सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खटकरम और धतकरम

खटकरम संस्कृत षट्कर्म से बना यौगिक शब्द है। संस्कृत में 'षट्' का अर्थ है छह, और 'कर्म' का अर्थ है क्रिया या तकनीक। योग साधना में षट्कर्म, शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए की जाने वाली छह तकनीकों का समूह है. षट्कर्म की ये छह तकनीकें हैं: नेति, धौति, नौली, बस्ती, कपालभाति, त्राटक।  स्मृतियों के अनुसार ब्राह्मण के लिए निर्धारित षट्कर्म हैं- यजन (यज्ञ करना), याजन (यज्ञ कराना), अध्ययन, अध्यापन, दान देना और दान लेना। योगिक क्रियाओं से जुड़े हों, चाहे अन्य कर्म हों ,ये जब आगे चलकर अनिवार्य नित्य कर्तव्य कर्म नहीं रहे, रूढ़ि और दिखावा बन गए, इनसे असुविधा होने लगी तो इन्हें खटकरम कहा जाने लगा और ऐसे दिखावा करने वालों को खट्कर्मी। शब्द की अर्थ यात्रा पर ध्यान दीजिए कि छह आवश्यक काम जब तक कर्तव्य कर्म थे, तब तक षट्कर्म कहे जाते थे और जब इन में दिखावा और आडंबर आगए तो उन्हें खट्कर्म कहा जाने लगा। षट्कर्मी अच्छा विशेषण था, खट्कर्मी अच्छा नहीं रहा। यह अर्थापकर्ष का अच्छा उदाहरण है। धतकरम   प्रिंट मीडिया से उभरकर प्रचलित हुआ नया शब्द है। इसके दो भाग हैं धत और करम (कर्म)। धत किसी को तिर...

सँभल संभल

संभल और सँभल भिन्न शब्द हैं और अनुस्वार (ं )। अनुनासिक (ँ ) समझने के लिए बड़े उपयुक्त उदाहरण हैं! संभल उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जिले का एक शहर है जो आजकल चर्चा में है। सँभल/ सँभाल संस्कृत संभरण (सँभलना) से है, जिसका अर्थ है गिरने फिसलने चोट आदि से बचना, सावधान रहना। ं और  ँ के प्रयोग को न समझने से अर्थ में भ्रम हो सकता है। लगभग समान ध्वनियों का एक अन्य शब्द है संबल अर्थात सहारा।  सरसरी दृष्टि में संभल का महाप्राण /भ/ अल्पप्राण /ब/ में बदल गया है। संबल संभार से है और इसका मूल अर्थ है पाथेय, यात्रा के लिए सामग्री।  मार्गव्यय। कुछ नए शब्द (neonyms) बनाए गए हैं- सम्बलन (enforcement ) सम्बलित (reinforced). इनका मूल बल (force) है। इसी संबल से कुमाउँनी में एक शब्द है 'सामल'। सामलै' पुन्थुरि , रास्ते के लिए सामग्री की पोटली। देशज शब्द 'सब्बल' (गदाला, Crowbar) भिन्न है। सब्बल लोहे एक उपकरण है जिसका उपयोग चट्टान तोड़ने, खुदाई, निर्माण और बागवानी से जुड़े कई कामों में किया जाता है. 

हिंदी-उर्दू : अद्वैत में द्वैत

हिंदी-उर्दू : अद्वैत में द्वैत 1. उर्दू का कोई भी वाक्य हिंदी की सहायक क्रिया है, था, गा-गे-गी के बिना पूरा नहीं हो सकता। ~ आता है/ आया था/ आएगा। ~कौन है? कौन था? कौन होगा? 2. मुख्य क्रियाएँ या तो हिंदी की हैं या अन्य शब्दों के साथ होना, करना लगाकर बना ली जाती हैं। ~तैयार हुआ। ~तैयार किया। ~धोता है। ~सफाई करता है। 3. उर्दू में अधिकतर क्रियाविशेषण हिंदी के हैं । कब, जब तक, ऐसे, वैसे, दौड़ कर, फिसलता हुआ। 4. बोलचाल की उर्दू या बोलचाल की हिंदी में विशेष अंतर नहीं है। बोलचाल- आइए, बैठिए। (औपचारिक: हिंदी -पधारिए, उर्दू - तशरीफ़ रखिए) 5. हिंदी-उर्दू में वाक्य रचना का सर्वाधिक प्रचलित ढाँचा एक समान कर्ता + क्रिया (S+V), कर्ता + कर्म + क्रिया (S+O+V) 6. भिन्न भाषाओं का एक प्रमुख निर्धारक लक्षण है कारक प्रत्ययों की भिन्नता। हिंदी-उर्दू के कारक प्रत्यय समान हैं - (ने, को, से, के लिए, का, के ,की, में, पर, ओ, अरे!) मैंने, आपको, दूर से, तुम्हारे लिए, घर का, सड़क पर, जेल में, अरे भाई! 7. निम्नलिखित हिंदी शब्दों में से एक या अधिक के बिना उर्दू में कोई भी वाक्य बन ही नहीं सकता। मैं...

