किसी कवि ने रोटी को चंद्रमा माना था, ऐसा चंद्रमा जो बादलों के पार रहता है और यहाँ भूखे उसका इन्तज़ार कर रहे होते हैं पर वह उनके हाथ लगता नहीं है। यूं रोटियों की गिनती किसी न किसी संख्या में ही होती है किंतु कभी-कभी लाक्षणिकता में कह दिया जाता है- "एक-आध रोटी मिल जाती है"। एक-आध रोटी मिलना मुहावरा है जिसका तात्पर्य एक रोटी, आधी रोटी या एक और आधी अर्थात् डेढ़ रोटी से नहीं होता, 'कुछ' रोटियों से होता है। रोटी से जुड़े दो संख्यावाचक विशेषण बड़े लोकप्रिय हैं और जितने लोकप्रिय हैं उतने ही उलझाने वाले भी। वे हैं- "पाव" (1/4) और "डबल" (1+1)। रोटी, बड़ी छोटी जैसी भी हो, सिंकेगी तो पूरी ही। वह पाव या डबल कैसे हो सकती है! यह तो हम जानते हैं कि पाव रोटी या डबल रोटी तवे या तंदूर में सिँकी भारतीय रोटियाँ नहीं हैं। ये रोटियाँ ख़मीर से फुलाए गए आटे से बनती हैं और 'लोफ़' या 'ब्रेड' नाम के साथ यूरोप से यहाँ पहुँची हैं। हाँ, इनके साथ पाव या डबल विशेषण जोड़कर इन्हें संकर शब्द बनाने का श्रेय भारत को ही जाएगा। अब पहले पावरोटी। ईसाई धर्म में...
कुल व्यू
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