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कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो ।—कबीर

हिंदी उर्दू में एक शब्द है ठग, जो अब अंग्रेजी में भी अपना स्थान बना चुका है। ठग शब्द को संस्कृत की √स्थग् धातु से निष्पन्न माना जाता है। √स्थग् से विशेषण बनता है स्थग, जिसका अर्थ है जालसाज, धूर्त, बेईमान, छली निर्लज्ज Fraudulent, dishonest, a rogue, a cheat। ठग शब्द सुनते ही लोगों के दिमाग़ में चालाक और मक्कार आदमी की तस्वीर उभरती है जो झाँसा देकर कुछ कीमती सामान ठग लेता है। शब्द रत्नावली के अनुसार “धूर्तो स्थगश्च निर्लज्जः पटुः पाटविकोऽपि च ॥ ”

व्युत्पत्ति की दृष्टि से स्थगन, स्थगित शब्द भी इसी 'ठग, के भाई-बंधु हैं।

ठगी, धोखाधड़ी, लूटपाट, हत्या जैसे काम करना ही ठगों का पारंपरिक व्यवसाय रहा है। इनकी विशेष कार्य स्थली गंगा-यमुना का दोआबा माना जाता था, किन्तु अन्यत्र भी इनकी धूम रही है। अंग्रेजों के ज़माने में भी इनको जरायमपेशा (अपराध वृत्ति के) माना जाता था। भारत में 19-वीं सदी में जिन ठगों से अंग्रेज़ों का पाला पड़ा था, वे कोई मामूली लोग नहीं थे। ठगों के बारे में सबसे दिलचस्प और प्रामाणिक जानकारी 1839 में छपी  पुलिस सुपरिटेंडेंट फ़िलिप मीडो टेलर की पुस्तक 'कनफ़ेशंस ऑफ़ ए ठग' से मिलती है जो ठगों के एक सरदार आमिर अली खां का 'कनफ़ेशन' यानी इक़बालिया बयान है।

टेलर ने लिखा है, "अवध से लेकर दक्कन तक ठगों का जाल फैला था, उन्हें पकड़ना इसलिए बहुत मुश्किल था क्योंकि वे बहुत ख़ुफ़िया तरीके से काम करते थे. उन्हें आम लोगों से अलग करने का कोई तरीका ही समझ नहीं आता था. वे अपना काम योजना बनाकर और बेहद चालाकी से करते थे ताकि किसी को शक न हो." इससे यह भी ज्ञात होता है कि ठगों की शब्दावली, भाषा, संकेत, गिनती भी भिन्न होती है जिसके कारण इनका "शिकार" आसानी से घिर जाता है।

जैसी कि एक कहावत है, "नाम में क्या रखा है", कानपुर के एक मशहूर हलवाई ने अपनी दुकान को नाम दिया "ठग्गू" और प्रसिद्ध उत्पाद का नाम ठग्गू के लड्डू। खबर थी कि अभिषेक-ऐश्वर्या बच्चन के विवाह में भी ठग्गू की मिठाई ने धूम मचाई थी।
  
ठगों की ठगी से हटकर अब डाकू की ओर बढ़ें। यों दिलेर और खूँखार डाकू दुनिया भर में हुए हैं पर चीन, म्यामार, भारत के बहुत से डाकू इतिहास प्रसिद्ध हैं। ऐसे भी नामी डाकू हुए हैं जिनसे सरकार तो काँपती थी पर गरीब उन्हें दुआएँ देते थे। ऐसा ही एक डाकू था सुल्तान सिंह उर्फ़ सुल्ताना डाकू जिसे "रॉबिनहुड ऑफ इंडिया" कहा जाता था। चम्बल के बीहड़ एक ज़माने में डाकुओं के गढ़ माने जाते थे। गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने अनेक डाकुओं को आत्मसमर्पण के लिए मना कर उनका आम जीवन में पुनर्वास करवाया था।

