मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल की पंक्ति है
"या इलाही ये माजरा क्या है।"
मेरे एक मित्र माजरा डबास के हैं। हमेशा सूत्रों में बात करते हैं। पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका माजरा वह माजरा नहीं है जो ग़ालिब साहब की समझ में नहीं आया। हम हैरान थे कि जब ग़ालिब साहब नहीं समझे तो हम क्या समझें। तभी ग़ालिब साहब की फुसफुसाहट सुनाई दी:
"मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है"
ग़ालिब साहब, मुद्दआ तो माजरा है और आप पहले ही इलाही का वास्ता देकर फ़रमा चुके हैं कि माजरा क्या है?
बहरहाल खोज जारी रही तो पाया कि माजरा नाम के अनेक गाँव हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब में विशेष रूप से मिलेंगे। कुछ उदाहरण हैं: लाखण माजरा, लावा माजरा, माजरा डबास, राणामाजरा, बामण माजरा, भोडवाल माजरा, खलीला माजरा, नैन माजरी, नूना माजरा, भैणी माजरा, मोहम्मदपुर माजरा, माजरा महताब, समसपुर माजरा, अड्डू माजरा इत्यादि।
माजरा शब्द भी ग्राम वाचक है और मूलतः अरबी "मज़रा" से है। नुक़्ता हट जाने पर रह गया ज ।
अरबी में मज़रा का अर्थ है : खेती की जगह, खेत, खेती, वह भूमि जो खेती के योग्य हो, छोटा गाँव, ग्रामीण बस्ती।
मियाँ ग़ालिब चाहे न समझे हों, हम समझ गए कि माजरा क्या है!
शैख़ ज़हूरुद्दीन "हातिम" साहब ने ठीक ही फ़रमाया है:
मज़रा-ए-दुनिया में दाना है तो डरकर हाथ डाल
एक दिन देना है तुझको दाने-दाने का हिसाब ।
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