शाकाहार, मांसाहार और वीगन

शाकाहार, मांसाहार और वीगन  आहार (आङ् + हृ + घञ्) भोजन, जेमन, खाना-पीना आहार के अंतर्गत आता है। यह संस्कृत शब्द है जो अनेक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त हो रहा है। आहार से बने अनेक शब्द भी व्यवहार में है जैसे फलाहार, शाकाहार, मांसाहार, दुग्धाहार, निराहार, अल्पाहार , स्वल्पाहार। इनसे विशेषण बनाए जा सकते हैं- फलाहारी, शाकाहारी, मांसाहारी, स्वल्पाहारी।  भोजन के घटक, प्रभाव, प्रवृत्ति, प्रकृति, पाकविधि आदि के आधार पर भारतीय परंपरा से आहार तीन प्रकार का माना गया है। श्रीमद् भगवद्गीता और चरक आदि के आयुर्वेदिक ग्रंथों में इनका उल्लेख है। सात्विक - पवित्रता से निर्मित, आयु और बलवर्धक, स्वादिष्ट होता है। यह आहार मानसिक शांति और सात्विकता को बढ़ावा देने वाला माना जाता है। इसमें फल, सब्जियाँ, अनाज, दूध, दही, मेवे, घानी के वानस्पतिक तेल, गाय का घी आदि शामिल होते हैं।   राजसिक- तला हुआ भोजन, मिठाई, तीखे स्वाद का, बहुत अधिक मसालों और नमक वाला, मांस-मदिरा आदि राजसी भोजन के अंतर्गत आते हैं। यह भारी होता है, देर से पचता है और आलसी बनाता है।  तामसिक- सड़ी-गली वस्तुओं का बना, बासी, ...

घर-बार, बार और बार

♦️ घर-बार का 'बार' संस्कृत द्वार अथवा वारक (रोकने वाला, रुकावट) से है, अर्थ है दरवाज़ा।  बरोठा, बारजा इसी से हैं। विवाह में 'बार रोकाई' नाम से एक लोकाचार प्रचलित है जिसमें नव विवाहित वर-वधू को दरवाज़े के पास रोककर कुछ कर्मकांड किया जाता है। बहन अपने भाई-भाभी को विवाह के बाद घर में प्रवेश करने से पहले दरवाज़े पर रोक कर नेग माँगती है। उन मित्रों के लिए यह बात और भी महत्त्वपूर्ण है जो शाम होते-होते घर को अंग्रेजी वाला 'बार' समझ लेते हैं, और ईश्वर न करें, कुछ ऐसा-वैसा या ऊँच-नीच हो जाए तो बात विधि विशेषज्ञों के बार तक पहुँच जाती है। हमारा काम था आपको बताना, अब हम बार-बार तो समझाने से रहे!  ♦️

भड़कना (بَھڑَکْنَا)

भड़कना (بَھڑَکْنَا) ••••••••• "जितना अच्छा आप हिंदी/उर्दू में भड़कते हैं उतना अंग्रेजी में 'एंग्री' हो ही नहीं सकते!" (डॉ आरिफ़ा सैयदा ज़हरा) 'भड़कना' क्रिया सौरसेनी प्राकृत *भड़क्कदि (अचानक हिलना, शोर करना) से व्युत्पन्न है। समय के साथ-साथ अर्थ विस्तार से अब हिंदी में भड़कना का अर्थ है तेज़ी से जलना, गर्म होना; तमतमाना, आवेश में आना; उत्तेजित होना।  आग ही नहीं, इंसान भी भड़कते हैं, पड़ोसी भी और देश भी। दिखावे के लिए ही सही, नेता भी भड़कते हैं। ये बात और है कि जनता को भड़कने का अधिकार नहीं है। भड़क भी गई तो क्या कर लेगी। खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर, कटना खरबूजे को ही होता है। कुमाउँनी में भड़कना का प्राकृत वाला मूल अर्थ भी जीवित है; भड़कण अर्थात अकारण हिलना-डुलना। 

भिडू और फट्टू

अथातो मुंबइया हिंदी ...१ भ‍िडू और फट्टू •••••• 'भ‍िडू' और 'फट्टू' मुंबइया हिंदी में बोलचाल के (स्लैंग) शब्‍द हैं। इन्हें मराठी शब्द माना जाता है, किंतु इनका मूल हिंदी में है। हिंदी में क्रिया के साथ /-ऊ/ प्रत्यय जोड़कर अनेक विशेषण बनते हैं जैसे खाना से खाऊ, घोंटना से घोटू। इसी प्रकार भिड़ना + ऊ से बना विशेषण है भिड़ू, दोस्त के लिए भिड़ जाने वाला। जोड़ीदार, पार्टनर, साथी, बहुत करीबी दोस्त। कुछ-कुछ अंग्रेजी में Buddy, dude जैसा। इसी प्रकार फटना क्रिया का अशिष्ट लाक्षणिक अर्थ लेकर बनाया गया विशेषण है फट्टू (फटना+ऊ) अर्थात कायर, डरपोक।

