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत-स्तोत्र

स्रोत-श्रोत्र-श्रौत और स्तोत्र अवचेतन मन में कहीं संस्कृत के कुछ शब्दों के सादृश्य प्रभाव को अशुद्ध रूप में ग्रहण कर लेने से हिंदी में कुछ शब्दों की वर्तनी अशुद्ध लिखी जा रही है। 'स्रोत' ऐसा ही एक उदाहरण है। इसमें 'स्र' के स्थान पर 'स्त्र' का प्रयोग देखा जाता है - 'स्त्रोत'! स्रोत संस्कृत के 'स्रोतस्' से विकसित हुआ है किंतु हिंदी में आते-आते इसके अर्थ में विस्तार मिलता है। मूलतः स्रोत झरना, नदी, बहाव का वाचक है। अमरकोश के अनुसार "स्वतोऽम्बुसरणम् ।"  वेगेन जलवहनं स्रोतः ।  स्वतः स्वयमम्बुनः सरणं गमनं स्रोतः।  अब हम किसी वस्तु या तत्व के उद्गम या उत्पत्ति स्थान को या उस स्थान को भी जहाँ से कोई पदार्थ प्राप्त होता है,  स्रोत कहते हैं। "भागीरथी (स्रोत) का उद्गम गौमुख है" न कहकर हम कहते हैं- भागीरथी का स्रोत गौमुख है। अथवा, भागीरथी का उद्गम गौमुख है। स्रोत की ही भाँति सहस्र (हज़ार) को भी 'सहस्त्र' लिखा जा रहा है। कारण संभवतः संस्कृत के कुछ शब्दों के बिंबों को भ्रमात्मक स्थिति में ग्रहण किया गया है। हिंदी में तत्सम शब्द अस्त्