कुछ राज्यों में बुलडोज़र आंदोलन की अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बाद एक पत्रकार मित्र ने पूछा है, "बुलडोज़र से मकान ढहाए गए या गिराए गए?" वे गिरना-गिराना और ढहना-ढहाना में अंतर जानना चाहते हैं। गिरना और ढहना में भेद करना इतना कठिन तो नहीं है, फिर भी इस बीच माध्यमों में छपी या बोली गई बातों से ऐसा अवश्य लगता है कि कहीं भ्रम की स्थिति है।
गिरना (प्राकृत *गिरति > गिरइ या संस्कृत √गल् गलन से व्युत्पन्न अकर्मक क्रिया है और गिरने का काम स्वत: होता है (ओले गिरे)। गिराना सकर्मक है। यह काम किसी माध्यम से होता है। (तुमने चाबी कहाँ गिरा दी?)। इसी प्रकार ढहना (संस्कृत ध्वंस > ध्वंसन से व्युत्पन्न)अकर्मक क्रिया है (बाढ़ से दो मकान ढह गए) और ढहाना सकर्मक (नगर निगम ने दो मकान ढहा दिए) । यहाँ तक तो ठीक है। गिरना में गिरने वाली वस्तु ऊँचाई से धरातल की ओर या धरातल पर गिरती है, बिजली गिरती है और आँसू भी गिरते हैं। गिरने वाली वस्तु उसी रूप में रह सकती है, जैसे चाबी गिरी। आम गिरे। ढहना में ऐसा नहीं होता। ढहने वाली वस्तु नष्ट-भ्रष्ट हो सकती है, रूप और आकार में बिगड़ सकती है, मलबे में बदल सकती है। जैसे : आम का पेड़ ढह गया। पुराना मंदिर ढह गया।
गिरना की व्याप्ति ढहना से अधिक है। कोई चरित्र से गिर सकता है, कोई आचरण से, कोई दोनों से। ऐसे व्यक्ति को प्रायः कह दिया जाता है अमुक व्यक्ति बहुत गिरा हुआ है। यहाँ यह बिल्कुल संभव नहीं कि अमुक व्यक्ति धरातल पर गिरा दिखाई पड़े। किसी का स्वास्थ्य गिर सकता है, किसी की आर्थिक स्थिति। बाज़ार भाव भी गिरते सुने गए हैं, ढहते नहीं। शक्ति, स्थिति, प्रतिष्ठा या मूल्य के साथ भी गिरना क्रिया का ही प्रयोग होता है।
मकान की छत गिर सकती है, मकान गिरता नहीं, ढहता है। सपने और मंसूबे ढहते हैं, बिखरते हैं पर गिरते नहीं। कोई गिरी नीयत का हो सकता है, ढही नीयत का नहीं। दाँत या बाल गिरते हैं, ढहते नहीं हैं।
इस विवेचन से स्पष्ट है कि शब्दार्थ की दृष्टि से देखें तो बुलडोज़र से मकान ढहाए गए, गिराए नहीं गए। वे धराशायी हुए, मलबे में बदल गए और राजनीतिक संदेश देने के लिए उनका उपयोग किया गया।
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