नैन, ऐन और आईन

उपनयन का कोशीय अर्थ है- पास ले जाना, यज्ञोपवीत संस्कार, जनेऊ । हमें लगता है इसकी कोशीय परिभाषा में बदलाव किया जाना चाहिए। मनु ने वर्णानुसार उपनयन संस्कार की आयु, विधि तय की थी। आज के ज़माने में उपनयन का स्वरूप और विधि-विधान सब बदल गया। नये उपनयन संस्कार के लिए कोई पंडित-पुरोहित नहीं, नेत्रचिकित्सक आवश्यक है। और यह भी आवश्यक नहीं की वह मनुवादी ही हो। किसी भी वर्ग से हो सकता है, बस आँखों वाला चार्ट पहचानता हो और पढ़ा लेता हो। जब 50+ होते-होते अँखियाँ हरिदर्शन से अधिक जगदर्शन को तरसने लगती हैं तो एक अदद उपनयन आवश्यक हो जाता है। हमारे मित्र राहुल देव जी अच्छे विचारक हैं और भाषा पर उनको अधिकार है‌। वे कहने लगे कि इसे उपनयन के स्थान पर 'अतिनयन' क्यों न कहें। हमें क्या आपत्ति हो सकती थी लेकिन फिर सोचा अति उपसर्ग प्रकर्ष, उल्लंघन, अतिशय आदि के अर्थ में आता है। अतिनयन का अर्थ तो नयनों की सीमा से भी आगे देखने वाली चीज़ हो जाएगी। इसके विपरीत 'उप-' ‌उपसर्ग प्रायः सहायक या किसी के बदले में होने का अर्थ देता है और 'अति-' आधिक्य, बाहुल्य, प्रचुरता का।  कहते हैं सावरकर जी ने इस...

गोबर

गोबर (cowdung) की एक नई व्युत्पत्ति देखी- "गो-वरदान"। यह आकर्षक तो है पर काल्पनिक लगती है। गोबर के लिए संस्कृत में प्रचलित है: गोमय [गोः पुरीषं गूथं वा ('गू' इति लोके) ]। इसके अनेक पर्यायों में हैं गोमल, गोविष्ठा आदि। भावप्रकाश में गोठ के भीतर गायों के खुरों से कुचले, धूल-से सूखे गोमय को गोवर/गोर्वर कहा है। यह गोर्वर ही प्राकृत में गोव्वर, 𑀕𑁄𑀯𑁆𑀯𑀭 (govvara), गोवर 𑀕𑁄𑀯𑀭 (govara) है, और संस्कृत में गोर्वर, हिंदी में गोबर जो गोवंश के सभी पशुओं गाय, बैल, बछड़ा आदि के मल के लिए और अर्थविस्तार से भैंस के मल के लिए भी है। गोबर का सबसे लाभप्रद उपयोग खाद के रूप में सदियों से होता रहा है, किंतु भारत में जलाने की लकड़ियों का अभाव होने से इसका अधिक उपयोग ईंधन के रूप में होता है। ईंधन के लिये इसके गोहरे या कंडे बनाकर सुखा लिए जाते हैं। सूखे गोहरे अच्छे जलते हैं और उनपर बना भोजन, मधुर आँच पर पकने के कारण, स्वादिष्ट होता है। गोबर से बायोगैस, अगरबत्ती, दीपक, कागज़, गमला जैसे कई तरह के उत्पाद बनाए जा सकते हैं। प्राचीन काल से ही गोबर का उपयोग आंगन आदि को लीपने तथा कुछ धार्मि...

नयी, नई

नयी, नई संस्कृत √नु से निर्मित नव, नवल, नवीन तत्सम शब्द हैं। नव से हिंदी में दो विशेषण मिलते हैं- नवा और नया। नवा का प्रयोग लोक में था किंतु अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। इस प्रकार नया मूल शब्द है और इससे लिंग, वचन द्योतक निम्नलिखित प्रत्यय सहज ही जुड़ सकते हैं - प्रत्यय '-आ' - पुल्लिंग, एकवचन; '-ई' - स्त्रीलिंग, एकवचन; '-ए' पुल्लिंग बहुवचन। नव > नवा/नया > नयी, नये। यहाँ यह/व श्रुति नहीं, शब्द की वर्तनी के घटक हैं। इसलिए नयी, नये को व्याकरण सम्मत माना जाना चाहिए। केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा हाल ही में जारी की गई  "देवनागरी लिपि एवं हिंदी वर्तनी का मानकीकरण" में इन्हीं रूपों की संस्तुति की गई है। किंतु (यह "किंतु" विशेष है!), खड़ी बोली हिंदी में स्वरांतता (शब्द के अंत में स्वर को वरीयता देने) की प्रवृत्ति रही है, यह पंडित किशोरीदास वाजपेयी सहित आज के कुछ भाषा शास्त्री भी मानते हैं। यही कारण है कि लोक में भी नया, नई, नए का प्रयोग अधिक चल रहा है। नयी, नये उच्चारण करते हुए भी नई, नए ही सुनाई पडते हैं। इसलिए नई, ने को त्याज्य नहीं कह स...

