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समीप : जल से निकट तक


"समीप" शब्द का संस्कृत में व्युत्पत्तिपरक अर्थ है- जहाँ जल अच्छी प्रकार से गति करे;  (सङ्गता आपोऽत्र, सम्+आप्) परन्तु आज हिंदी कोशो में और हिंदी के व्यवहार में समीप जल का नहीं, सर्वत्र निकटता का द्योतक है। सहज प्रश्न उठता है कि "समीप" शब्द जल को छोड़कर  निकट के अर्थ में क्यों चल पड़ा?

कोई शब्द भाषा में किसी विशेष अर्थ में रूढ़, प्रधान हो जाता है। रूढ़ हो जाने पर उसकी व्युत्पत्ति या व्याकरणिक दृष्टि गौण हो जाती है और लोक प्रमाण प्रमुख। जल के साथ समीप का संबंध भी लोक व्यवहार से ही जुड़ा प्रतीत होता है।
"अपां समीपे नियतो नैत्यकं विधिमास्थितः ।
सावित्रीमप्यधीयीत गत्वारण्यं समाहितः ॥"
मनुः ।  २ ।  १०४ ।
नित्य नैमित्तिक कर्म करने, संध्या-वंदन, गायत्री जप आदि के लिए नदी या जल के निकट जाने की लोक परंपरा थी। कालांतर में संध्यादि कर्म के लिए नदी या सरोवर तक जाना आवश्यक नहीं रहा; अर्थात् 'समीप' आवश्यक नहीं रहा। समीप के साथ 'निकटता' का अर्थ जुड़ गया। इसे अर्थ विस्तार भी कहा जाता है। हजारों वर्षों से लोक प्रयोग में यह समीप निकटता के लिए रूढ़ हो गया।
"समीपे निकटासन्नसन्निकृष्टसनीडवत्।।"
अमरः ३.१.६६.२.१

वैयाकरणों ने लोक प्रमाण को सर्वाधिक महत्व दिया है।
"शब्दार्थसंबन्धे लोकव्यवहारो एव प्रमाणं नान्यत् ।"
महाभाष्य प्रदीप ४/१/९३
जहाँ कहीं शास्त्रीय और लोक प्रसिद्ध व्यवहारों में विरोध होता है, व्याकरण दर्शन लोक प्रसिद्ध पक्ष को ही प्रश्रय देता है । किसी वस्तु के स्वभाव का ज्ञान तर्क से नहीं होता, अभ्यास से होता है । देखें वाक्यपदीयम्
धर्मस्य चाव्यवच्छिन्नाः पन्थानो ये व्यवस्थिताः ।
न तांल्लोकप्रसिद्धत्वात्कश्चित्तर्केण बाधते ॥ १.३१ ॥
अवस्थादेशकालानां भेदाद्भिन्नासु शक्तिषु ।
भावानां अनुमानेन प्रसिद्धिरतिदुर्लभा ॥ १.३२ ॥

एक बात और ध्यान देने की है। भारतीय चिंतन में ही शब्दों की व्युत्पत्ति के लिए धातु, प्रत्यय आदि के सहारे मूल तक जाने की परंपरा है। भाषा में एक शब्द और है, "यादृच्छिक"। किसी शब्द का कोई अर्थ क्यों रूढ़ हो गया, इसे नियमों में बाँधना कठिन है। इसलिए कहा गया "यादृच्छिक" अर्थात मनमाना। भारतीय परंपरा में भी यदि हम व्युत्पत्ति करते हुए मूल धातु तक पहुँच भी जाएँ तो फिर एक प्रश्न बनता है कि मूल धातु का अमुक अर्थ ही क्यों है, इससे भिन्न क्यों नहीं? तो इसका उत्तर भी यही है - "यादृच्छिक"। भाषा है ही यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की लोक स्वीकृत व्यवस्था।

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