धम से धमाका बचपन में टोका जाता था - "धम-धम करके मत चलो। पैर इतना सँभलकर रखो कि पदचाप सुनाई न दे।" यह शिष्टाचार का अंग था कि पदचाप का स्वर तीव्र नहीं होना चाहिए। स्पष्ट है धम या या धम्म ध्वन्यात्मक शब्द है। कोई भारी वस्तु धम्म से नीचे गिरती है। धम से बनता है धमक । धमक कर चलना वही है जिससे हमें शिष्टाचार बरतते हुए बचने को कहा जाता था। सजधजकर चलते हुए किसी की भी चाल में धमक आ ही जाती है, क्योंकि उसकी चमक-दमक के साथ ही साथ चमक-धमक भी आकर्षक होती है। धमकना इससे मिलता-जुलता है, पहचान में शायद न आए कि इसमें भी ध्वन्यात्मक "धम्म" है। कोई अचानक आ जाता है तो वह धम की पदचाप करता हुआ ही आता होगा किंतु जब संयुक्त क्रिया ' आ धमकना ' बनती है तो यह अचानक पहुँचने के लिए होती है। धमकना से ही धमकाना होना चाहिए किंतु धमकाना न तो धमकना का सकर्मक रूप है और न प्रेरणार्थक। वस्तुतः धमकाना बना है " धमकी " से। नामधातु धमकियाना > धमकाना अर्थात् डाँटना-फटकारना, डराना। धमकी में धमक देखने भर की है, भाव में कहाँ लुभावनी धमक और कहाँ डरावनी धमकी! अपनी इच्छा के अनुसार किसी को ...
कुल व्यू
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