बहुत-बहुतों

कई-कईयों, बहुत-बहुतों, सब-सबों, अनेक-अनेकों अर्थ के स्तर पर एक से हैं। 'अनेक' शिष्ट प्रयोग में अधिक मिलता है, आम जन इसके स्थान पर 'कई' का चुनाव करते हैं। व्याकरण की दृष्टि से इन्हें कुछ लोग विकृत/अशुद्ध रूमानते हैं क्योंकि ये स्वयं में बहुवाची शब्द हैं तो बहुवचन का अतिरिक्त प्रत्यय '-ओं' क्यों? यह भी तर्क है कि '-ओं' प्रत्यय न केवल बहुवचन का संकेत करता है, वरन उस कथन पर कुछ बल भी देता है। जैसे: दस बुलाए, दसों आए। इसी आधार पर कहा जाता है कि जब दस का दसों, सौ का सैकड़ों, लाख का लाखों आदि हो सकते हैं तो अनेक का अनेकों क्यों नहीं हो सकता! "अनेक" शब्द प्रयोग की दृष्टि से परिमाणवाचक विशेषण के समकक्ष है। संज्ञा के साथ अन्वित होकर तिर्यक रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है, जैसे:  मैंने अनेकों मतदाताओं से बात की। और बिना तिर्यक रूप के भी, जैसे:  अनेक डॉक्टरों से परामर्श किया। कुछ लोग "कई लोगों का कहना है" कहने के बदले "कइयों का कहना है" कहते हैं। यही बात बहुतों के साथ भी है। हाँ, "सबों" का प्रयोग कम देखा गया है। बहुतों, कइ...

जोरू-जाँता

जोरू-जाँता  ••• जोरू का अर्थ है-- स्त्री, पत्नी, भार्या, घरवाली, औरत, बीवी।  जोरू शब्द की उत्पत्ति हिंदी के "जोड़ा" से कही जाती है और जोड़ा बना है संस्कृत के योटक से। (√यौट् बाँधना, जोड़ना to bind, to tie, to fasten together.)। ज्योतिष में ग्रह, राशि और नक्षत्रों के अनेक योटक (मेल) बनते हैं; जैसे षडकाष्टक (कुमाउँनी में खड़काश्टक्) एक योटक है। योटक से जोटा, जोटा से जोड़ा और जोरू के आने पर ही जोड़ा पूरा होता है। कुछ लोग जोरू शब्द को देशज भी मानते हैं। कहते हैं जिसके ज़ोर के आगे किसी का ज़ोर न चले, वह जोरू। जोरू-जाँता में जाँता (यन्त्र > जाँत > जाँता) का अर्थ है चक्की। पहले ग्रामीण जीवन में प्रत्येक घर में चक्की अवश्य होती थी जो गृहस्थी का अनिवार्य अंग थी। जोरू है तो जाँता भी चलता रहेगा, गृहस्थी भी। इसलिए जोरू-जाँता का अर्थ हुआ गृहस्थी, घर-परिवार, घर-बार । कहीं इसे जोरू-जाता भी कहा जाता है। जाता = जात अर्थात् पैदा हुआ। जोरू-जाता अर्थात् पति-पत्नी और उनकी संतानें, कुटुंब। जोरू का ग़ुलाम मुहावरे का अर्थ है पत्नी का भक्त या उसके वश में रहने वाला। समाज के कुछ वर्गों में आम बोल...

फँसना, फाँसना और कटहल

फँसना ( क्रि.अक ) से फाँसना ( क्रि.सक ) नहीं, फाँसना से फँसना बनी है। क्योंकि मूल शब्द है फाँस [सं. पाश, प्रा. फाँस], अर्थ है बंधन, फंदा। नाग पाश या वरुण पाश को कहानियों में नाग फाँस, वरुण फाँस ही कहा जाता है। इसी फाँस से बना है फाँसी, जान से मारने के लिए बनाया गया फंदा। (फोटो मेरे कैमरे से, सेलुलर जेल, अंडमान)   फँसना रस्सी के फंदे में फँसना ही नहीं है, किसी की चाल में आ जाना, धोखा खा जाना भी इसका लाक्षणिक अर्थ है। हम ट्रैफिक में फँसते हैं, बातों में फस जाते हैं और आजकल तो कदम-कदम पर अपराधियों की चालबाज़ियों में फँसने का खतरा भी रहता है। दूसरी चुभने वाली फाँस (काँटा, नुकीली चीज) संस्कृत पनस से है। पनस कटहल को भी कहा जाता है। कटहल बना है कंटकफल से! कंटकफल> काँटाहल > काँटाल> कटहल।

धेले भर की बात ...!

'ईदगाह' कहानी सन 1933 में प्रकाशित हुई थी, आज से लगभग 100 साल पहले। तब की भाषा आज बहुत बदल गई और अनेक शब्द समझना कठिन हो गया है। प्रेमचंद की भाषा की मुख्य पहचान है कि वे बहुत से ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं जो तब गाँव देहात के या आम बोलचाल के रहे होंगे। अरबी-फ़ारसी मूल के उर्दू शैली के शब्द और कुछ ऐसे भी जो आज चलन से बिल्कुल बाहर हैं।  कथा नायक हामिद तीन पैसे में दादी के लिए दस्त-पनाह (चिमटा) खरीदने के बाद उसके समर्थन में ऐसे-ऐसे तर्क देता है कि उसके साथी निरुत्तर हो जाते हैं। जब वह कहता है, "वकील साहब कुर्सी पर बैठेंगे तो जाकर उन्हें ज़मीन पर पटक देगा और सारा क़ानून उनके पेट में डाल देगा”, तो कहानी लेखक टिप्पणी करता है: "बिल्कुल बेतुकी-सी बात थी लेकिन कानून को पेट में डालने वाली बात ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए, मानो कोई धेलचा कनकौआ किसी गंडेवाले कनकौए को काट गया हो। कानून मुँह से बाहर निकलने वाली चीज़ है। उसको पेट के अंदर डाल दिया जाना बेतुकी-सी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है। हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रूस्तमे-हिन्द है।" पतंग ...