अब डाकू शब्द की व्युत्पत्ति भी समझी जाए। संस्कृत में एक धातु है √द्राक् जिसका अर्थ है तेज़ दौड़ना। महत्वपूर्ण संवाद दौड़कर ही दिया जाता था इसलिए संभवतः √द्राक् > डाक बन गया हो किंतु डाकू का संबंध इससे नहीं लगता। यह मूलतः कहाँ से आया कहना कठिन है, किंतु इसका अधिक प्रयोग फ़ारसी के साथ ही मिलता है। "शब्दसागर" में इसे 'डाका' देशज शब्द से माना है जिसका अर्थ है, माल-असबाब लूटने के लिए दल बाँधकर किया जाने वाला धावा, लुटेरों का हमला करना, लूट मार, बटमारी, लूटपाट। डाका डालने वाला कहलाया, "डाकू"।

बांग्ला में "डाक" जोर से बुलाने, टेरने के अर्थ में है। कुछ कोश डकैत से डाकू की व्युत्पत्ति मानते हैं किंतु अंग्रेजी में डकैत (dacoit) शब्द भारतीय मूल का माना जाता है, इससे बना है dacoity > डकैती! मैरियम वेब्स्टर कोश 'संभवतः' संस्कृत 'द्रक्ष' (द्राक्ष <द्राक्?) से मानता है।

माने घूमफिर कर मियाँ जी की जूती मियाँ जी के सर वाली कहावत! अपने देश का डाकू इंग्लैंड से लौटा डकैत बनकर और फिर उलझ गया डकैती (dacoity) में।

ठग, डाकू की ही बिरादरी का एक शब्द है मवाली مَوَالِی , जो अरबी भाषा का है। इसका मूल शाब्दिक अर्थ तो सहयोगी, सहकार, ग्राहक था लेकिन अरब में भी यह अपशब्द माना जाता था। यह उन ग़ैरअरबी लोगों के लिए प्रयुक्त होता था जो इस्लाम में धर्मांतरित होने पर भी दोयम दर्जे के नागरिक माने जाते थे। इन्हें किसी स्थानीय ट्रस्टी के अधीन होना ज़रूरी होता था जिन्हें मुतवल्ली कहा जाता था।

मवाली शब्द हिंदी-उर्दू और उत्तरी भारत की अनेक भाषाओं में गुंडे, बदमाश, आवारा, ठग, धूर्त, चोर-उचक्कों के अर्थ में प्रयुक्त होता है। किसानों के लिए किसी संभ्रांत मंत्री के द्वारा यह प्रयोग कभी सुना नहीं गया इसलिए इसे ऐतिहासिक महत्व का माना जाना चाहिए। 

बदमाश,  लोगों से लड़ने झगड़ने या मारपीट करने वाला आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति हिंदी/उर्दू, पंजाबी और अनेक भारतीय भाषाओं में गुंडा कहा जाता है। गुंडा उद्दंडतापूर्वक आचरण करने वाला व्यक्ति है जो अनियंत्रित रूप से  कहीं भी शांति भंग कर सकता है । दुर्गुणों से संपन्न ऐसे व्यक्ति के अर्थ में गुंडा की उत्पत्ति पश्तो से मानी जाती है। विशेषकर टर्नर इसे पश्तो मूल का मानते हैं। श्यामसुंदर दास इसे संस्कृत गुंड या गुंडक से व्युत्पन्न मानते हैं। जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानी "गुंडा" का नायक नन्हकूसिंह गुंडा की परिभाषा से कहीं ऊँचे स्तर का गुंडा है - काशी का गुंडा!

दूसरी ओर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में गुंडा का अर्थ इतना निषेधात्मक नहीं है। मराठी में गांवगुंडा एक प्रकार से गांव का प्रमुख है। तमिल तेलुगू कन्नड में भी गुंडा शब्द प्रचलित है। इसलिए इसे द्रविड़ मूल का भी माना जा सकता है। लगता है पश्तो मूल के गुंडा की संगत से द्रविड़ परिवार के गुंडा में अर्थविस्तार हो गया।



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