"शुद्ध गाय का घी" के बहाने

विज्ञापन है: "पतंजलि शुद्ध गाय का घी"। विज्ञापन कहना क्या चाहता है, यह तो थोड़ा-बहुत समझ में आ रहा है, लेकिन क्या ये शब्द जो कह रहे हैं वह ठीक वही है जो कहना चाहा है। भ्रम निवारण कैसे हो? वाक्य की बहिस्तलीय संरचना के अनुसार पहली दृष्टि में *शुद्ध गाय* में अन्विति दोष प्रतीत होता है अर्थात विशेषण-विशेष्य बेमेल हैं। शुद्ध तो घी होना चाहिए, शुद्ध गाय कैसे! गाय का (कैसा) घी? शुद्ध। आइए, अब अंतस्तलीय रचना देखें। समग्र कथ्य में पण्य वस्तु 'गाय का घी' (एक संज्ञा पदबंध) है, जिसकी शुद्धता की अपेक्षा ग्राहक को होगी और विज्ञापन के माध्यम से विक्रेता उसी का आश्वासन दे रहा है। दूसरे शब्दों में लक्षित ग्राहक समूह से  उत्पाद का सही और सफल संवाद हो रहा है। (कैसा) गाय का घी? शुद्ध। यहाँ //शुद्ध// समूचे संज्ञा पदबंध का विशेषण है। इसलिए भी: //शुद्ध// : //गाय का घी//। तीसरा पक्ष। शुद्ध को अपने स्थान से हटाने पर रचना होगी- "पतंजलि गाय का शुद्ध घी"। किंतु गाय पतंजलि नहीं है और पतंजलि की भी नहीं। इसलिए //शुद्ध// : //गाय का घी// यदि केवल इतना ही कहा गया होता-  "शुद्ध...

भिनसार से बिनसर

निसा सिरानि भयउ भिनुसारा।  लगे भालु कपि चारिहुँ द्वारा ॥ 'भा' का अर्थ है प्रकाश, चमक। वि+भा विभा, अर्थात विशेष चमक। सुबह-सुबह सूर्य उदय से पूर्व रात्रि समाप्त होने की सूचक प्रकाश की पहली रेखा जब पूर्वी क्षितिज पर दिखाई पड़ती है तो उसे कहा गया है विभान > विहान। विभान से बिहान, बियान (रात्तिबियाण कुमाउँनी में)। दूसरे शब्दों में क्षितिज से प्रातः कालीन विभा का निस्सरण, निस्सार (निकलना) कहा जाएगा विभानिस्सार। विभा (प्रकाश) निस्सार (निकलना) > भिनसार, भिनुसार ।  विभिन्न अंचलों में तड़के-तड़के, मुँह-अँधेरे, बहुत सवेरे, अलसुबह, भिनसारे, भिंसुरें, फजीरे (अरबी फ़ज़्र/फ़ज़र से फजीरे), भोरे, भोरहरे आदि इसी भोर बेला के लोक प्रचलित नाम हैं। प्रातःकाल, ब्राह्म मुहूर्त जैसे संस्कृत शब्द लोक में प्रयुक्त नहीं होते। अल्मोड़ा के निकट एक बहुत सुंदर पर्यटन स्थल है- 'बिनसर' जो आसपास की पर्वत श्रेणियों से अधिक ऊँचाई पर स्थित है। इसलिए बिनसर पहाड़ी पर उगते सूर्य की विभा सबसे पहले दिखाई पड़ती है। इसलिए कह सकते हैं कि 'भिनसार' से बना बिनसर।  पौड़ी में भी अल-सुबह के लिए ...

नमक चर्चा

नमक नमक में भी भेद है! (फोटो सौजन्य Wikimedia.org ) कितनी अजीब बात है न कि नमक शब्द फ़ारसी से आया, व्रत-उपवास में पवित्र (चोखा) माना जाने वाला सुलेमानी/लाहौरी नमक पाकिस्तान से और बढ़ते रक्तचाप में परहेज़ वाला 'खतरनाक' सादा समुद्री नमक गुजरात से। समुद्री नमक को ही पकाकर काला नमक बनता है, जिसे 'पद-नोन' भी कहा जाता है। हमारे एक मित्र इसे ढूँ-ढाँ नमक भी कहा करते थे, कारण आप समझ सकते हैं।अपान वायु मोचक होने के कारण काले नमक को ही पादे लोण या पदनोन कहा जाता है। काला नमक किसी प्राकृतिक स्रोत से नहीं मिलता बल्कि समुद्री नमक में हरड़, जीरा, अजवायन आदि अनेक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ मिलाकर घड़ों में भरकर भट्टी में खूब पकाया जाता है। ठंडा होने पर घड़ा तोड़कर निकाल लेते हैं। हिंदी की उपभाषाओं/बोलियों में नमक के लिए प्रचलित सभी शब्द संस्कृत 'लवण' से व्युत्पन्न हैं: लोन, नोन, नून, लून, नूण, लूण आदि। #नमक #लाहौरीनमक #गुजराती #salt #Salary #trendingnow

नया परिवर्णी शब्द: केंचुआ

एक्रोनिम (Acronym):  केंचुआ      ••••• एक्रोनिम (Acronym) के लिए हिंदी शब्द है "परिवर्णी" शब्द।  किसी बड़े नाम या शब्द समूहों के आद्यक्षरों से बना रूप, जैसे इंडियन पीपल्स थियेटर असोशियेशन के लिए 'इप्टा' (IPTA), भारतीय जनता पार्टी को 'भाजपा'।  इसी प्रकार केंद्रीय चुनाव आयोग के लिए ''केंचुआ''! अब यह संयोग है कि इतने बड़े देश में चुनाव कराने की भारी ज़िम्मेदारी पीठ पर होने के कारण उसकी गति केंचुए सी ही दिखाई पड़ती है।  केंचुआ के अतिरिक्त जहाँ तक मेरी जानकारी है, हमारे देश में केवल एक संस्थान का हिन्दी में नाम एक परिवर्णी शब्द 'एक्रोनिम' है: मिश्र धातु निगम के लिए "मिधानी।" इन्हें "आदिवर्णिक" शब्द भी कहा जा सकता है। संस्कृत में भी इस प्रकार के प्रयोग मिलते हैं। कुमाऊँ के प्रसिद्ध कवि #गुमानी ने टिहिरी (टिहरी) को तीन पदों का 'अंत्यवर्णिक' माना था। स्रोत: फेसबुक में पूर्वप्रकाशित  (18 अप्रैल, 2024) https://www.facebook.com/share/p/JXmgvMMQHX2mn7eb/?mibextid=oFDknk (प्रतीकात्मक फोटो साभार: Wikimedia)

धूमपान या धूम्रपान

धूमपान या धूम्रपान? सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक देवेंद्रनाथ शर्मा जी ने अपने एक ललित निबंध में कहा है कि स्मोकिंग के लिए धूमपान शब्द है, धूम्रपान नहीं। विचार करें। धूम (धुआँ) संज्ञा है, धूम्र (धुँए-सा रंग, grey) विशेषण। धुँए का पान किया जाता है, धूमल रंग का नहीं। महर्षि चरक, सुश्रुत आदि आयुर्वेद विशेषज्ञों ने अनेक प्रकार की जड़ी बूटियों के धूमपान का उल्लेख किया है- "शोफद्रावरुजायुक्तान् धूमपानैर्विशोधयेत्” (सुश्रुत) इसलिए देवेंद्रनाथ शर्मा जी का कथन कि धूमपान शुद्ध है, तर्कसंगत है; किंतु आज स्मोकिंग के लिए "धूम्रपान" ही रूढ़ हो गया है। अर्थ यात्रा में शब्द रथ बहुत आगे निकल आया है, उसे पीछे मोड़ना संभव नहीं, स्वीकारना होगा। हिंदी ने अपने अनेक नए शब्द बनाए हैं, उनमें एक धूम्रपान भी है। हिंदी में ही नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी धूम्रपान बहुप्रचलित है।

उदन्त मार्त्तण्ड: व्युत्पत्ति और अर्थ

उदन्त मार्तण्ड [#हिंदी_पत्रकारिता_दिवस के अवसर पर #उदन्त_मार्त्तण्ड नाम की व्युत्पत्ति और अर्थ के बारे में इस चर्चा को देख सकते हैं। पढ़कर अपने विचार साझा कीजिए।] 30 मई आती है तो हिंदी पत्रकार जगत में हिंदी में प्रकाशित पहले समाचार पत्र "उदन्त मार्त्तण्ड" (उदंत मार्तंड) को श्रद्धा से याद किया जाता है। साथ ही साथ उदंत का अर्थ प्रतिवर्ष भ्रामक व्युत्पत्ति से बताया जाता है - "उगता हुआ सूरज" (rising Sun)। मार्तण्ड की व्युत्पत्ति है मृत अण्ड से उत्पन्न; सूर्य का नाम है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसका उल्लेख यहाँ अप्रासंगिक होगा। समस्या उदंत को लेकर है। उदंत को बाहरी स्वरूपात्मक साम्य के आधार पर सूर्य के उदय (उत् + √इ + अच्) से जोड़ दिया जाता है। उदंत उस मवेशी को भी कहा जाता है जिसके अभी दाँत न जमे हों, अर्थात जो अदंत (दंतहीन) है। अब सोचने की बात है कि कोई अपने क्रांतिकारी समाचार पत्र का नाम पहले ही से दंतहीन रख देगा तो समाचारों की जो विशेषता बताई जाती है, वह धरी न रह जाएगी!? संस्कृत में उदय के साथ यदि शतृ प्रत्यय जुड़ सकता तो भी उदयन् होता और उदयन् का...

नाक पर उँगली

नाक नाम की गजब चीज़ दी है भगवान ने। कुछ ऐसा-वैसा हो जाए तो नाक कट जाती है। अच्छा काम कोई कर दे तो हम कहते हैं हमारी नाक रख दी। यद्यपि रखी-वखी कहीं नहीं जाती, जहाँ भगवान ने रखी है वहीं रहती है लेकिन मुहावरा तो है नाक रख ली। कुछ ऐसे बेशर्मों की भी नाक कटती है जिनके बारे में कहते हैं, नाक कटी तो गज भर और बढ़ी। कुछ लोग बड़ी नाक वाले होते हैं। यों उनकी नाक देखने में बड़ी नहीं होती; चपटी, बेडौल या बदसूरत भी हो सकती है लेकिन बस, नाक के नखरे ऐसे कि कहना पड़ता है, साहब! बड़ी नाक वाले यूं ही थोड़े मानेंगे। चुनाव के मौसम में बड़े-बड़े बड़ी नाक वाले नेता मतदाता के पैरों पर नाक रगड़ते देखे जाते हैं।‌ कुछ लोग उनकी नाक का बाल बने खटकते हैं और कुछ उनकी नाक पकड़ने-रगड़ने को तैयार बैठे होते हैं। मुसीबत वहाँ हो जाती है जहाँ कोई मुद्दा नाक का बाल हो जाता है। नाक के बाल की चुभन से बचने के लिए या तो उसे उखाड़ डालिए या विरोधी की नाक में नकेल डालने का मौका तलाशिए। बहरहाल हमने लोकतंत्र की नाक रखने की कोशिश की है, इस उम्मीद के साथ कि यही संविधान रहा तो आगे भी चुनाव होते रहेंगे। आमीन।

मत, वोट और केंचुआ

चुनाव आएँ तो 'वोट' आम व्यवहार का शब्द हो जाता है। vote अंग्रेजी में लैटिन मूल के शब्द votum से है। (votum-  a vow, wish, promise to a god, solemn pledge, dedication)। वोट के लिए हिंदी में नव निर्मित पारिभाषिक शब्द 'मत' है, किंतु अनौपचारिक संदर्भों में प्रयोग 'मत' का कम, वोट का अधिक होता है। यह बात और है कि लोक में इसके कई उच्चारण देखे-सुने जाते हैं- वोट, बोट, भोट, व्होट, ओट।  मत (संस्कृत √मन्+क्त) का अर्थ है मन से माना हुआ, विचार, सिद्धांत, राय (thought, idea, opinion)!औपचारिक प्रयोग में मत से बने अनेक मिश्रित शब्दों का प्रयोग होता है- मतदान, मतदाता, मताधिकार, बहुमत , मतपत्र, मतपेटी, मतगणना; एकमत, मतभेद। मतदान से संबद्ध पाँच शब्दों से बने एक अंग्रेजी शब्दगुच्छ 'वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल' (voter verified paper audit trail) के लिए एक परिवर्णी शब्द बना है- 'वीवीपैट'। लोक में इसका सरलीकृत नाम "पर्ची" सुना है, इसका 'हिंदी अनुवाद' (?) किसी को ज्ञात हो तो बताइएगा। इस परिवार का एक अन्य परिवर्णी शब्द उसे संवैधानिक संस्था ...

ईद मुबारक

अरबी का शब्द है عِید  ईद।  अरबी में ईद का शाब्दिक अर्थ है हर्ष, उल्लास, प्रसन्नता; ख़ुशी का दिन। आप में से कुछ लोगों को शायद पता न हो कि बिहार के कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर मगध क्षेत्र में, लोक में ईद 🕌🌙  के लिए 'पर्वी' शब्द का प्रयोग होता रहा है। ईद या किसी अन्य पर्व पर मिलने वाली बख़्शीश को भी पर्वी कहा जाता है। विभाजन के कारण भारत से पाकिस्तान गए बिहारी मुसलमानों की पिछली पीढ़ी में भी यह शब्द प्रयुक्त होता था, जो अब वहाँ विलुप्त हो चुका है।   'पर्वी' संस्कृत 'पर्वन्' (=उत्सव, त्योहार) से व्युत्पन्न हिंदी/उर्दू शब्द है। ईद के लिए पर्वी, परवी का प्रयोग अपने आप में प्रमाण है कि उत्सव प्रिय भारतीय लोक मानस आनंद और उल्लास वाले पर्वों त्योहारों में हिंदू-मुस्लिम का भेद नहीं करता था! विशेष अंचल में अरबी ईद के स्थान पर संस्कृत पर्वी शब्द का प्रयोग यही संकेत करता है।  ईद का पर्व मुबारक हो सभी दोस्तों को।  आमीन 

खसम तुम्हारे बड़े निखट्टू ....

  निखट्टू .... लोक में प्रचलित जनपदीय शब्दों की व्यंजना अद्भुत होती है। दैनंदिन विविध लोक व्यवहार में आने वाले ऐसे हजारों शब्द हैं। इससे पहले कि ये शब्द विलुप्त हो जाएँ, इनका संग्रह और अध्ययन किया जाना चाहिए। विद्यानिवास मिश्र (हिंदी की शब्द संपदा) तथा कुछ अन्य विद्वानों ने जनपदीय शब्दों पर कुछ महत्वपूर्ण कार्य किए हैं किंतु अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।  होली के इस मौसम में एक जनपदीय शब्द याद आया, 'निखट्टू'।  ब्रज की एक प्रसिद्ध होली है, "रंग में होली कैसे खेलूँ री मेैं साँवरिया के संग।" भले ही होली मूलतः ब्रज क्षेत्र की हो किंतु इसकी व्याप्ति और लोकप्रियता संपूर्ण उत्तरी भारत में है। सच तो यह है कि भारत या बाहर, जहाँ भी होली मनाई जाती है वहाँ इस होली को अवश्य गाया जाता है। स्त्री-पुरुष हुड़दंग मचाते हैं और मस्ती में झूमते-गाते हैं - " रंग में होली कैसे खेलूँ री मैं साँवरिया के संग! कोरे-कोरे कलश भराये, जा में घोरौ रंग भर पिचकारी सन्मुख मारी, चोली है गई तंग। ढोलक बाजै, मजीरा बाजै और बाजै मिरदंग, कान्हाँ जी की वंशी बाजै, राधा जी के संग। लहँगा तेरौ घूम घुमारौ, च...

देहरी के बहाने

उत्तराखंड में वसंत के लोकपर्व फूल देई (फूल संक्रांति) का 'देई'/देली (=दहलीज , threshold ) शब्द संस्कृत के 'देहली' से व्युत्पन्न है: देहली> देली> देई। दरवाज़े के चौखट की निचली आधार लकड़ी को देहली कहा जाता है। देहली से कहीं देहरी और कहीं देई बनने (ल के र् या स्वर/अर्धस्वर में बदलने) के पीछे भाषावैज्ञानिक कारण हैं। हिंदी में यह देहरी बन गया है। दहलीज और ड्योढ़ी भी इसी से व्युत्पन्न हैं। "देहरी तो परबत भई, अँगना भयो बिदेस।" उत्तराखंड में "फूलदेई" बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का लोकपर्व है। एक लोककथा के अनुसार प्योंली नाम की सुंदर कन्या को एक राजकुमार पहाड़ से अपने महल में ले जाता है। महल की सारी सुविधाओं के बीच जीते हुए भी प्योंली पहाड़ को नहीं भूल पाती, दिन प्रतिदिन दुबलाती जाती है। अपने पहाड़ की याद में वह अधिक दिन नहीं जी पाती। मर जाने पर राजकुमार वापिस उसी पर्वत पर उसका अंतिम संस्कार करता है। प्योंली उसी राख से फूल बनकर जनमती है और वसंत का शृंगार बनती है। पहाड़ों पर जाड़ों के उतरते-उतरते पीली प्योंली का फूलना वसंत के आगमन का उद्घोष माना जाता है।...

बाल की खाल

हिंदी में बाल के अनेक अर्थ हैं- केश, बच्चा, नादान, तरेड़, अनाज के पौधे का अन्न वाला भाग, भुट्टे के सिरे पर निकलने वाले रेशे। बाल (सं. वाल/बाल) पर कुछ मुहावरे बाल-बाल बचना बाल की खाल निकालना बाल तक बाँका न होना धूप में बाल सफ़ेद करना बाल पकना बाल खिचड़ी होना बाल नोचना बाल काढ़ना बाल चढ़ाना बाल बनाना बाल बराबर न समझना शीशे में बाल पड़ना  नाक का बाल होना बाल खड़े होना आँख में सुवर का बाल होना बाल बराबर जगह होना

उल्लू का पट्ठा

🦉का पट्ठा  ••• पुष्ट से व्युत्पन्न पट्ठा/पाठा/पठिया पशुओं के छोटे, हृष्ट-पुष्ट बच्चे को कहा जाता है। उल्लू का लाक्षणिक अर्थ मूर्ख भी है, इसलिए 'उल्लू का पट्ठा'= मूर्ख की संतान (महामूर्ख)। 'साठे पर पाठा' कहावत में यही पाठा (हृष्ट-पुष्ट, नौजवान) है। अखाड़े वाले पहलवान के चेले को भी हृष्ट-पुष्ट और कसरती जवान होने के कारण पाठा कहते हैं। #भाषाशास्त्र #व्युत्पत्तिविज्ञान #शब्दविवेक #पट्ठा  #उल्लूकापट्ठा  #Etymology

बालम

बालम आन बसो मोरे मन में! 💗 बताने की ज़रूरत नहीं है कि यह बालम कौन होता है। आप हैं तो भी जानते हैं, नहीं हैं तो भी। उनके हैं तो वे जानती हैं कि आप उनके बालम हैं, किसी के नहीं हैं तो वे चाहती हैं कि कोई तो हो जिसे दिखाते हुए गर्व से कह सकें- हाँ, यह रहे हमारे बलमा, यानी कि बालम। शास्त्रीय संगीत, फिल्मी गाने, लोकगीत, लोक कथाएँ, प्यार-मोहब्बत, ताने-बोल, कृपा-कटाक्ष, आम बोलचाल - सब में तो यह निगोड़ा बालम भरा पड़ा है।  आज इस बालम ने हमको सता रखा है। असल में जब भाषा की भाँग चढ़ती है, कोई कीट काटता है और व्युत्पत्ति के काँटे चुभते हैं तो मन में एक हूक उठती है, 'हाय बालम, तुम आए कहाँ से? तुम बने किस मिट्टी के हो?' जैसे श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं सब धर्मो को त्याग कर मेरी शरण में आ जाओ, उसी प्रकार संस्कृत भाषा भी सभी भारतीय भाषाओं को कहती है कहीं रास्ता न मिले तो इस ओर आ जाओ, कुछ न कुछ व्यवस्था हो जाएगी, जैसे इस बलमा की हो गई। संस्कृत में एक शब्द है वल्लभ। इसकी वर्तनी देखिए। इसे बल्लम पढ़ा-लिखा जा सकता है और बल्लम से बालम न केवल देखने में, बल्कि अर्थ में भी बहुत...